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कृपा याचना , मृदुला जु

कृपा याचना

हे प्रेमदात्री
हे करुणा की अनन्त सिंधु
हे परम कृपा रूपिणी
हे अतिशय भोरी
हे भावों की महा उद्गम
हे रसिकों की जीवनी
हे करुणागारा
हे नित्य द्रवितचित्ता
हे सहज रसधामा
हे श्रीकृष्ण कोटि प्राण संजीवनी
हे कृष्ण जीवन मूल
हे कृष्ण प्राणपोषिका
हे कृष्णप्राणरससंवर्धिनी
हे कृष्ण प्राण संरक्षिका
हे कृष्ण उर विलासिनी
हे कृष्ण प्राण अधिष्ठात्री
हे कृष्ण रस प्रवर्धिनी
हे कृष्ण काम दायिनी
हे कृष्ण तत्व विधायिनी
हे कृष्ण तत्व रूपिणी
हे क्लीं सार रूपिणी
हे लीला उद्गमा
हे लीला स्वरूपिणी
हे सखियन प्राण अधिष्ठाना
हे कृष्ण विश्राम स्थली
हे सुख सदना
हे कृष्ण गर्व हारिणी
हे कृष्ण आधारा
हे परा तत्व स्वरूपिणी
हे कृष्ण सम्मोहिनी
हे स्वामिनी तव् शरणम्
तव् शरणम्
तव् शरणम् केवलं
हे रसीली रसनागरी हे किशोरी श्री राधिके हे प्यारी जू तव श्री चरनन् में बारंबार प्रणत हूँ ॥ स्वामिनी आज के परम पावन मंगलमय दिवस पर आपसे आपकी नेक सी कृपा दृष्टि की याचना कर रही हूँ ॥ स्वामिने आज आपका पुनीत जन्म दिवस है ॥ कहा तो प्राकट्य दिवस जाना चाहिये था परंतु जो मागंना है उसका मिस जन्म दिवस ही कहना अधिक सहज लग रहा है मोहे ॥ हे भोरी सुकुमारी आज जन्मदिन है न तोरा , जानती हो न कीर्तिकुमारी संसार में महत् जन उदार जन निज जन्मदिवस पर दान किया करते हैं ॥याचकों को भिक्षा दिया करते हैं ॥ जन्मदिन पर अतिशय उदार होकर निर्धनों में याचकों में भिक्षा देना परम कल्याणकारी माना जाता है ॥ और हे वृषभानुकुमारी तुम तो उदार चक्रचूणामणि हो करुणा का मूर्तिवंत विग्रह हो न श्यामप्रिया तो क्या अपने जन्मदिवस के महान उपलक्ष्य में मुझ अपात्र याचक को कछु न दोगी ॥ स्वामिनी पात्र रसिकों भक्तों संतों साधकों भजनानन्दियों को तो नित्य ही तुम्हारे द्वार पर कृपा प्रसाद मिलता है श्यामा ॥ स्वामिनी दान लेने के लिये भी पात्रता आवश्यक है पर मुझ जैसी सकल साधन हीना को तो केवल भिक्षा का ही आश्रय है क्योंकि भिक्षुक की पात्रता अपात्रता नहीं देखी जाती स्वामिनी ॥ हे किशोरी जब इस प्रेमरहित संसार में भी महान पुरुषों में करुणावश अपराध क्षमा कर पात्रता का अतिक्रमण कर याचक को मनचाही वस्तु की भिक्षा देते हुये देखा जाता है तो आप तो समस्त कारुण्य का मूल उद्गम हैं किशोरी ॥ स्वामिने मो पर लेश मात्र भी वह कुछ नहीं जो किसी भी प्रकार तुम्हारी कृपा की  भाजन बना सके परंतु हे परमोदारा आज के विशेषतम् अवसर पर जब निज सखियों संग बरसाने के महल से याचकों को दान देने आवोगी तो सबसो दूर पडी इस सब भांति परम मलिना को बस एक बार करुणापूरित नेत्रों से निहार भर लेना श्यामा ॥ हे ब्रजरानी ब्रज मंडल के वासी तो तुम्हारी कृपा पा ही चुके नित्य पाते ही हैं पर आज के शुभ दिवस पर अपनी कृपारूपी दृष्टि,  ब्रज से वंचित निज कर्मों के कारण दूर पडी संसार सागर में अधोमुखी हो डूबी हुयी और माया विषयों में ही सुख खोजती नित्य नवीन पतन की ओर उन्मुख तुम्हारी किसी युग की भटकी भूली छिटकी रज कणिका पर गिरा दो स्वामिनी ॥ साधन विवेक प्रदान करता है कि क्या मांगा जावे किससे मांगा जावे कैसे मांगा जावे पर मैं सकल साधनहीना कैसे मांगने की विधी जानूँ ॥ हे अशरणशरण हे परम क्षमा स्वरूपिणी श्री राधिके जो देकर आपको सुख होता हो वही भिक्षा आप मोहे दे दीजिये ॥ आज के पुन्य दिवस पर परम रसिक जन साधक जन सिद्ध जन आपके श्री चरनन् में निज निज साधन की भजन की तपश्चर्या की पवित्र भेंट अर्पण करते हैं पर स्वामिनी मो पर देने को कछु है ही नाहीं ॥ मैं निर्लज्ज तो बस याचक हो तुम्हारे जन्मदिन पर भिक्षा मांगने आयी हूँ ।विशेष अवसरों पर रियायत मिलती है न श्यामा तो आज मोहे भी ........॥ आज का दिवस साधकों सिद्धों रसिकों के साथ साथ मुझ जैसी साधनहीन याचक के लिये भी परम सुलभ अवसर है स्वामिने ॥ आज तो श्रीमहल से बंटती प्रसादी पात्रता का अतिक्रमण कर इस नितांत अपात्र की झोली में भी आ गिरेगी ॥ बस यही उदारतामयी भिक्षा ही तो एकमात्र अवलंबन और आशा है मेरी ॥
रज कणिका होने की प्रतिक्षा में

तव् कृपा अभिलाषिणी
मृदुला

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