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श्यामा जु के श्रृंगार में श्यामासुन्दर का माधुर्य , भाग 2 , संगिनी जु

मधुर मधुर नर्म कर कमलों से सखी प्रिया जु का श्रृंगार कर रही है और उस श्रृंगार में छुपे माधुर्य का रहस्य जो प्रिया जु ही जानतीं हैं वह प्रियतम श्यामसुंदर ही हैं।
अधरों और नयनों के श्रृंगार से प्रिया जु के समक्ष श्यामसुंदर जु की प्रेमभरी चंचल मुस्कान और चपल शरारत झलक जाती है।उनके गौरवदन पर प्यासे अधरों की थिरकन और चंचल नयनों की देखन ऐसे दौड़ती है कि प्रिया जु मंद हंसती हुईं जैसे ही कंठ से खिलखिलाती सी हंसी की मंद ध्वनि को रोकने का प्रयास करतीं हैं तो उनकी दृष्टि श्यामसुंदर जु की अति माधुर्यमयी नयनों की चाल से उनकी बोलन पर जाती है जो और भी अधिक मधुर है।वो बोलन जो प्रिया जु को अति कर्णप्रिय है और प्रिय श्यामसुंदर जु का पीताम्बर और वसन उनके नयनों के समक्ष झलकता उड़ता उन्हें मोहित करने लगता है।
श्यामा जु आरसी में अपने रूप लावण्य को नहीं अपितु स्वयं से अभिन्न श्यामसुंदर जु के माधुर्य को निहार रहीं हैं और उनकी मधुर चितवन प्रिय की अद्भुत मनमोहक त्रिभंगी मुद्रा से सहज लटकन मटकन और उनके पल पल  भ्रम में डाल देने वाले हाव भावों पर पड़ती है जहाँ उनके स्वयं के रूप श्रृंगार में भरेपुरे श्यामसुंदर ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं और वे बाँके प्रियतम की श्रृंगार सम उकेरी जा रही बाँकी छवि में पूरी उतरती जा रही हैं।
सखी श्यामा जु को कंठहार और फिर कटिबद्ध बाँधती हुई मंद मंद मुस्करा रही है और श्यामा जु को श्यामसुंदर जु की अति सुकृष कटि पर किंकणियों की मधुर झन्कारों के मध्य वंशी दिखाई देती है जिसकी मधुरता से एक एक रजकण पुष्प बन खिल जाता है और श्यामा जु के कमल सम कोमल चरणों तले बिछ जाता है।
सखी ....श्यामा जु की कलाईयों पर चूड़ियाँ और कंकण शोभायमान हैं और उनके पदों में पायल पहनी है जिसे पहनाते हुए सखी के करों को निहारती श्यामा जु श्यामसुंदर जु के कर व पदों में बजते नूपुरों की झन्कारें सुनतीं हैं और उनके नख धरा को बहुत सुकोमलता से कुरेदते हुए नृत्य की मुद्रास्फूर्ति कराते हैं।
समक्ष माधुर्यवान श्यामसुंदर जु श्यामा जु को निहारते नहीं अघाते कि कितने प्रिय सुंदरवर श्यामसुंदर जु किकणियों की मंद ध्वनि जैसे उनके भावभावित सखागण हों उन्हें प्रेम पूर्वक धारण किए हुए हैं।
श्यामा जु के कानों में सखी हल्की हल्की बूँदियों से खनकते लटकते कर्णफूल पहनाती है जो श्यामा जु को प्रिय की अति मधुर संगीत की सरगम का एहसास दिलातीं हैं जिन्हें सुन वे श्यामसुंदर जु के झुकते उठते थिरकते नयनों की झाँकी में उलझ जातीं हैं जैसे उनका खान पान सोना जगना सब प्रियहित माधुर्यमयी है और उनकी संगीत सरगमों के अनुरूप माधुर्य से भरा हुआ।
एक एक श्रृंगार सामग्री की मधुरता स्वयं श्यामसुंदर हैं जिनके लिए श्यामा जु सजती संवरतीं हैं और उसी श्रृंगार में प्रियतम सुख के साथ साथ प्रियतम को ही अपलक निहार रहीं हैं।
सखी उनके चमकते ललाट पर शीतल चंदन से तिलक करती है और मध्य में चंद्रमा की आभा छटा को भी लज्जित करने वाली लाल बिंदी लगाती है जैसे पीले केसरयुक्त चंदन के मध्य लाल जु का प्रेम ही अभिमान बन विराजित है।
प्रिया जु के कुण्डलों से केशों में लगाई कर्णमालाएँ श्यामसुंदर जु के कर्णों से ढलकते कुण्तल हैं जिनकी चंचलता ऐसी कि श्यामा जु मुग्ध हुईं उनके मनहरण करने वाले घुंघराले केशपाश में बंध जातीं हैं और उनके कमणिय रमणिय अति प्रेम माधुर्ययुक्त खेलती कपोल और मुख चुम्बन करती अलकावलियों को निहारने लगतीं हैं।
श्यामसुंदर जु कैसे अपनी सुंदर सुकोमल अट्केलियों से प्रिया जु का मन हर लेते हैं यह उस आरसी में मूर्तिवान किशोरी जु के नयनों से स्पष्ट झलक रहा है।

कब मैं युगलसंगिनी प्रियतम श्यामसुंदर जु की मधुर श्यामा जु की श्रृंगार में दृष्टिगोचर होतीं इन छवियों का दर्शन करूँगी.....
क्रमशः

जयजय मधुराधिपति !!
जयजय मधुररसभरिणी !!

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