श्री बाईसा जू का अति ही सुंदर पद है "स्याम मोहे चाकर राखो जी " ॥ बडी ही सुंदर हृदय भावना बडी ही प्यारी अभिलाषा कह रही हैं बाईसा जू या पद में अपने प्रियतम श्याम सो ॥ बाईसा निवेदन कर रहीं हैं हे गिरधर लाल मोहे आपकी चाकर रख लो ॥ आपकी मनोहर छवि माधुरी का नित्य अपने नयनों से दर्शन करुँ बस यही सेवा हो मेरी ॥ सामान्यतः हम गोविंद का दास्य मांगते हैं पर बाईसा जू की अभिलाष तो परम विचित्र है वे प्यारे से दास्य नहीं चाकरी की विनती कर रहीं हैं ॥ दास्य तथा चाकरी में बडों अन्तर है ॥ दास्य में सेवा के बदले कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता वरन यदि स्वामी की इच्छा हो तो वह दास को चाहे कुछ दे देवे अथवा ना दे , परंतु चाकरी में सेवा का प्रतिफल अपेक्षित होता है ॥ दास्य में स्वामी जो चाहे सेवा प्रदान करे दास को परंतु चाकरी में सेवा बाईसा जू पहले ही निश्चित कर रहीं हैं ॥ और उनकी माँग भी बडी अद्भुत है ॥सृष्टि की सबसे मधुर वस्तु ही माँग ली सेवा में उन्होंने , अपने प्रियतम निखिल रससिंधु परमलावण्यसारभूत श्याम के नित्य दर्शन ही उनकी चाकरी हो जाये ॥ उनके नेत्र सदा श्यामसुंदर के रूप रस का पान करते रहें यही कामना है बाईसा जू की ॥ चाकर हो जाने पर सेवा का कोई विकल्प नहीं होता और यही तो चाह है उनकी कि मेरे नेत्र आधीन हो जावें इस परम दुर्लभ रसमयी सेवा के ॥ चाकरी में बाध्यता निहित होती है और यही तो उनकी प्रेममयी अभिलाषा है कि आपके दर्शन मेरे नेत्रों को बाँध लें और ये नेत्र सदा व्याकुल हो छटपटाते रहे दर्शनों को ॥॥ उनकी अगली अभिलाषा भी और भी विलक्षण है ॥वे ना केवल स्वयं ही सेवा निश्चित कर रहीं हैं वरन सेवा के बदले कुछ खरची अर्थात् पारिश्रमिक भी माँग रहीं हैं प्रियतम से ॥ आहा ! कैसी अद्वितीय खरची चाह रहीं हैं बाईसा ! वे चाह रहीं हैं कि हे प्रियतम आपके छवि माधुरी के दर्शनों के फल के रूप में आपका अनवरत सुमिरन मुझे प्राप्त हो जावे ॥ सहज ही नित्य सुमिरन होता है किसी का जब हृदय चोरी हो जावे । तो यही तो प्रतिफल है दर्शनों का कि हृदय ही चोरी कर लेवें वे नन्द किशोर ॥और यही परम रसमयी कामना है बाईसा जू की कि मेरा चित्त मेरा हृदय मेरा संपूर्ण अन्तःकरण सदा सदा के लिये आपका होकर आपके मधुर चिन्तन में डूबा रहे ॥ पलभर को भी आपकी स्मृति मुझे छोडे ही नहीं ॥ हे प्यारे आपकी दर्शन सेवा का यही सुन्दरतम् पारिश्रमिक मोहे प्रदान कीजियेगा ॥ और अगली प्रार्थना तो और भी अधिक मधुर तथा अद्भुत है उनकी ॥ आपके दिये खर्चे से मोहे जागीरों की प्राप्ति हो जावे और वह जागीर है क्या आपके प्रेममय भाव भक्ति की प्राप्ति ॥ अहिर्निश आपके परम मंगलमय प्रेममय स्मरण के फलस्वरूप मोहे भावराज्य की प्राप्ति हो जावे प्रियतम ॥ पद के प्रत्येक भाव के साथ वे प्रियतम की रूप माधुरी में खोती जा रहीं हैं ॥ प्रियतम के दर्शनों की लालसा के रूप उदित हुआ उनका हृदय भाव उन्हें परम रसमय भाव स्थिती में निमग्न कर रहा है ॥ उस भाव राज्य में डूबी हुयीं बाई सा कह रहीं हैं कि प्यारे के दर्शन स्मरण और भाव तीनों ही परम रसमय हैं तीनों ही हृदय को रस से सिंचित कर रस वर्षण कर रहे हैं ॥ ये तीनों ही रस के भंडार हैं जो नित नूतन रस निमज्जन करा रहे हैं ॥
भाव भक्ति ही लक्ष्य है समस्त साधनों का ॥भाव ही तो भक्ति का प्राण है ।भावविहीन भक्ति आत्मा रहित देह समान है । ॥ भाव से तात्पर्य यहाँ प्रेम से है ॥जब तक श्री गोविंद में प्रेम की उपलब्धि नहीं होगी तब तक किये गये भक्ति तो केवल यांत्रिक क्रिया ही है ॥ भाव के वशीभूत ही प्यारे श्यामसुन्दर हैं ॥ ॥ श्री बाईसा जू के पद में की गयी यह सरस प्रार्थना वास्तव में प्रेमा भक्ति के विकास का क्रम ही तो है ॥ सर्वप्रथम दर्शन और दर्शनों के फलस्वरूप हृदय के प्रियतम के आधीन हो जाने पर अहिर्निश मात्र उन्हीं का स्मरण चिंतन और इसी चिंतन के परिपक्व हो जाने पर भाव की प्राप्ति ॥ श्री बाईसा जू का भाव परम अद्भुत है ॥उनके हृदय की गहराई को हम स्पर्श भी नहीं कर सकते पर फिर भी उन्हीं की कृपा से किनारे पर बैठ उनके हृदय सरोवर की मधुरिमा का दर्शन करने का एक प्रयास भर किया है ॥
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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