मोरी प्यारी ... सम्पूर्ण निशारागिनी
प्यारे श्यामसुन्दर श्री प्रिया के नेत्रों में खोये हैं ना जाने कितना समय बीत गया है ॥ हृदय न जाने क्या क्या कह रहा है उनका ॥कितना सुंदर भाव है प्रियतम के मन का ॥हे श्यामा जु मेरे समस्त रस तुम्हारी सत्ता से ही तो हैं ।जब तुम मेरे समीप होती हो तो चारों तरफ रस की वृष्टि होती है ॥ऐसा लगता है कि रस रंगों मे घुलकर बरस रहे हैं ॥ प्रकृति का कण कण नित नूतन रस से सिंचित होनें लगता है ॥ हे श्यामा तुम एक मधुर रात्रि हो प्यारी जू और मैं उस रात्रि का चंद्रमा ॥ जिस प्रकार चंद्रमा का सौंदर्य चंद्रमा की शीतलता केवल रात्रि में ही जीवंत होती है वैसे ही इस कृष्ण चंद्र का समस्त रस समस्त माधुर्य केवल तुम्हारे प्रेममय सानिध्य से तुम्हारे रसमय सामिप्य से ही प्रकट होती है ॥ तुम्हारी सन्निधि ही तो रससिक्त करती है मोहे ॥ तुम्हारे प्रेम से ही तो कृष्ण कृष्ण है प्रिया जू ॥ जिस प्रकार रात्रि विहीन चंद्रमा का कोई अर्थ ही नहीं वैसे ही तुम्हीं तो इस कृष्णचंद्र की वह मधुयामिनी हो जो इसे अर्थ प्रदान करती है ॥ हे प्यारी तुम्हारे प्रेम ने ही तो जीवन दिया है मुझे ॥ हे श्यामा तुम्हारे प्रेम में डूब कर मैं शेष सब भूल चुका हूँ ॥ दिन रैन अहिर्निश केवल तुम्हारे ही ध्यान में डूबा रहता हूँ श्यामा ॥हे प्रिया जू मेरे इन नेत्रों से अधरों से प्रति रोम रोम से केवल तुम्हारा ही मधुर नाम झंकृत होता रहता है ॥ स्वामिनी जू आपके अतरिक्त और कुछ स्मरण ही नहीं अब ॥हे श्यामा आपका प्रेम पाकर अब कुछ भी पाने की इच्छा ही नहीं ॥सदा यूँ ही प्रेम वर्षण करती रहिये मुझ पर ॥हे श्यामा आप ही तो मेरी परम विश्राम स्थली हैं ॥ आपकी एक तिरछी चितवन ही मुझे पूर्णतः आपके आधी कर लेती है ॥ हे प्यारी कहीं भी किसी भी ओर देखता हूँ तो बस आप ही सन्मुख होतीं हैं ॥ आपकी ही सुगंध सदा मुझे स्निग्ध किये रहती है ॥कहीं भी किसी भी कुंज में जाऊँ मैं चाहें परंतु सर्वत्र केवल आपकी ही रसमय अनुभूति होती है ॥ प्यारी तुम्हीं तो मेरी प्रत्येक रजनी का मधुस्वपन हो ॥ हमारा मिलन नित्य है ॥परस्पर के लिये ही तो हैं हम ॥ प्यारी तुम्हारे होने से ही मुझमें रूप रस प्रेम का प्राकट्य है ॥ हे कृष्णा मैं एक आकाश हूँ जिसमें दैदीप्यमान दिवाकर तुम हो ॥ हे प्रिया आपकी ही कृपा से मोहे आपकी प्राप्ति हुयी है ॥ हे किशोरी आपने ही तो प्रीति का संचरण किया है मुझमें ॥ आपके प्रेम से ही जीवन का अर्थ पाया है श्यामा ॥
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