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सेवातुर युगल प्रीति , संगिनी जु

सेवातुर युगल प्रीति

अर्धरात्रि उपरांत प्रेम श्य्या पर परस्पर निहारते श्रीयुगल ....
निंदिया नहीं.... नयनों में परस्पर रूप माधुरी भरी हुई ....ऐसे जैसे अद्भुत प्रीति के पांवड़े में प्रीति ही शोभायमान है।
रसमगी रसप्रीति की रसरीति से सनी मिलन निशा की रसमद शीतल रश्मियाँ जैसे अभी ही जगी हों।
यह रश्मियाँ प्राकृत नहीं ....अपितु अप्राकृत प्रेम की श्य्या सजाने वाली और उस श्य्या पर खिलित नव पल्लवों के अति गहन पर सहज सरस प्रेम की साक्षी..... उन दो पुष्पों की प्रिय कणिकाएँ हैं जिनका मन जैसे मिलन से और और और तरोताज़ा हो गया है....
रसदेहों का मिलन और अब रसभावों का अति गहन मिश्रण ही जैसे....
श्यामा श्यामसुंदर जु अर्धमिलित सी अवस्था में सुमन सेज पर लिपटे हुए रसभीनी रसातुर निगाहों से परस्पर निहार रहे हैं।एक तरफ श्यामा जु श्यामसुंदर जु को ललितत्रिभंगी मुद्रा में रसातुर वेणु बजाते हुए अपने हृदय कमल पर आसीन कर रहीं हैं और वहीं दूसरी ओर श्यामसुंदर रसस्कित पिपासित नयनों से श्यामा जु की अति प्रगाढ़ करूणामयी छवि को जिसमें वे सदैव प्रियतम रसानुरूप उन्हें अपल्क निहारती रसपान करातीं हैं उस करूण प्रेम छवि को अपने हृतखिलित नवनवायमान कमल पर खिला रहे हैं।यहाँ भोरी स्वामिनी जु के नयन अर्धनिमलित हो रहे हैं और कोर से मुंदते मुंदते तनिक बह निकले हैं।वहीं दूसरी ओर श्यामसुंदर जु प्रिया जु के नम नयनों से बहते प्रेमाश्रु को निहारते हुए तिलमिला उठते हैं।
प्रिया जु की रूपमाधुरी में प्रियतम श्यामसुंदर जु की ऐसी रूपछटा जैसे वे अति दैन्यपूर्वक प्रियतम से कहते कहते सो गईं कि हे प्रियवर अति सकुशल तुम क्यों मुझ दासी पर इतना रीझ गए हो।वहीं प्रियतम श्यामसुंदर जु का भाव कि क्यों प्रिया जु तुम इतनी कृपामयी करूणामयी कि मुझ रसलोभी पर सदा रीझी रहतीं।
बस इतना सा भाव कि प्रिया जु के नयन पटल से झलकते प्रेमाश्रु को निहार श्यामसुंदर तो पूर्णतः बह चले।श्यामा जु को निद्रा में देख और एकांत पाकर प्रियतम श्यामसुंदर उठ बैठे और अनवरत ढरकते निश्चल प्रेमपूर्ण नयनों से प्रिया जु को निहारते हुए उनके अति सुकोमल चरणों को गोद में ले लेते हैं और हिय से लगाते हुए दृगों से टपकते रसाश्रु को रोक लेते हैं कि श्यामा जु को तनिक सी अनुभूति हुई तो वे जग जाएँगी।
पर अतीव प्रेम की रसानुभूति अभिन्न कैसे हो सकती है ना......
यहाँ श्यामसुंदर जु ने श्यामा जु के चरणकमल हिय में धारण किए और वहाँ तत्सुखसुखिता श्यामा जु प्रियतम सुख मान उनको अपने हृदय में एकटक निहार रहीं हैं।
अद्भुत प्रेम  !!
एक दो पल नहीं सम्पूर्ण रात्रि यूँ ही बीत रही पर श्रीयुगल को परस्पर सुखहेतु निहारन में समय का भान ही नहीं।अथकित अपलक भावतरंगों में लहलहाता स्वयं भावसागर.....
सगरी रैन बीती निहारते निहारते हृदयस्थ युगल को परस्पर.....ऐसी गहरी प्रेम की गहन रस भरी निहारन कि श्यामसुंदर श्यामा जु को निहारते निहारते श्यामा हो चुके और श्यामा जु श्यामसुंदर।
अहा !!अति सुंदर रसमगे श्रीयुगल की भीनी भीनी प्रेम में सनी रूप माधुरी।रात्रि में जहाँ श्यामा जु लेटीं वहाँ अब प्रियतम और जहाँ प्रियतम विराजे प्रिया जु के चरणों को हिय से लगाए वहाँ प्रिया जु।
अद्भुत  !!जहाँ सखी यह अति रसपूर्ण रूपछटा अपलक निहार रही वहाँ जैसे भावतरंगों की बाढ़ सी आई हुई और उसके प्रियालाल जु उसी अर्धमिलित अवस्था में मुख से मुख जोड़े करकमलों से परस्पर नीलवर्णा पीतवर्ण को निहारते हुए एकांतिक लीला का रसपान करते ना अघाते और सखी की उपस्थिति से जान कर अन्जान बने उसको नयनाभिराम रूपझाँकि का पान करा रहे।

जयजय !कब मैं सेवातुर प्रियासंगिनी इस अति मनमोहक सुंदर रसझाँकी का अपने नयनों से दरस कर इन्हें तृप्त करूँगी .....
तृषित युगल "संगिनी"
जयजय श्रीयुगल !!
जयजय प्रियप्रिया प्रेमसुमन !!

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