भाव स्वयं ही प्रकट होते हृदय में ।और यही परम सत्य है ॥ जब हम किसी को सुन या पढकर लिख रहे तो वह हमारे हृदय से नहीं निकले ॥ अनन्त भाव है प्रेम राज्य में ॥ प्रेम एक बहुत गहन तत्व है ॥ वास्तविक प्रेम वह है ही नहीं जैसा हम समझते जानते ॥ अभी जो है वह कामना है प्राप्ति की ॥ प्रेम बिना कृपा के चाहें रसिकों की हो गुरु की हो या स्वयं उनकी ॥ कृपा ही प्रेम प्राप्ति का एकमात्र उपाय है क्योंकि जीव में तत्वतः प्रेम है ही नहीं ॥ तो उसे बाहर से अर्थात् कृपा से प्रदान किया जाता है । फिर वह जीव की स्वयं की भाव स्थिती के अनुसार वृद्धि को प्राप्त होता है और अपने चरम तक पहुंचता है ॥ तो मन में यह हीनता की मुझे प्रेम न हुआ नहीं होनी चाहिये क्योंकि ये होता नहीं मिलता है । तो व्यग्रता ये होनी चाहिये कि मिला नहीं अभी तक ॥ मिले उसी के लिये समस्त साधन भजन है कि उसकी भूमिका तैयार होवे ॥वही दायित्व है हमारा । जब वे उचित भूमी देखेंगे तो स्वतः प्रेम बीज का वमन करेगें ॥तो किसी को क्या प्राप्त है यह देख तुलना मत करो ॥ वास्तविक स्थिती केवल श्री भगवान ही जानते हैं ॥ पढकर या सुनकर लिखने से क्या प्रेम सिद्ध हो जाता है ॥ नहीं ॥ लेखन प्रेम का प्रमाण नहीं है ॥ सो केवल प्यास जगाओ प्रेम की प्रेम प्राप्ति की बस ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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