रंगहू एक रंगै द्वि जन रंग सुरंग ना भावै औरहि
बसत स्यामा हिय सलोनो स्याम सुलोचिनि स्यामा स्याम हिय श्रृंगारि
एकहू देहि एकहू प्राण एकहू रूपरंग कौ मानि
दोऊ देखैं पलकनि उघारि ज्यूं आरसि सौं सत् झलकानि
लावण्य सुरभित मधुर लालित्य सनिग्ध सुस्मित सीतल सुजानि
नित्य अरूण हांसि सुमधुर सरसित रसरति तिरछि लटकानि
प्रस्वेद रस बूंदिया ससि चंद ललाट इत्र चंदन कुच अंगरागिनि
रतनारे दोऊ नयना रंग गुलाल चंचल चितवन अधर फरकानि
झीनै बस्त्र सुंदर नील छबि न्यारि लसै दोऊ ढुरकि उचकि दोऊ ललचानि
मिलै अनमिलै रचै रहै ज्यूं रस देहि सौं तृषित प्राणनि
छूबत ना अघावै रमै ना समाबै दोऊ नर कित कबहू नारि भेद भुलानि
दोनों पिया प्रियतम प्यारी एक ही रंग में रंगे हैं।दोनों को दोनों का रंग ही सुहाता है दूसरा कोई रंग इन पर नहीं चढ़ता।श्यामसुंदर जु श्यामा जु के हृदय में बसते हैं और श्यामा जु ही श्यामसुंदर जु के हृदय का श्रृंगार हैं।एक देह एक प्राण एक सा ही रूपरंग इन दोनों का एक ही जैसे युगल एकरस मान भरे रहते हैं।दोनों ऐसे एक ही साथ परस्पर निहारते हैं जैसे दर्पण में अपनी छवि को कोई निहार रहा हो और अपनी ही रूपमाधुरी का पान अपने ही नेत्रों से कर रहा हो।लावण्य से भरा सुरभित सुस्मित शीतलता प्रदान करता इनका लालित्य युक्त प्रेम है।नित्य नव अरूणारे नयन मधुर हंसी सरस रसभरी चंचल इनकी चित्तवन।इनके मुख पर प्रेमअश्रु व स्वेद कण ललाट पर और कुच मंडल पर चंदन अंगराग जैसे सूर्य और चंद्रमा की चमक सजी हो।दोनों के नयना रतनारे गुलाबी गाल और चंचल ऐसे कि पल पल अधर प्रेम और मान से फरकते हैं।इनके झीने वस्त्र और न्यारी छवि ऐसी कि क्षण क्षण उचकते और ललचाते रहते परस्पर आलिंगित होने को।सदा मिले हुए भी अमिले ही रहते जैसे रसदेह में प्यासे सदा प्राण।दोनों रचे पचे हुए भी ना श्रमित होते ना ही समाए कभी ऐसे रस तृषित ही रहते।परस्पर नेह लुटाते पर ऐसे जैसे तत्सुख हेतु नर नारी का भेद ही भूल जाते।क्षणभर में कभी श्यामसुंदर श्यामा जु तो कभी श्यामा जु श्यामसुंदर हो जातीं।रंगरूप स्वभाव सब बदल जाता पर प्रेम की चाल व्याकुलित ही सदा रहती।
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