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विचरै उपवन परस्पर भुज मेलै , आँचल जु

विचरै उपवन परस्पर भुज मेलै,रस अधीर हुये इत्त उत्त डौलै।
बाढि उमगि रस मद तरंगा,मौन ही मौन रहै सब बौलै।।१

प्रियालाल परस्पर एक दूसरे की ग्रीवा मे भुजाए डालकर इस मनोरम उपवन मे रस विहार करते विचर रहे है।
रह रहकर युगल मे रस रूपी मद की तरंग बढ बढकर उमड रहि है।यद्यपि दोनो मौन है किंतु इस मौन मौन मे ही दोनो परस्पर मौन वार्ता कर रहे है।

छूवत कपोल कबै चिबुक पलौटै,कबहु रहै आकुल बाढत मिलिहै।
भान हुतै नाय गैह नेह मा,कैसौ पिय प्यारी गज चल चलिहै।।२

प्रियालाल परस्पर कभी तो गालो को छूते है तो कभी चिबुक को सहलाने लगते है।कभी कभी रस तरंग मे अत्यंत व्याकुल होकर बढकर एक दूसरे से लिपट जाते है।
प्रेम मे प्रियालाल को देह का भान तो सर्वथा विस्मृत हो गया है।पिय प्यारी इस प्रेम रस से मतवाले गज की भाँति उन्मादी सी चाल चल रहे है।

छूटत भयै पद चिन्ह सौ ऐसौ,गिरै भूषण बसन पाछै पंक्ति बांधै।
पग पहिलौ रहि चूनर प्यारी,उपरि ढुरै पीत प्यारौ कौ औंधै।।३

पीछे पीछे युगल के पद चिन्ह तो ऐसे छूटत हीे जा रहे है किंतु प्रियालाल के वस्त्र और आभूषण भी पंक्ति मे बंधै छूटते जा रहे है।
पहले पद चिह्न पर प्रिया जु की चूनर पडी हुई है और उसके उपर लालजु का पीत पटका ऐसे पडा है मानो लालजु ही औंधै मुह प्यारी जु पर पडे हुए हो।

पडै दीखै पद चाप अग्र ही,प्यारी किंकणी पिय कर्ण फूलै।
ऐसौ करि चुबंन कटि पिय प्यारी,अरूझै कान फूल किंकणी मा झूलै।।४

इससे अगले पद चिन्ह पर प्यारी जु की कमर की किंकणी और लालजु का कर्णफूल पडा हुआ दिख रहा है।
प्रियतम ने रसमत्त होकर प्यारी जु की कमर पर इस प्रकार चुंबन कर लिया की प्यारी जु की किंकणी मे लालजु का कर्ण फूल उलझ कर यही गिर पडा।

कछु ओरि बाढे दुई दैखै,कुसुम लरि गिरि टूटे दोऊ अवनि।
घसि आतुर कर गहि परस्पर,संग मिलै गए भए टूटि कुमुदनी।।५

युगल के कुछ ओर आगे बढने पर देखा की युगल की गले मे धारण की गई पुष्पो की लडी भूमी पर टूटी पडी है।
जब युगल ने परस्पर एक दूसरे की भुजा को आतुरता मे एक दूसरे की ग्रीवा मे मसला तब युगल के गले की पुष्प माल के कुमुद मिलकर एक होकर गिर पडे।

मोद बाढै दुई ढुरै यौ आपु,पद सौ पद पिय प्यारी दाबै।
तै सौई समै पद पिय गिरिहै,प्यारी गिरि पग नुपुर पायल जाबै।।६

ह्रदय मे ओर अधिक मोद बढने पर दोनो परस्पर एक दूसरे पर यू लुढकने से लगे है की प्रियतम के पद से प्यारी जु का पद जरा सा दब जाता है।
तब इसी समय प्रियतम के पद चाप पर प्यारी जु के इस पद की घुंघरूओ वाली पायल खुलकर गिर जाती है।

झरै बेणी कुसुम प्यारी लटकि,पिय श्रवण लगै पुष्प बहु भाँति झर जाय।
ऐसेई चलै भूलै सब बाता,प्यारी सुख अह कौन मुख सौ गाय।।७

कुछ ओर आगे चलने पर प्यारी जु की वेणी के पुष्प झडकर गिरे पडे है इसके संग मे प्रियतम के कानो पर लगे पुष्प अनेक अनेक प्रकार से छडकर गिरे जा रहे है।
युगल सब बात को भूलकर ऐसे ही चले जा रहे है।प्यारी ऐसे मे इस सुख को किस मुख के द्वारा कहा,गाया जा सकता है।

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