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र से रस , 30 , संगिनी जु

!! प्रेम रसमहाभाव लहरियाँ !!

प्राणधन से मिलने की गहन आतुरता और प्राणवल्लभा की रस आतुरता से आतुर हुए तृषित मधुकर श्यामसुंदर परस्पर अंतर्मन की पुकार करते डूबे रहते महाभाव समन्दर की प्रेम लहरियों में।अपनी विरह दशा में आकुल व्याकुल प्रियालाल जु के पल पल प्यासे अधरों की थिरकन उन थिरकते अधरों से रसस्कित झरती रसध्वनि और रसध्वनि से झन्कृत हो उठते उनके कर्णपुट।परस्पर निहारते अर्धनिमलित नेत्रों से बहती भावतरंगें भिगोती हृत्तल की अनवरत रसधार।रोम रोम से उठती रसध्वनियाँ परस्पर नामधन की।अति सुकोमलतम अंगों की लहराती स्वरलहरियाँ जो प्रिया जु के निंविबंधन व किंकणी से सुशोभित और कंचुकी बंद  व कुचमण्डल पर सजी गलमाल से बहती मधुरिम रसभाव बन लाल जु को आकर्षित करतीं।सुमन सेज पर भावलहरियों से थिरकते व महकते सिलवट जो परस्पर रसपिपासुओं को आलिंगित होने हेतु सिहराते और क्षण क्षण गहनतम रसतरंगों में डूबते श्यामा श्यामसुंदर स्पंदित हुए एक एक रसझन्कार को जीवन देते रहते।कभी सुसज्जित तो कभी मूर्छित होते महाभावों की मधुरतिमधुरिम रसझन्कारें परस्पर रसस्कित करतीं प्रियालाल जु को।अति गहन रस महाभाव लहरियाँ अनवरत झन्कृत होतीं श्यामा श्यामसुंदर जु के अंतर्मन से परस्पर अंतस के भावों में।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इन रस झन्कारों की
किंकणी और कुच हारों की
मधुर भाव लहरियाँ कर दो
तुम जो कह दो तो
व्याकुल रस झन्कार बन
तनप्राणों में अग्न तपन चुरा कर पी जाऊँ ...
तुम रस पिपासुओं का
गहन स्पंदन बनूं !!

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