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र से रस , 29 , संगिनी जु

!! प्रणय रोष मनुहार !!

श्री वृंदावन कुंज निकुंजों में प्रेम से पगी रस लीलाएँ जीवंत आज भी होतीं जब वे युगल रसिक हृदत्लों पर सखियों व श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण व श्रीराधे जु की प्रेम भरी तकरार की मधुर वार्तालाप रूप झन्कार बन दस्तक देतीं।सखा ग्वालबालों की शरारत भरी व सखियों गोपकन्याओं की नज़ाकत लिए अद्भुत क्रियाएँ अगर झन्कार व संगीत रूप प्रियालाल जु की रस लीलाओं में ना हों तो गहन रस मधुर ना होता।यही मधुरता लिए हुए युगों पुरानी लीलाएँ आज भी मंच पर रासलीलाओं में गाई बजाई जाती हैं।धन्यातिधन्य रसिकवर जिनके हृदय मंदिर सदा इस झन्कार को संजोकर दयादृष्टि से बरसाते व बजाते रहे।इससे भी गहनतम एक तिलमिलाहट भरी झन्कार होती उस प्रणय रोष में जो सखियाँ निकुंज के रंगमंच पर बिखेरतीं जो श्यामा श्यामसुंदर जु के प्रेम में रसवर्धन हेतु ही होतीं।एक चिलचिलाती मधुर झन्कार जो पिरोई जाती अत्यधिक सुंदर तानों बानों व नोंक झोंक से।प्रिया जु से मिलने की चाह लिए श्यामसुंदर जु तरह तरह से सखियों को मनुहार कर मनाते।कभी हंसी की मधुर फुहारें तो कभी रोषभरी तकरारें।कभी मनुहार रूदन रूप तो कभी प्यार से।एक आनंद एक रस सदा गहराता रहता।सखियाँ मानीं तो राधा रूठीं।श्यामसुंदर आते कभी जाते।रसवर्धन हेतु प्रेमस्कित मधुरातिमधुर रस झन्कारें।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे उन दिव्य भावतरंगों की
एक व्याकुलित भावभीनी झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
रस फुहार बन
कभी मधुर तो कभी रस कर्कश
सदा लीलाओं में जीवंत रहूँ 
ऐसा एक कोमल सा एहसास कर दो !!

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