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र से रस , 35 , संगिनी जु

!! विहरण भ्रमण प्रफुल्लन !!

सुंदर सुघड़ सवर्णिम सेज श्य्या पर विराजे युगल अति गहन मधुर चंचल कोमल रसछटा धारण किए सुरत केलि से आलस्य भरे जगे हैं और उनकी इस समय की रूपमाधुरी का अद्भुत अमृत रस का पसारा ही है।युगल परस्पर निहारते डूबे हुए उषा के आगमन से आलस्य भरे व अर्धनिमलित नयनों से आलिंगित हैं।सखियाँ इन रसभंवरों को जागृत करने हेतु मधुर संगीत बजाती हैं और वहीं श्रीवृंदा देवी भी प्राकृतिक ढंग से श्यामा श्यामसुंदर जु को जागृत करतीं हैं।शर्माए हुए श्यामा श्यामसुंदर जु सखियों से नज़रें चुराते हुए वृंदा देवी जु के आग्रह पर चहलकदमी वन विहार के लिए चलते हैं।सुरतकेलि के प्रभाव में उनके चरण डगमग डगमग जब धरा पर पड़ते है तो जैसे चरणस्पर्श पाते ही धरा झन्कृत हो उठती है।जहाँ जहाँ प्रियालाल जु पग धरते हैं वहीं वहीं तृण सिहरते व पराग कण अंकुरित होते हैं।कोमल चंचल कमलपदों की धीमी थाप से जैसे नृत्य की धमनियाँ ही उठतीं हैं और श्वासों से महके पुष्प स्वतः ही राह पर बिछने लगते हैं।खग मृग हंस मयूर नूपुर पायल की ध्वनि का धरा पर कोमल संगीत सुनते ही थिरक उठते हैं।सखियों से घिरे श्यामा श्यामसुंदर जु जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं वैसे ही वृंदपक्षी उनके आगमन से युगल परिक्रमा करने लगते हैं।संवरित होते प्रियालाल जु संगीत व नृत्य धमनियों में रसमगे से डगमगाना छोड़ कभी रूकते तो कभी संग नृत्य की एकाध गहन रसझांकी दे जाते जिससे धराधाम में रसगुंजारें झूम उठतीं और कण कण झंकृत हो जाता।एक एक पग पड़ते व रसभरी श्वास की महक से प्रकृति प्रफुल्लन में नाचने झूमने लगती और डगमगाते चरणों की छुअन से रसरंगपूरित हो उठती।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इस रसपगी
चहलकदमी विहरण भ्रमण की
व्याकुल एक झन्कार कर दो
तुम जो कह दो तो
संग संग रसमगी संगिनी
"र" स्वर की तन्मयता में
कण कण में झन्कार बन
संगीत धमनी सी सुनाई दूं !!

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