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होली लीला , आँचल जु

बसंत रखा जा चुका है।फागुन का रंग मास पूरे चरम पर है।वृक्ष रंग बिरंगे फूलो से लद गए है।श्यामा सखियो और श्यामसुंदर के बीच नित नयी होड लगती है,नित नयी प्रेममयी हार जीत होती है।दोनो ही पक्ष(लीला हेतू) परस्पर घात लगाए बैठे रहते है की कैसे मै उसे रंग दू।
ऐसे समय आज केवल कुछ ही सखियो को लेकर श्री प्रिया जु पुष्प चयन हेतू उपवन की ओर चली।सबसे आगे प्रिया जु उनसे केवल एक कदम पीछे दाँए बाँए ललिता जु व रूप सखी जु और तीन चार सखिया पीछे की ओर चल रही है।
उपवन मे पहुचकर प्रिया जु डलिया मे पुष्प चुनकर डालने लगती है।पुष्प चयन करते करते श्री प्रिया जु सखियो से कुछ आगे निकल गई है।
दूसरी ओर लालजु श्री प्रिया जु को रंगने की पूरी तैय्यारी के साथ इसी ओर चले।जिस प्रकार भ्रमर को पुष्प का पता पूछना नही पडता,उसी प्रकार श्री प्रिया जु के रूप रस लोभी भ्रमर लालजु मोहित से हुए इसी उपवन की ओर चले आए।
श्री प्रिया जु को अकेली देखकर अचानक से श्री प्रिया जु के सम्मुख,खीची हुई पिचकारी हाथ मे तानकर खडे हो गये।यू अचानक से लालजु को आया देख पहले तो लाडली जु चकित सी हुई,फिर बडे मीठे श्बदो से बोली---देखो लालजु,हम अभी स्नान करके,श्रृंगार करके आई है तुम हमारे उपर रंग नाय डारो।
लालजु कहे----काहे न डालू,ऐसा अवसर पुनः हो न हो,मै तो आज रंग डालूगा ही।
प्रिया जु कुछ डराती हुई सी मुस्कुराकर बोली---- लालजु,मेरी सखिया अभी आती ही होगी,तुमने कही मुझ पर रंग डाला तो वे तुम्हे रंगे बिना न छोडेगी,अच्छा हो!उनके आने के पूर्व ही तुम प्रस्थान कर जाओ।
लालजु बोले----तब तक तो मै तुमको रंग डालूगा प्यारी जु,यो कहकर रंग डालने को तैय्यार हुए।
लाडली जु पुनः बोली---ना डालो लालजू,हमे सूर्य पूजा कू जानो है।
लालजु बोले----एक शर्त पर नही डालूगा,यदि तुम....
लाडली जु----यदि तुम क्या?कहो।
लालजु---यदि तुम मुझे स्वयं आलिंगित करो तो न डालूगा।
लाडली जु ने जरा टेढी सी भौह कर लालजु को देखा और....और अपने हाथ मे पकडी फूलो से भरी डलिया लालजु के उपर फेकी और दौड पडी,सारे के सारे पुष्प लालजु पर....पीछे से लालजु भी दौडे,कुछ ही दूर जाकर दौडती हुई प्रियाजु की कलाई लालजु ने पकड ली।वही लाडली जु ने दूसरे हाथ से लालजु की पिचकारी पकड ली।
खूब खैचतान हुई,लालजु एक हाथ से लाडली जु व एक से प्रिया जु की कलाई पकडे हुए है और लाडली जु का एक हाथ लालजु के हाथ मे ओर एक से पिचकारी खैच रही।दोनो ही अपनी अपनी ओर को खैच रहे।
इतने मे सब सखिया भी प्रिया जु को ढूंढती ढूंढती वहाँ पहुच गई।सखियो ने जब दोनो को यू जोरा जोरी करते देखा तो कुछ सखियो ने तो लालजु को पीछे से घेर लिया और कुछ ने प्रिया जु संग मिलकर पिचकारी छिनी।
अब तो एक हाथ मे पिचकारी और एक हाथ कमर पर रख प्रिया जु लालजु के सामने कुछ टेढी सी खडी है।लालजु छोटा सा मुँह बनाए दोनो घुटने मोड प्रिया जु के सामने बैठे है।सब सखियो ने लालजु से मुकुट उतरवाकर प्रिया जु के चरणो मे रखवाया।सब सखिया मिलकर बोली प्यारी जु,अब इनके ही रंग से इनको रंगो सुनकर जैसे ही प्रिया जु लालजु पर पिचकारी तान रंग डालने को हुई,लालजु जोर जोर से हसने लगे।प्रिया जु सहित सब सखिया चकित रह गई।यह इनको क्या हुआ?अभई तो ठीक ठाक ते सरकार।
सब एक दूसरी का मुहँ देख रही है।ललिता जु बोली----लगता है,हार के भय से लालजु बौराय गये है।
लालजु पालथी मार वही बैठते हुए बोले----आओ,आओ...रंग डालो,डालो प्रिये!रंग डालो मुझ पर।
अब प्रिया जु ने जैसे ही पिचकारी चलाई,पिचकारी मे से हवा निकल कर रह गई....रंग निकलौ ही नाय,रंग होये तो निकरै भी।
लालजु तो खाली पिचकारी लेकर प्रिया जु को आलिंगन चाह रहे थे।चतुर शिरोमणी की ऐसी चतुराई देख लालजु,प्यारी जु संग सब सखिया खिलखिलाने लगी।प्रिया जु अत्यंत प्रीती मे भरकर लालजु के अंक मे जा विराजी और युगल ने परस्पर एक दूसरे को आलिंगन मे भर लिया।
लालजु की ऐसी रसमयी हार हुई।यह फागुन पुनः स्वयं को बडभागी मान इतराने लगा......

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