खैले लिपट लिपट दोऊ होली।
अंग अंग छूटै रंग पिचकारी,बौल मीठौ गुलाल कौ गौली।
लगी होर रंग डरवावै की,बात डारै कू पौरानी हौ ली।
सौई जीतै रंग अति डरावै,अटपटी अाजु कुंज कौ हौली।
उल्टी रीत सदा प्रीत कौ हौय,प्यारी मति न चलत इहा खौ ली।
युगल लिपट लिपट कर होली खेल रहे है।
अंग अंग से रस रंग की पिचकारी छूट रही है ओर अधरो को छूकर निकले वाला कोई बोल ही गुलाल की मीठी गोली है।
आज होर लगी है की कौन अधिक रंग डलवा सकता है।रंग डालने वाली बात कुछ पुरानी सी लग रही है।
जो अधिक रंग डलवावै सोई जीतेगा,किंतु देखो दोनो एक दूसरे को जिताने की होड मे लगे है।आज कुंज मे यह अटपटी सी होली हो रही है।
प्यारी प्रीत की रीत तो सदा जगत से उल्टी ही रहती है।यहाँ मति तो चलती ही नही है,वह तो पहले ही...खो ली री....
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