प्रियालाल जु प्रेम रंग रस होरि खेलत
सखियों संग खेलते हुए श्यामसुंदर जु प्रिया जु से मिलने के लिए अति व्याकुल हो रहे हैं।सखियों ने उनकी वंशी पिचकारी सब ले ली है पर किसी भी तरह से उन्हें अभी भी रसवर्धन हेतु प्रिया जु से मिलने नहीं दिया।वहीं दूसरी ओर प्रिया जु की भी ऐसी ही कुछ विदशा हो रही है।वे भी प्रियतम से मिलने को आकुल व्याकुल हो उठीं हैं।
सखी ने श्री युगल जु की रस तृषा को भांप लिया है और वह तुरंत प्रिया जु को संवरित करती हुई साथ ही कुछ विभिन्न पात्रों में महक भरे और रसीले फूलों का अर्क व रस एकत्रित करती है।सखी प्रियालाल जु की व्याकुलित हालत से स्वयं भी विचलित हो रही है पर प्रिया जु को उसकी ज़रूरत है यह जान खुद को संवरित किए हुए है।
प्रिया जु के रोम रोम से कृष्णनाम ध्वनि स्पष्ट सुनाई दे रही है और उनके अंगों से सुवास जैसे उच्छलित हो दावानल का स्वरूप ले रहा हो।वहाँ प्रियतम की दशा और भी अधिक तृषातुर है।द्वार पर खड़े प्रियतम को सखी पुकार लगाती है ताकि वे जान सकें कि प्रिया जु उनके ठीक पीछे वाले निकुंज में विराजित हैं।प्रिया जु मूर्छित ना हो जाएँ इस भाव से सखी तुरंत उठकर द्वार की ओर भागती है और प्रियतम का हाथ पकड़ उन्हें भीतर ले आती है।सखी इशारा भर कर श्यामसुंदर जु को प्रिया जु की ओर ले चलती है।
प्रिया जु की अत्यंत सुंदर रूप माधुरी देख श्यामसुंदर जु तो देखते ही रह जाते हैं पर प्रिया जु की दृष्टि अभी श्यामसुंदर जु पर नहीं पड़ी और वे स्वयं को अनावरित करने लगतीं हैं।सखी उनकी इस स्थिति से अवगत है और जाकर प्रिया जु की कंचुकी हटाकर उनके भुज मंडल को बड़े सुंदर ढंग से केवल उनकी चुनरी से ढंक देती है।प्रियतम श्यामसुंदर जु पहले तो अपनी प्राणप्रियतमा को इतना व्याकुल देख प्रसन्न होते हैं और फिर आगे आकर उन्हें अंक में भर लेते हैं।प्रिया जु श्यामसुंदर जु का स्पर्श पाते ही भावविमुग्ध हुईं मूर्छित हो गिरने लगतीं हैं कि श्यामसुंदर जु उन्हें ऐसे ही अंक में भरे हुए गोद में उठा लेते हैं।
सखी ने कई रंग बिरंगे पुष्प कलियों से श्यामा श्यामसुंदर जु के लिए रस सेज सजाई है और प्रियतम जु को वहीं ले आती है।ना जाने इस सखी के हृदय के भाव क्या रहे होंगे कि इसने कालिंदी के कूल पर ही रस श्य्या का भव्य निर्माण किया है।सखी ने अलग अलग रत्नजड़ित स्वर्ण पात्रों में विभिन्न रसीले फलों के रस भी वहीं लाड़ली लाल जु की शय्या के समीप ही रखे हैं।
क्रमशः
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