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र से रस , 33 , संगिनी जु

!! वचनामृत रसविनोद !!

रसविनोद नागर नागरी श्यामसुंदर श्यामा जु रसिक सिरमौर तो हैं ही पर उनके रसानंद में डूबे समस्त रसिक व सखियाँ प्रियालाल जु के प्रेम भरे रसविनोद और वचनामृत में सदैव छके रहते हैं।जहाँ श्यामा श्यामसुंदर जु के रसमाधुर्य में परस्पर सुख हेतु एक गहन अश्रुप्रवाहयुक्त गाम्भिर्य है वहीं उनकी रसलिप्त हास्यविनोद के भी अनंत कोटि की रसलीलाएँ भी बेशुमार हैं वे भी रसवर्धन और परस्पर सुखदान हेतु ही।इसी रस भरे हास्य विनोद से ब्रज बरसाना की धरा सदा रसमग्न सदैव उत्सव रूप झन्कृत रहती है।रसमग्न श्यामा श्यामसुंदर जु परस्पर प्रेम में डूबे रसमय हंसी ठिठोली भी करते हैं।सखियाँ इस मधुर प्रेम वार्ता में अपनी उपस्थिति से चारचाँद लगा देतीं हैं।परस्पर कभी प्रेम कटाक्ष तो कभी रस भरे उलाहने देतीं सखियाँ श्यामा जु को खिलखिलाकर हंसते देख आनंद में डूबने लगतीं हैं और श्यामसुंदर जु भी प्रिया जु को ऐसे हंसते खेलते देख अतिमधुर प्रेम भरे कटाक्षों का वैसा ही लाजवाब प्रतिउत्तर देते हुए सखियों संग ठहाके मार हंसते हैं।अति सुमधुर खिलखिलाते ठहाकों की ध्वनि पवन संग भावलहरियाँ बन बहती और समस्त कुंज निकुंजों में विचरती नभमंडल को भी झन्कृत कर देती है।सखियों के उलाहने तो कभी प्रियतम जु की प्रेम मनुहार सदैव रस बन रसिक हृदय मंदिरों में श्यामा जु के नूपुरों की सी मधुर झन्कार लिए उन्हें आनंद से विभोर करती है।उनकी मधुर चित्तवन रसभरी अंगकांति रसीली दामिनी सी कौंधती दंतावली और घण सी गरजती हास्य रसफुहारों की झन्कारें रसामृत बन बहतीं अनवरत।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
इन दिव्य रसानुभूतियों की
एक सुकोमलतम मधुर झन्कार मुझमें भी भर दो
तुम जो कह दो तो
थिरकती झन्कृत होऊं
रमती बहती रहूँ !!

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