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र से रस , 18 , संगिनी जु

!! प्रेम माधुर्य रति रस !!

अनुपम मधुर महक प्रेम की और अद्भुत सुंदर झन्कार मधुर रस की।गहन निष्काम प्रेम प्रियालाल जु का और प्रियालाल जु के प्रति प्यारी सखियों का।जहाँ एक तरफ मधुर लीला रस हेतु एकरूप प्रिया प्रियतम जु भिन्न स्वरूप धारण करते हैं वहीं उनकी कायव्यूहरूप सखियाँ उनकी मधुर भावभंगिमाएँ हैं।श्यामा श्यामसुंदर जु व सखी सहचरी और वृंदावन आनन कानन से ही रसरति केलिरस पूर्ण होता है।इन रतिरस केलिमाल लीलाओं में मधुर विशुद्ध प्रेम जीवंत है और जीवंत है इसका गहनतम माधुर्य रस जो जड़ चेतन में एक मधुर झन्कार बन समाया हुआ है।सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु के दिव्य आभूषणों की खनक झन्कार एक तरफ और इनके मधुर प्रेम की महती यमुना रसरूपरानी एक तरफ जो चिरकाल से चिरकाल तक माधुर्य की झन्कार को ले तरंगायित बहती है।इस माधुर्य की झन्कार यहाँ के तृण लताओं में भी पवन की सरसराहट से समाई हुई अनवरत बहती है।कण कण में मधु भरा जिस पर श्यामसुंदर स्वयं भ्रमर रूप मंडराते रहते अनंत रूपों में।श्यामा जु की रूप माधुरी इतनी असीम कि यह वृंदावन धरा धाम को सदा नवदुल्हन सा सजाए रखती है और श्यामसुंदर जु का प्रेम ऐसा कि कण कण से तरूणियों में झन्कृत तरंगायित रहता है सदा जिससे वे रसपरिपूर्ण रहती हैं।भ्रमर और पुष्प एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के स्पर्श स्पंदन से रसरूप।इस रस का उद्भव और उद्गम बहाव मधुर झन्कार से सिहराता और आकर्षण उत्पन्न करता।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे इस रस माधुर्य का किंचित स्पर्श दे दो
रति रस केलि का दरस दो
तुम जो कह दो तो
विशुद्ध प्रेम में प्रीति बन
सदा झन्कृत होती रहूँ
प्रेम रस की डोर से बंधी
अनवरत मधुर रस बन निरखुं !!

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