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र से रस , 22 , संगिनी जु

!! प्रतिक्षण वर्धमान रसवर्षण !!

एक गहरी व्याकुलता की झन्कार और वहीं दूसरी ओर एक गहन उत्सुकता प्रतिपल झन्कृत होती रहती भीतर कुछ सुखद करने की प्रियालाल जु हेतु।उनके मिलन हेतु एक उत्सुकता कि क्या कर इन्हें रिझाऊं कैसे इन्हें परस्पर मिलन सुख मिले कुछ ऐसा कर जाऊं।उत्सुकता तीव्र भाव जिसमें हर पल प्रियाप्रियतम जु को परस्पर निहारते रहने के लिए उकसाना और रसवर्षण हेतु कुछ मन में सदा भावनाओं का प्रवाह चलते रहना।कभी कुछ शरारत बन नेत्रों से कह जाने की उत्सुकता तो कभी कुछ खुसफुसाहट जो कर्णपुटों से स्वतः सुनाई दे।उत्सुकता जो प्रियालाल जु को परस्पर भी खींचती और वैसी ही सखियों के मन को भी झकझोरती रसवर्धन हेतु।क्षण क्षण प्रतिक्षण उधेड़ बुन सी झन्कृत होती रहती हिय में जो सदा अधूरी भी और पूर्ण भी बार बार उतार चढ़ाव जैसे तरंगों का।कब क्या कर जाने से श्रीयुगल को सुख हो।एक मुस्कान भर की सेवा से रीझ जाते आनंद के सागर श्यामा श्यामसुंदर जु पर वह एक मुस्कन आए और लहरा जाए इनके सुकोमलतम अधरों से।सुख को सुख और आनंद को आनंद देने की उत्सुकता।तृषित हंस हंसिनी की तृषा बढ़ाने की आकुलता और चकोर चकोरी को नयनाभिराम निहारने का सुख मिले ऐसा कुछ करने की व्याकुल उत्सुकता।सुखसमुद्र में निरंतर बहते रहने की उत्सुकता जो स्पंदन झन्कार रूप मीठा सा कुछ कह दे और कर दे रसवर्धन हेतु।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मुझे वही प्रतिक्षण वर्धमान झन्कार कर दो
जो सदा बहती रहे
तुम युगल से सखियों में और
सखियों से तुम युगल में
तुम जो कह दो तो
सुखसार रसवर्धन झन्कार बन
तनप्राणों में फुसफुसाहट सी गुदगुदाती रहूँ  !!

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