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र से रस , 34 , संगिनी जु

!! रसालाप रोमपुलक !!

रसमय माधुरी जोड़ी श्यामाश्याम जु की डूबी प्रेम सुभावों में सदा महकती चहकती आनंदस्कित रखती कुंज निकुंजों में बसते रमते एक एक अहोभागी कण तृण को।माधुर्य रस में भीगे श्रीयुगल परस्पर सुखदान करते कभी रसमग्न हो प्रेमालिंगन करते तो कभी रसवार्ता भी।सखियों संग बैठ जब प्यारी जु श्यामसुंदर संग बिताए पलों को याद कर क्षण क्षण भावस्कित होतीं तो सखियाँ भी उनसे प्रिय संग बीती रसमयी रात्रि की रसवार्ता छेड़ देतीं।प्रिया जु पहले तो आनाकानी करतीं पर फिर रसमद में चूर हुईं कुछ कुछ बताने लगतीं।हालाँकि कायव्यूहरूप सखियों से कुछ भी छुपा नहीं होता पर फिर भी प्रिया जु की मधुर वाणी का श्रवण करतीं सखियों को श्यामा जु गहन रसडुबकियाँ लगवातीं।उनके रोमपुलक झन्कृत करते प्रिया जु के मधुर रस भरे बोल और रसालाप में डूबीं प्रिया जु संग जो उनके रस गोते लगते उनका विवेचन कैसे हो।शर्माईं हुईं सी माधुरी की मूर्ति श्यामा जु जब श्यामसुंदर संग बिताए उन पलों को याद कर अपनी सखियों से रसालाप करतीं तो सखियों संग फिर से वे बार बार मंत्रमुग्ध रस में डूबतीं उतरतीं प्रियतम की यादों में खो जातीं।इस रसालाप से श्यामा जु व सखियों में रोमपुलक हो उठता जो झन्कार बन सदैव उनके अंगों में रोम रोम में सिहरता थिरकता उन्हें रसमय रखता है।श्यामा जु की अंतरंग सखियाँ उनकी अति सुकोमलतम रसकाया पर प्रियतम जु के रसनखों स्पर्श रस गहन आलिंगन और अधरराशि के रसचिन्ह देख पुकायमान होतीं उनका अपनी देह पर व रोमरोम में एहसास करती हैं।यह दिव्य रसालाप और रोमपुलक सखियों के तनप्राणों व रगों में जीवंत झन्कार रूप प्रियतम सुख हेतु सदैव गहराता और गहराता ही रहता है और प्रिया जु को रसमग्न रखता है।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
मधुरातिमधुर सुकोमल
रसलाप से रोम रोम पुलक उठे
ऐसी एक रसभरी डुबकी लगाऊं
तुम जो कह दो तो
आनंद भरी रसस्कित
पुलकित गहन झन्कार हो जाऊँ  !!

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