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प्रियालाल जु प्रेम रंग रस होरि खेलत 2 , सलोनी जु

वहाँ सखी निकुंज में अब और सुंदर दिव्य पात्रों में चंदन केसर इत्र अंगराग उबटन व श्रृंगार रस भर कर रखती है।एक पात्र में चित्रावली के लिए रंग और तुलिका व थाल में दिव्य आभूषण व वस्त्र रखे हैं।इसी तरह और सुंदर सुनहरी पात्रों में ताम्बूल व रसीले फल और मिष्ठान इत्यादि रखे हैं।सब तरह से रंगमगे सुंदर श्रृंगारों से निकुंज सज चुका है और उधर प्रियालाल जु परस्पर सुखरसपान करा जलकेलि से तृप्त हो निकुंज में प्रवेश करते हैं।दोनों भीगे हुए रसपात्र रसधार बहाते जैसे ही भीतर प्रवेश करते हैं सखी उन्हें सफेद रंग के झीने वस्त्र ओढ़ने के लिए दे कर बाहर चली जाती है।

प्रियालाल जु कुछ समय तक परस्पर निहारते रहते है और फिर एक दूसरे को प्रेम से संवरित करते हुए परस्पर तन से बहती रसबूँदों का समर्धन करने लगते हैं।इस रसपूर्ण प्रक्रिया में वे अनंत बार ढुरकते व संभलते हैं और परस्पर निहारते दिव्य अंगकांति का रूपपान करते नहीं अघाते।कभी पुष्पों में तो कभी ब्रजरज और कभी कालिन्दनंदिनी कूल पर विचरते श्यामा श्यामसुंदर जु यूँ ही एकांत में कुछ समय और व्यतीत करते हैं।वे परस्पर उबटन चंदन केसर लेप लगाकर जलक्रीड़ा करते स्नान करते हैं।

एकांत आवास और विश्राम के उपरांत सखी अन्य कुछ सखियों को संग लेकर निकुंज में प्रवेश करतीं हैं।प्रियालाल जु को रसमगे देख खिलखिलाती सी मुस्करा कर उनके निहोरे करतीं हैं कि युगल ऐसे रसरंग में डूबे हैं कि वस्त्र श्रृंगार और आभूषण तो छोड़ो इन्होंने कुछ भी खाया भी नहीं है।ऐसी गहरी रूपरस रंग होरी कि युगल के लिए परस्पर मिलन और स्नेह ही सब कुछ है आज।

सखियाँ प्रियालाल जु को निकुंज के बाहर भी होली के रंगों का रंगारंग आयोजन रखे होने की याद दिलातीं हैं और उन्हें श्रृंगार कर बाहर चलने का आग्रह करतीं हैं।यह सुन प्रियालाल जु भी सखियों के सुख हेतु जल्दी से वस्त्र पहन आते हैं।प्रिया जु प्रियतम का व प्रियतम प्रिया जु का श्रृंगार करते हैं ऐसा सुंदरतम कि जो कभी किसी ने ना किया हो।श्यामसुंदर जु उनके एक एक अंग को दिव्य आभूषणों से सजाते हैं और प्रिया जु भी शिख से नख तक प्रियतम का भव्य श्रृंगार करतीं हैं।सखियाँ उनकी सहायता कर रही हैं और ध्यान रखे हैं कि परस्पर श्रृंगार धराते राधामाधव फिर से डूबने ना लगें।जैसे ही श्यामसुंदर जु हाथ में तुलिका ले श्यामा जु के कोमलतम अंगों पर चित्र बनाने लगते हैं उनकी रूपमाधुरी से मुग्ध हो जाते हैं।ऐसी ही गहनतम विदशा प्रिया जु की है पर सखियाँ अब उन्हें संवरित करने में सेवारत भाव से पूरा ध्यान रखे हुए हैं।वेणी गुंथन से ले अखियों में काजल डालने तक सभी श्रृंगार परस्पर सुखहेतु स्वतः ही पूर्ण हो जाते हैं।

सखियाँ प्रियालाल जु को पूर्णतः श्रृंगारित देख उनकी अद्भुत सुंदर रूपरस पर बलाईयाँ लेतीं हैं और फिर उन्हें साथ ही सजाए गए एक निकुंज में झूले पर विराजित करतीं हैं और सभी खाद्य मिष्ठान इत्यादि वहीं ले जाकर रख देतीं हैं।यह निकुंज समक्ष द्वारनुमा बना हुआ है जिसके ठीक सामने होली के रंग में रंगे सखागण व सखियाँ ढोल ताल मृदंग मंजीर बजाते नाच गा रहे हैं और प्रियालाल जु की एक छवि का दर्शन पाने के लिए मंगल गीत गा रहे हैं।

तभी सेवारत सखियाँ निकुंज के चारों ओर लगे पट हटा देतीं हैं और एक एक कर जब सबकी निगाह श्यामा श्यामसुंदर जु की अति दिव्य झाँकी पर पड़ती है तो कुछ क्षणों के लिए सब दर्शन लालसा लिए मंत्रमुग्ध हो ठहर से जाते हैं और फिर धीरे धीरे सब पहले ही की तरह नाचने गाने बजाने लगते हैं और मंगल बधाईयाँ गाते हैं।सखियाँ प्रियालाल जु को ताम्बूल फल मिष्ठान इत्यादि छकातीं हैं और अंत में उनकी अधरामृतयुक्त भोज्य सामग्री को प्रासाद रूप सभी किंकरी मंजरी सहचरी सखाओं में बंटवा देतीं हैं।चहुं ओर होली की हो हो और मंगल बधावे बज रहे हैं जिसे देख युगल अत्यंत सुख पा रहे हैं और सर्वत्र दर्शन सुख दे रहे हैं।

जय जय श्यामाश्याम  !!
जय जय सखीवृंद वृंदावन धाम !!

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