"बिहारी तेरे नैना रूप भरे
निरखि निरखि प्यारी राधे कौं अनत न कहूँ टरे"
आज सब सखियन ने मिल स्यामा स्यामसुंदर कू खूब सुंदर बस्त्राभूसनों से सजाह्यौ है !स्यामसुंदर नै नीलो उपरेनो संग लाल झगा व गुलाबी धोती पहनो है और स्यामा जु नै लाल कंचुकी संग नीलो लहंगो पर गुलाबी चूनरी लै रखी !एकहु रसरंग एकहु वयकाठ सब एकहु जैसो स्यामास्यामसुंदर की पहरान एकहु और एकहु रंग रचै याकै बस्त्राभूसण....अद्भुत लगै है याकी जुगल जोरि सखी री !!बलि जाऊँ
पर जाने क्या अद्भुत है गयो री...
सखियाँ याको भिन्न भिन्न कुंज में सिंगार धराए रहीं पर एक जैसो !और दोऊ फूलन ऐसो फूल रहै के यातै सिंगार भी धराह्यौ ना जावै !
तबै सखियन स्यामा स्यामसुंदर नै कुंजन सों बाहर उपबन में सन्मुख लै आईं एक दूजे को निहार सकैं इतो सन्मुख !
स्यामा जु स्यामसुंदर नै देख जहाँ लजा गईं वहीं स्यामसुंदर तो जैसे उतावले हो रहै पर सखियों ने तो उनको वहीं चौकी पर बिठाए कै आनंद बढ़ावै खातर छेड़नो आरम्भ कर दियो !
एक कहै स्यामा जु अति भोरी और सुंदर लग रही...दूजी कहै याकी चूनरी और बेसर अति सुंदर ...कोई याके किसी अंग कौ सहरावै कोई याके हाव भावों को नयन भर बिलोकै ....कोई आभूसन तो कोई बस्त्र निहारै....कोई याकी चंद्रिका व पायल कटिबद्ध कू तो कोई कजरारे नयनों और भुजंग सम वेणी कू उपमा देय रही !
स्यामसुंदर या सबनहुं की बातन पै खूब इतराए रह्यौ !
पर तभी स्यामसुंदर की आतुरता देख स्यामा जु की सखियन ने याकै रूप पर कटाक्ष करनो आरम्भ कियो जिन्हें सुन स्यामा जु तनिक कभी मुस्काती और कभी खिलखिला कर हंस देतीं और यहाँ स्यामसुंदर स्यामा जु की हंसन मुस्कन पर भीतर ही भीतर और खुस है रहे और ऊपर से स्यामा जु को और रसरूप निरखनो तांई सखियन की छेड़न पर नटखट नटवर तीक्ष्ण कटाक्ष कर बात बढ़ाने लगै।
रसबर्धन हेतु बात तो बढ़ी पर सखियन संग ही।एक याकै नयन कटारों पर तो दूजी याकै टेढ़ी टाँग त्रिभंगी रूप पर कटाक्ष करती तो कोई भोरेपन चंचलता पर !एक कही याकी ज्ह बंशी ही बस मधुर बोल बोलनो जानै है शेष सब तो कारो जैसो कारो ही....दूजी बोली या राधा नाम उच्चारे सोई भली लागै बैरन ...तबै एक बोली या बंशी तो याको राधा ही जापै है री तबै चिपकै है यानै इतो.....जितो भिन्न भिन्न भावापन्न सखियाँ उतो ही भिन्न भिन्न याकी छेड़न और कटाछ पर काज सबनहुं कौ एक ही....जुगल रस....
मन ही मन स्यामास्यामसुंदर अति मधुर मिलन सौं मधुर भावों कू सींचन कर रहै.... !
" सुख कौ सार समूह किसोरी उमँगि उमँगि अंकौं भरै
श्रीललितमोहिनी की निजु जीवन उर सौं उरज अरे"
कुछ ही समय में सखियाँ सब जुगल काज सेबा हेतु वहाँ तै जानै लगीं और एक एक कर जब सब गईं तो जुगल जोरि कौ तनिक एकांत मिलह्यौ !स्यामसुंदर धीरे से स्यामा जु के पास सरके और स्यामा जु ने याकै कपोलों पर हाथ धर यानै अति प्रेम कियो कि आज सखियन नै खूब सताह्यौ !
पर स्यामासुंदर धीर अधीर स्यामा जु नै प्रेम से पकर संग बैठाए लियो और तनिक याकी रूपमाधुरी कौ नयनों से पान कर याको तनिक अपने कर सौं मस्तक पकर अपने कंधे पर धराए लियो और स्यामा जु जैसे'जोई जोई प्यारो करै सोई मोहै भावै'के भाव से नयन मूँद वहीं पधार भी गईं।
स्यामसुंदर नै बंसिया निकाली और उस पर अधर धर मधुर तान छेड़ अखियाँ मूंद लीं जैसे उनसे कह रहे कि ज्ह सखियन और तुम अभिन्न नै हो प्यारि....
सखियन ज्ह अद्भुत छबि देख मंद मुस्काईं और उन्हें यूँ डूबे देख नयनसुख अमृतरस पान कर रहीं !
जैसे भक्त भगवान कू और भगवान भक्त कू बढ़ावै है परस्पर की बड़ाई करै कै ना अघावै ऐसे ही नयन मूंदे स्यामास्यामसुंदर जु परस्पर में डूबे परस्पर की बड़ाई कर रहै और अपनो सौभाग्य सहरावै कै तांई सखियन व बिंद्राबन कू रससार कर रहै अनंत जुगों से....
" प्यारी तोपै कितौक संग्रह छबिन कौ
अंग अंग प्रति नाना भाइ दिखावति।
हाथ किन्नरी मध्य सचु पाइं सुलप
राग रागिनी सौं तू मिलि गावति।।
कहा कहौं इक जीभ अनगिनत
हारि परयौ कछु कहत न आवति।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कहत री प्यारि
तू जे जे भाइ ल्यावति।।"
बलि बलि याकै या निश्चल प्रेम तै सखि !!पियप्यारि संगिनी जा छबि तै बलिहारि तन मन वारि !!
"मेरी अखियाँ रूप के रंग रंगीं
निरखि स्वरूप कुँवरि राधे कौ याही माँझ पगीं
छिन छिन प्रति अबलोकि माधुरी न सोई न जगीं
श्रीहरिदासी जु ललित केलि हित याही में जगमगीं"
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