Skip to main content

सर्वसगुण सम्पन्ना श्यामा श्यामा , संगिनी जु

*गुणरत्ने*

*श्रीराधारसिकेश्वरीं प्रणयिनीं सर्वांगभूषावृतां श्रीवृंदावननिकुञ्जकेलिनिपुणां कोटीन्दुशोभायुताम्।
श्रीकृष्णः निकुञ्जेश्वरीं सुखकरीं इच्छासखीपोषिणीम्।।
श्रीश्यामां मधुरस्वरां सुनयनां कृष्णप्रभां बुद्धिदां सर्वाभीष्टप्रदां सुलक्षणयुतां स्वीयेषु प्रेमप्रदाम्।
आराध्यां च सुपूजितां सुललितां सर्वांगशोभाभृतां वन्दे तां निकुञ्जेश्वरीं सुखमयीं श्रीकृष्णस्यांगेस्थिताम्।।
आह्लादामृतवर्षिणीं रसवतीं सर्वस्यचिन्तामणिं कृष्णाकर्षणकारिणीं प्रियतमां श्रीकृष्णप्राणाधिकाम्।
कृष्णप्रेमविवर्द्धिनीं रसमयीं क्रीडारसास्वादिनीं वन्दे तां सुखवर्द्धिनीं सुरुचिरां कृष्णेतिसम्वादिनीम्।।*

गुणातीत प्रीति की गुण की बात क्या करूँ री...सर्व गुणों की आश्रया... सर्वगुणसुगन्धिनी... ! सर्वनिधिन की निधि... ! विलक्षणा निर्गुणेश्वरी सर्वगुणों में निज स्पर्श से रसप्रवाहिनी विल्क्षणा... !
सर्वगुणता की पराकाष्ठा... ! गुननि राइ सिरमौर... ! प्यारी मयूरेश्वरी नित्य शिरोमणीके ।
गुणातीत किशोरी जू... सर्वगुणाश्रया किशोरी जू...
गुणों की खान रसखान हमारी दुलारी श्यामा जू और वहीं गुणातीत...आह... !
अब यही तो विडम्बना है री...सर्वगुणसम्पन्ना स्वयं सर्वगुणों की अधिष्ठात्रि हैं  उनकी गुणवत्ता का गान भला कैसे कोई करें...और सखी तू तो जाने ना कि सम्पूर्ण छाया को स्पर्श ही हमारी प्यारी जू की करि लेनो असम्भव तो सखी री...परमगुणों की...सकल कलाओं की एकहूँ जे रसिली नागरी स्वामिनी हमारी भोरी सरकार जू...
कोई कोई , कुछेक गुणों को धारण कर अपनी गुणवत्ता का बखान सम्भव है परन्तु सर्वगुणाश्रया का बखान करने का पृथक गुण कहा प्रकट होगा री...मोरी श्रीप्रिया परमसौंदर्या... ! श्रीप्रिया उज्ज्वल रसप्रवीणा... ! श्रीप्रिया ब्रह्मगुणातीत... !श्रीप्रिया शिवातीत शैव्या... ! श्रीप्रिया आश्रयशक्ति देवियों की  सुश्रीसुदेवीके ... ! श्रीप्रिया सुकुलीने... ! श्रीप्रिया रसिक सिरमौरणी ... ! श्रीप्रिया निततृषित श्यामसुंदर रसविवर्धनी... ! श्रीप्रिया मधु-अलंकृतीके... ! श्रीप्रिया रागिनी ...सर्वराग-रागिनियों ताल-बंधानों नृत्य गीत संगीत कलाओं की अधिष्ठात्री... !  आह... रसशब्दस्फुरिणी श्रीप्रिया  ...नि:शब्द... निःशब्द सजल नयनों से बहता हृदय ही अनुगमन कर पाता है इन नयननृतिका जू के ।  अश्रुपूरित नयनों से केवल निहार ही पाती... कोई सारिका (मैना) जैसे वह कलरव विहीन हो गई हो इस मधुरतम सुरभिनि झाँकी में । नित्य सँग रहती कोकिलायें सारिकाएँ जिसकी मधुता से स्वरातीत हो जावे तब सखी , मौ में तैं ऐसो एकहु भी गुण ना है री कि निज स्वामिनी के तांई एक भी रसालंकार सुसज्जित कर धारण कराए सकूँ...जे तो प्रीति की रीति...जो विधना रचि डारि कि कुछ कह रसना कौ सेवा अवसर दे दियो री...अन्यथा ...प्यारी प्यारी प्यारी .....
* प्यारी जू एक बात कौ मोंहि डर आवत है री मति कबहूँ कुमया करि जाति।*
*गुणरत्ने*... !हिय विराजो...श्यामघन...संग तोय निहार सकूँ... !तोरि निहारन को निरख प्यारी जू की गुणझाँकी नयनों की नेहज्योति को जलाए किंचित मात्र हियकुंज में उतार बरनन करि सकूँ प्रिये...आओ...विराजो प्यारी जु निजहिय पर  हियप्राणप्रियतमे...
अश्रुप्रसून पिरो गुणरत्ने को चक्षुमुंदित निज चरनन धराए सकूँ...आओ...मेरे नित्य रसीली सँग ...
कृपाकटाक्षिणी के श्रीचरण रेणुका को अपनी सुकमलिनी कोमल नयन में भर ...रसलबी-पलकों से विहारते प्राणसङ्गिनि के नित्य प्रियतम आओ... ... ...
श्रीवृन्दावन...  श्रीवृन्दावन... श्रीवृन्दावन की सघन निकुंजों में सखियन संग प्रिय हियवासिनी श्यामा जु श्य्या पर पौढ़ी सखी जु की मधुर वीणा राग रागिनियों की रसभीनी रसतरंगों के हिंडोरे में झूलतीं लीन हैं। (... प्यारी जु एक बात को मोहे डर आवे री ... ) सखी जु एक एक कर कई पद गा गा कर श्यामा जु का मन लुभा रहीं हैं और जिस तन्मयता से वीणा वादिनी ललिता जु वीणा की तारों पर सुकोमल रस-अंगुलियों को थिरका रहीं हैं उसी तन्मयता से श्यामा जु इन्हें हियवासित प्रियतम संग डूबीं हुईं सुन कर ग्रहण कर रहीं हैं।
सखी जु हर एक भाव में श्यामा जु के सौभाग्य को सरहा रहीं हैं कि उन्हें बेमोल कैंकर्यपूर्ण परमाधीन प्रियतम ...उत्कृष्ट प्रेम करने वाले विश्वमोहन श्यामसुंदर के प्राणों में वास करने वाली श्यामा महारानी की चाकरी मिली ।  ....जैसे जैसे रागनियों में छुपे भाव खिल रहे वैसे ही श्यामा जु में प्रियतम मिलन की उत्कण्ठा गहरा रही।   (वीणा से झरती झंकारों से प्रियतम हिय की झंकारें अभिन्न रस दे रही... प्यारे जु के हिय से सखी प्यारी को पियसँग सुख दे रही है... वीणा नहीँ प्रियतम हिय -राग झनक रही... अलि प्यारे के हिय की गा रही , प्यारीजु भी प्यारेजु के हिय की झनक-झनक से पुलकित हो रही ... नटवर-स्मृति नविली श्रीप्रियाजु का भाव श्रृंगार हो रहा इन सखियों की वाणियों में)   ... प्रियतम श्यामसुंदर जु की गुणावली के गान में यहाँ श्यामा जु डूबीं हैं और वहाँ निकुंज द्वार पर छुप कर वेदी पर बैठे श्यामसुंदर जु श्यामा जु को निहार रहे हैं कि कितनी प्रियता से रसीली श्यामा जु भावसुमन नवखिलित क्यारी की अति ही सुंदर सुकोमल कमलिनी सी शय्या पर विराजित हैं। (निजहिय के अनिवर्चनीय भाव अलि के वादन-गान में ऐसे झर रहे कि केलि युगल हिय में अपने सम्पूर्ण निभृत भाव श्रृंगार में डूब गई है... परस्पर हिय में अलि भाव झारी को पी रहे दोऊ रस-बाँवरे ... यह भाव प्रियतम स्वयं कह नहीँ पाते तो ऐसी भाव स्वरूपिणी प्रियाजु झाँकी निरख भी सखीजु के इस अनुरागित राग अलाप से पी  रहें प्रियतम प्यारे ... अनुराग भरा अमृत रस )
(प्यारी तू गुणनराई सिरमौर ... )
श्यामा जु इतनी लीन हो चुकी हैं कि उन्हें अपनी सुधि नहीं और उनके नयनों से प्रेमाश्रु आंतरिकवर्षण कर हियवसित श्यामसुंदर को रसमय कर रहे हैं ... भीतर हियवेदी पर झरते प्रेमाश्रु जैसे हिमवर्षा प्रियहिय पर ही... ।  और यह देख श्यामसुंदर वीणा-राग के मध्य से ही वहीं बैठे वेणु पर श्यामा जु की सर्वसगुणातीत रसझांकी का गान करने लगते हैं जिसे सुन सखी जु उनकी राग से राग-ताल मिलाकर गाने लगतीं हैं और उधर श्यामा जु वेणुरव सुनते ही श्यामसुंदर जु की त्रिभंगी मुद्रित रसछवि का ध्यान करतीं उन्हें ढूँढने लगतीं हैं। (भीतर और बाहर खोजती यह नित्य विहारिणी निज हिय में प्रियतम के विहार की परमोच्च स्थिति में वंदना में डूब गई है... यहाँ सखी और प्यारे जु के प्यारी गुणगान में डुब गये... श्रीहरि... श्रीहरिदासी...  ललिते प्यारी उर सुखार्थ... ललिते श्रीहरिदासी )
उनके चरण जैसे श्यामसुंदर उन्हें अपने हिय में बसाए हुए हों ऐसे मंद मंद इधर उधर थिरक उठे हैं।
श्यामसुंदर जु अपने सौभाग्य को सराहते हुए श्यामा जु की गुणावली का वेणुगान कर रहे हैं और उनके प्रेमाश्रु श्यामा जु के चरणकमलों का अपने हृदय में रसनाद से प्रक्षालन !!
"सर्वसगुणसम्पन्ना श्यामा जु के चरणों में अत्यंत दुर्लभ शक्ति चिन्ह और करों में प्रेमलक्षणा भक्ति की सौभाग्य की रेखाएँ हैं जो प्रियतम श्यामसुंदर जु का शक्ति व प्रेम स्वरूपा आह्लाद हैं।
श्यामा जु निरखने में जितनी सुघड़ व नयनाभिराम रूप सौंदर्य माधुर्य की राशि हैं उससे भी अधिक अनंतानंत सद्गुणों की अंतरंग रसप्रतिमा हैं।
कुछ आंगिक... !कुछ वाचिक... !कुछ मानसिक... !और कुछ परसन्बंधरूप से ऐसे चार तरह के अभिन्न गुणों का बखान हमारे रसिक संतों ने किया है श्रीगुणरत्ने जू के...
जिनमें सुमाधुर्यादि छह गुण शारीरिक हैं... !संगीतप्रसराभिज्ञादि वाचिक... !विनीतादि दस मानसिक सद्गुण... !और गोकुलप्रेमवसति इत्यादि छह परसम्बंध रूपगुण हैं... !उनमें से माधुर्य शब्द द्वारा चारुता...नव्यवय शब्द से मध्य कैशोर...व सौभाग्यरेखा शब्द से करों व चरणों में नाना प्रकार के शुभ सौभाग्ययुक्त चिन्ह हैं...मर्यादा शब्द से श्रीकिशोरी जु की साधुता अनन्य-मार्ग पर सदा अविचलित...
लज्जा...सुशीलता...व आभिजात्य हैं...धैर्य व भक्तिरसामृतसिन्धु अन्तान्त गुण हमारी प्रियतमप्यारी जू के...शब्दातीत गुणातीत किशोरी लावण्यसारा हमारी विलक्षणगुणधारिणी के...जयजय... !"
श्रीप्रियतम हिय अनुभव करता प्यारी के भावगुणों की नवीन - नवीन वर्षाएँ और उन रसवर्षाओं की वाणियाँ झरती श्रीप्रिया की नित्य सखियाँ ....
सखी री...अब पंगु पड़ती व अपनी छोटी सी बुद्धि से गुणरत्ने प्यारी जू के कुछ विशाल सद्गुणों का यहाँ विवेचन करती हूँ जो प्यारे जू की निहारन से हियकुंज में प्रकाशित हो रहे...हालाँकि तुझे पहले ही अपनी अवगुणों की झीनी गठरी होने का सांचा बखान कर चुकी हूँ पर पिय व सखी सहचरी हितकर उनके ही आशीष के वशीभूत नन्ही कली सी अति गहनतम रसमकरंद को भीतर सहेजे किंचित रसभ्रमर सुखरूप सेवा हेतु ...मात्र तनिक शिशुवत प्रयास...  श्रीवृन्दावन जयजय श्रीवृन्दावन , नीरस पशु मान क्षमा करियो री सखी ...

"पतिमनहरिनी !रसरासविलासिनी !नागरी !ललित लड़ैती रसिकिनी !गौरांगी हरिवल्लभा !चारूचंद्रिका मौलिनी !श्रीफलतुल्यपयोधरी !पृथुनितम्बिनी !कृसकटिधारिणी !बिनुभूषण आभूषिणी !नवलकिशोरी कोमला !नवयोवना !वीणा वेणु नाद विमोहिनी !अह्लादिनी !उरुन्मादिनी !वल्लभ शोकनिवारिनी !नित्यबिहारिणी !निधिवनमनि हरिदासि हितनी !मधुरा !नित्य किशोरी !चंचल कटाक्षिणी मृगनयनी !उज्ज्वल मृदुमधुर हास्यकारिणी !नर्मपण्डिता !मृदुमधुर भाषिणी !सुविलासा !सुविलासाप्रिया !उज्ज्वले !उन्मत्त अंगगंधधारिणी जिससे श्यामसुंदर भ्रमररूप सदैव उनका अवलोकन करते रहते !संगीत नृत्य पंडिता !मृदुभाषिणी !रसचतुरा !विनीत !करूण !दयालु !लज्जाशीला !गम्भीरा !कुशला !धैर्यशीला !महाभावा !कीर्तिदा !स्नेहिका !मर्यादाधारिणी !नववया !रम्यवाका !कीर्तिदा !सखीप्रधाना !रसविदग्धा ! संगीतविशारदा !प्रियमनवासिनी जिनके अधीन सदैव प्रियतम !वृंदावनेश्वरी !कुंजनिकुंजबिहारणी !रसीली गर्बीली लाड़ली !रति विलास विनोदिनी  !उरजनी पियपरसिनी !अधर सुधारस वर्षिणी !गोकुलेशहिय हर्षिणी !मुरली क्षवणनि !वृषभानुनंदिनी !ब्रजरसरानी !भोरी बरसानेवाली !उज्ज्वला !सुकुमारी !प्राणनि रससरसनी !सुरतरंग संग्रामिनी !प्रियहित सिंगारिनी !सहज आनंददायिनी !विरहव्यथानसाविनी !  नित्यनवविलासिता !तत्सुखसुखिता !सर्वरसविद्दातीतनी !मदनमान भंगिनी !
चपला !जमुना जलक्रीड़ानी !कोकिलपिकबैनी !कामिनी !कृष्णचिरसंगिनी !रसिकमनहरिणी !कोक कला प्रवीणा !प्रेमदायिनी !समस्तविकार खंडिनी !मानिनी !चतुरा !मोहन मनमोहिनी !अह्लादिनी !उन्मादिनी !रसउमगिनी !"
ऐसी सर्वगुणातीत उदार स्वामिनी जु के आंगिक...वाचिक...मानसिक...परसम्बंधगत अनंतानंत सगुण जिनके गान में श्यामसुंदर लीन हैं कि ऐसी प्रिया जु सर्वसगुणसम्पन्ना मेरी सहगामिनी हैं जिनसे मैं श्यामसुंदर अह्लादित उन्मादित व सर्वगुणकारी रसीला कलापांडित्य शालीन सदा बना रहता हूँ और जिन्हें सुनकर सखियाँ प्रेमलब्धा अविचला प्रियतमा श्यामा जु पर बलिहारी जातीं हैं और सदा सेवायत रहती हैं।
प्रिया जु की रसछटा प्रियतम की अंगकांति के प्रतिबिम्ब को पाते ही उनकी ओर अग्रसर हो चलीं।जैसे ही प्रिया जु की रसमाधुर्य युक्त आभा प्रभा रससौंदर्य के परम रसपारखी व पंडित श्यामसुंदर जु के समक्ष आती है तो सम्पूर्ण निकुंज लताएँ पक्षी व सखियाँ मौन उन्हें रसोन्मत्त पर प्रेमजड़ता से निहारते रह जाते हैं और श्यामा जु वेणु में प्रियतम श्यामसुंदर जु द्वारा गाई जा रही स्वयं की नामावली का पान कर रसपूरित हिय से वंशी को उनके अधरों से हटा उन्हें गहन भुजपाश में बाँध लेतीं हैं ....
*गुन की बात राधे तेरे आगे को जानें जो जानें सो कछु उनहारि।
नृत्य गीत ताल भेदनि के विभेद जानें कहूँ जिते किते देखे झारि।।
तत्व सुद्ध स्वरूप रेख परमान जे विज्ञ सुघर ते पचे भारि।
श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी नैंक तुम्हारी प्रकृति के अंग अंग और गुनी परे हारि।।*
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...