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श्रृंगार कुँज झारी , संगिनी जु

श्रृंगार कुंज में श्यामा जु अपने ही आभूषणों की मधुरमय रागिनी में मग्न हुईं एक एक किंकणी नूपुर के स्वर सुन रहीं हैं जिनसे उन्हें 'रमण रमण' सुनाई दे रहा है। वे इस सुमधुर नामोच्चारण का श्रवण कर रहीं हैं कि अचानक कुंज के बाहर उन्हें वंशी की मधुरिमा खींच लाती है और वो जिस अवस्था में बैठीं हैं वैसे ही उठ भागतीं हैं......
एक कर में पाजेब और दूसरे में सिर से सरकी धरा को छूती झीनी चूनरी के साथ ही उन्होंने दोनों करकमलों से जरीदार ने नीले लहंगे को तनिक ऊपर उठा रखा है....
मंद मंथर गति से वे मृगलोचिनी यूँ धरा पर चहलकदमी कर रहीं हैं जैसे मदनुन्मुख श्यामसुंदर उन्हें देख ना लें....
एक चरण की पैंजनियाँ कर में हैं और अति सुकोमलतम सुंदर सुललित अल्तायुक्त एढ़ियों को ऊपर उठाए नख व बिछुओं से सजी कमल पंखड़ियों सम खिलित सुकोमल पदांगुलियों को धरा पर टिकाए आगे बढ़ रहीं हैं....
नूपुर किंकणियों की भ्रमराकर्षणकारी आमंत्रणकारी सुमधुर ध्वनियों की घुनघुन छनछन तो थम नहीं रही और वहाँ श्यामसुंदर जु की वंशी की तान भी कभी मंद तो कभी मनमत्त पवन संग बहती हुई सी कर्णफूलों को सरसरा रही है....
जैसे नूपुर किंकणी और वंशी की खनखन और रवरव परस्पर कोई खेल खेल रहे हों.....
तभी श्यामसुंदर जु के पीताम्बर की झलकन देख यहाँ श्यामा जु कदम्ब की आढ़ ले लेतीं हैं और वहाँ इनकी अतीव रस महक पाते ही श्यामसुंदर भी एक दूसरे कदम्ब पीछे छुप जाते हैं और वंशी व नूपुर की ध्वनियाँ मौन हो जाती हैं.....
श्यामा जु जहाँ प्रियतम श्यामसुंदर जु की नटखट खेलन पर मंद मुस्करा रहीं हैं वहीं श्यामसुंदर पल भर मौन किनकिन ध्वनि से विचलित हो उठते हैं और धीर अधीर हो एक एक पग श्यामा जु की तरफ बढ़ रहे हैं पर श्यामा जु को उनकी दशा का बोध नहीं सो वो कदम्ब की आढ़ में छुपी हुईं प्रिय की चरणथाप का कर्णों से अवलोकन करतीं तनिक अपने नयनों की रसमयी तिरछी तीक्ष्ण पुतलियों से निहारतीं हैं और श्यामसुंदर को उसी कदम्ब की दूसरी ओर मुख करके बैठे हुए देख खिलखिलाकर सहसा उनके सम्मुख आ जातीं हैं...
श्यामसुंदर जु के श्रमजलकणों से चमकते ललाट व कंपित अधरों को देख श्यामा जु क्षण में ही करों से पायल चूनर व लहंगा छोड़ श्यामसुंदर जु को थाम अपनी गोद में लिटा लेतीं हैं.....
करूणापूर्णा श्यामा जु अपनी चूनर से प्रिय के मुखकमल से श्रमजल पोंछतीं हुईं उनके वक्ष् को सहला रहीं हैं और श्यामसुंदर मौन नम नेत्रप्यालों में प्रिया जु का रूप सौंदर्य भर रहे हैं।दोनों प्रिय रसमाधुरियों के चंचल नयन और अधर मंद मुस्कन लिए परस्पर तृषातुर रससींचन कर रहे हैं.....
श्यामसुंदर जु के वक्ष् पर ढुरकीं हुईं श्यामा जु नीलकांति से सुशोभित हो रहीं हैं और श्यामसुंदर श्यामा जु का पीतवर्ण रसप्रतिबिम्ब औढ़े हुए हैं ......

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