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सोलह श्रृंगारधारिणी रसिलीसलोनी श्यामाजु , संगिनी जु

"सोलह श्रृंगारधारिणी रसिलीसलोनी श्यामाजु"

शीतल सलिल कालिन्दिनी पावन कूल पर अंतरंग सखियों संग सुअंग कमल समूहों की मधुर झन्कारों की तृषित सुक्षुप्ति कर्णरंधों को आकर्षित करतीं ... उन सखियों सँग श्रीप्रिया अंग स्पंदन को सुनने को समूची वल्लरियाँ श्रीवृन्दावन में नित्य नव प्राणमय हो रही ...
जैसे ये ना सुनाई आएँ तो सम्पूर्ण हियवसित ब्रजमंडल सूना ही रह जाए ... शब्द और शब्द से सृष्टि । माधुर्य के यह स्वभाविक शब्द और इनकी सहज मधुर निधि श्रीवनराज ...
अहा !!मंद से तीव्र होतीं कभी मधुर तो कभी छेड़छाड़ से छिटकती उलझतीं सी रस झन्कारें.... !! ... और खिलती केलि कुमुदिनियाँ ... नित्य सजता श्रीवन ... वृन्दावन ।
परस्पर श्रृंगार वन से श्रीप्रिया का और श्रीप्रिया से वन... अनन्तभाव कुँजन के समूह श्रीवनचन्द्र ... श्रीवृन्दावन ।।।
सघन निकुंजों से घिरे यमुना जी के तट पर उस सुरम्य पुष्प वल्लरियों से घिरे निभृत-कुंड से सोंधी सी महक उठ कर दसों दिशाओं का भोर का आमंत्रण दे रही है और तट पर अर्धखिलित कलियाँ तब पूर्णरूपेण पुष्प बन खिल उठतीं हैं जब अति सुकोमलांगि प्रिया जु के श्रीचरण कुंड से ऊपर पथ पर आ सजते हैं और उनकी अद्भुत दामिनियों के यूथ से भी अतीव दमक लिए उनके चरणनखों के सौंदर्य प्रभा को छूकर ही जैसे सूर्य प्रकाशित होता है ऐसे भोर की पहली किरण का आगमन होता प्रिया जु के पदकमलों में नतमस्तक ... सँग रात्रि में घिरा हुआ और यह विलास विवर्त दिवा रूप प्रसारित भावविकास श्रीप्रियाजु का ...  (भास्कर-प्रभा अपनी सुप्रभा स्वामिनी अधिष्ठात्री श्रीप्रियाजु से अभिन्न बिंदुमात्र)
उनके कोमल चरणों में अनवट और लाल के करों की छुअन से अतीव स्फुरित लालित्य प्राप्त युगलचरणों में सजा चहका सा अल्ता जैसे आसमान की नव-लालिमा... उनके चरणों में चंद्रायन की शीतलता लिए बस एक ही नूपुर युक्त प्यारी सी पायल अहा !! शेष नूपुर रस निकुंज में तत्प्रकट लीला में समाधि में जो डूब गए ... !!
निविबंधन पर ... नीला परिधान ना नीलमणि ...युगल करकमलों में जावक ... ना प्रियवर अनुराग और युगकंकण... ना पियजु की हँसिनी कांतियाँ ... कटिप्रदेस पर अति क्षीण सी नन्हीं कली सम झूलते नन्हे नूपुरों की करधनियाँ अब भी जिनमें मनहरित स्पर्श झनक रहा ...  कस्तुरी चंदन युक्त हियमण्डल पर लाल कंचुकी... ना स्वयं लाल ... लालजु । वह क्यों कस्तूरी धारण करते क्यों ?? सच तो कोई सखी जाने अभीप्सा प्रिया हिय ते श्रृंगार होई जावे की । एक सुंदर-सुंदर मोतियों की पतली सी गलमाल ... (प्रियतम जु की करावलियाँ , प्यारी तो यूँ ही देखती इन हारावलियों को अभी ... ) चिबुक पर मोती... (प्रियतम अधर झरित प्रेम बिन्दु रासमणि ) प्यारी के कर्णपुटों में युगल उत्तंस...( गुंजित निभृत केलिमय प्रियतम की मकराकृत ध्वनियाँ ) अधरों पर ताम्बूल की लालिमा... (प्रियतम अधरामृत प्रेमदान नव सुंगन्धा-राग) नासिका के अग्रभाग में मुक्ता... (प्यारे जु के नयन और अधरों से झरित एक दिव्य मणिमय मुक्ता) कपोलों पर लाल गुलाबी आती जाती रसभंगिमा... (प्रियतमस्पर्शसुख की घनीभूत प्यारी कपोलों पर बढ़ती लालित्य वर्षा) नयनों में श्याम कज्जल की बारीक सी धार... (मेरे प्यारे , बस गए री नैनन की कोर) ललाट पर लाल केसर बेंदी (लालप्रियवर को सुख) और तिलक... (स्थिर नित्य नव मनहर मांगल्य) मस्तक पर पुष्पों से सजी वेणी... (श्यामलता पर खिलती रसिली मदोन्मत्त सुमन भावनाएँ)
नितसोलह श्रृंगार धारिणी सलोनी प्रियमन भाविनी नितनव किशोरी चंचला नवनीत प्रियांगनि नयन अधर सुललिता सुंदर सुशीलता की राशि रूप माधुर्य सौंदर्य की अद्भुत रसमत्त सुलोचना श्यामा जब यूँ कुंड से स्नान कर सखियों व निकुंज सुमन रश्मियों की प्रभाओं से निकल पथ पर मंद मंथर गति से चलतीं तो नित्य नव रस झन्कारों से गूंज जाता उपवन श्रृंगार वेदी तक...अहा !!जहाँ तमाम सखियाँ उनकी मंद मुस्कन और सोलह श्रृंगारों के पीछे छुपे माधुर्य रसस्कित कोमल प्रियतम मनभावों का दर्शन करतीं तनिक दंतपंक्ति की खिलखिलाहट से स्वागत करतीं और कहीं कहीं किन्हीं सखी से श्यामा जु के नयन मिल जाते तो स्वतः लाज से झुक जातीं पलकें...कस्तुरी चंदन कर्पूर की आभा में लालाधर व नखचिन्ह छुपातीं श्यामा जु और कदम्ब की एक हरित डाल पर छुप कर निहारते यह ब्रज की रससुगंधित मधुबनी चित्तवन वेणु रव से गुंजारित भोर का आगमन नित्य तृषातुर श्यामल नीलमणि पिपासित अंबर सम सुसज्जित स्वर्ण सोलह श्रृंगारयुक्त धरा को युगनयन... आह जयजय ... जयजय जी । पुकारिये जी ...जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।।

नैननिं के आगैं प्यारी बिलपत है बिहारी
असुंवनि प्रेमजल धारा चली जाइ री ।
कौन प्रेम केहि फंद परे हैं रँगीले लाल
अटपटी गति  हरैं हियौ अकुलाइ री ।।
हित ध्रुव चेति कैं किसोरी गोरी धीर-धरि
नैना नेह-नीर  भरि लीन्हें उर लाइ री ।
प्रेम कौ समुद्र फिरि  गयौ है सबनि पर
जहाँ - तहाँ सखी धर परीं मुरझाइ री ।।
जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।।

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