प्यारी अधरन की कहू केसौ।
रेख न एक सम नवनीता,दल कुसुम गुलाब के जैसो।
अरुण भानु नभ ज्यो तरूणा,द्युति लाल मणिक ज्यो वैसो।
बेसर हिरे अधरन यौ दीखै,लगै दर्पण बिंब द्युति तेसौ।
कहू कँहा लौ बात अनेका,"प्यारी" कही अणु सम जैसो।
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ललितै अंक बैठे दोउ देखे,आरस भीनै प्यारौ लाल लली।
दहिनै लाल लली राजति बाँए,अंसनि सिर भुज गले डली।
कर नैनन पग करत खिलारी,छूवै एकही संग एकही लरी।
कटि फैरे कर सहलावै ललिता,लाड लडावै अति प्रेम भरी।
सखी हरिदासी अति किन्ही किरपा,"प्यारी" हिय रौपी लाड कली।
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रस देख उमगि आवै रसिक हिय।
बरसत सोई सुख नेहा उर पै,जोई उर बरसावै आपस प्यारी पिय।
श्वास गति अति बाढि तउ जावै,कर खैच लिपटावै जई प्यारौ जिय।
मारग रीति रस जोरि सुख"प्यारी",सोई आवै सुख एकमैक इनसै किये।
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छब माधुरी रंग श्रृंगार की करी।
फैरा काजल प्यारी कपोलन पै,पिय गंडनि रैख भ्रमित परी।
कछु बिंदु कपोलन पे घन से,भाल तिलक चित्रावली पिय गई।
प्यारी चिबुक दिठौना रैख बना,पिय चिबुक दिठौना पाय नई।
ग्रीवा पीक लीक लगी प्यारी,ग्रीवा नख क्षति रैख पिय बनौ।
उर बनै बूटै मिलित भए,दोउ देह पिय"प्यारी" एक मनौ।
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"प्यारी" वास वृंदा विपिन को सहज जानिए नाही।
लै शीश हथेली मोल लगै तऊ जानौ सस्तौ पाही।।1।।
तज वृंदा रज जो चले तव सम ना मंदमति कोय।
दृढ निश्चय कर आइए फिर जो कछु होय सो होय।।2।।
ब्रज मे बनि के मै रहू तरू कीर मयूर मृणाल।
या मिल रज मे रज बनू धारू धूरि रसिकन उर भाल।।3।।
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कुँवरि किशोरी,सरस अति भोरी,पिय प्राणन की प्रान।
विनती तोरी,करू कर जोरी,उर लिपटौ पिय आन।
रसिक रंगिलौ,प्यारौ छैल छबीलौ,प्रिया प्राणन की धुरि।
हस हैरो,भुज गल गेरौ,सुरति करो निशिही पूरी।
केलि करे,रस रंग भरै,डूबै निशि भौर रसौ।
जोरि प्यारी,नेक नाही न्यारी,"प्यारी" उर नैनही बसौ।
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ऐसौ अडै नैनन रमणा,देखन दैवे कछु नाही।
जग पाछै पिय अडिहै आगै,जैसो पट खिरकी परिहा;बसन झीनौ प्रेम का-ही।
सुनै नाही श्रृवणा आछिहु काची,कहवौ जग कछुही बकना;भाँति सुनै भीत सोई।
चाहवू हाँसू रौवू आपई इकली,चहै संगै जग रखना;यासौ फिरु बचतोई।
बात सुनो "प्यारी" एकई ऐजी,नैनो ऐसे गाढै बसना;दीखै जग जरा नाही।
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अति अद्भुत अनुपम जोरि।
कुंज विलासिनी प्यारौ प्यारी,नित नवल किशोर किशोरी।
रहनि सहनि पहनि ऐकौ,ऐकौ वयस अति थोरि।
नैनन बैनन सैनन प्यारौ,अति ही प्यारी बोरि।
बलिहारी इन जोरि "प्यारी",लए बला तृण तोरि।
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कहि बहौत गई ना कहि थोरि।
रसिकन श्वास श्वास भर गाए,तऊ बरनी गई ना रस जोरि।
शेष महेश चतुर मुख ब्रह्मा,भए मौन कहि ना गयो ओरि।
गाए विणा-वादिनी वेदन चारो,नाहि पहुच सकै तट धोरि।
छिन नूतन नित वर्धित देखि,कहो कहि सके किस विध पूरी।
जोरि जोरी कर गावत"प्यारी",गई अणु आध नाहि बोरि।
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कहू कहा रंग महल की बात।
भरी भीर सखियन की भारी,नगर के नगर बसै हो ज्यो साथ।
कतार द्वार भई अनगिन दूरि,आखिर मे पथ देखि वाटिका कौ जात।
कनक खंभ खडै भाँति ऐहि,खडे ज्योई मटुकी पै मटुकी माट।
राजित जोरि उपवन मे देखि,"प्यारी"देखि हसतौ रंगिलौ बतियात।
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नाज भरी खरी सेज के पास।
परी संग पिय सेज पे चूनर,झरै कुसुमनि लर करिकै विलास।
कर विनय प्रेम कौ लाए सैजा,देखि सैनन जब बाढि ओर प्यास।
युगन कलप सम पल व्याकुलता,मिले अंगनि अरू एक भई श्वास।
नील पीत द्युति हरितई होई,"प्यारी" खोई सेज दोउ रंग प्रकाश।
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रस सार को उर लागा लौभा।
छूटे बसन भूषण निरखन का,निरखत कौ हसत दोउ शोभा।
सुरति केलि अनंग रस जोरि,देखि सेज केलि पे करत मौदा।
रति चिन्ह परै पलटि सिंगारि,आलिंगित परै करै रस आलोढा।
विहरत माल डाल गल भुज-की,अटपटै चले बाल दोउ नांदा।
"प्यारी"रैन दिनन लोभ बाढै,पीवू ज्योई त्योई बाढिए ज्यादा।
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दरस रस जोरि प्रथम किजिहौ।
भौरई सखी रंग भुवन पट खौले,झाँकि झीनै परदो दरस लिजिहौ।
थमिकै कछु धीरै पट खैच डारै,दौने नैनन रस भरिकै पिजिहौ।
दृगन सहज मूंदे कसै भुज गाढै,बिथुरै केश कुसुमनि सेज देखिहौ।
जगावै हित मन मानै नाही "प्यारी",चहै योई लिपटाए हमेस राखिहौ।
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नैनांसु म्हारै भरि भरि आवै नीर।
बरसै याद उन भादौ सावन सौ,लागै उन याद उर बिरहा तीर।
कारे मेघ जई घिर घिर आवै,रोवै म्हारै मन को मोर हौ अधीर।
जतन करि सब हारी गई मै,मैटे नाही कोउ म्हारै मन कौ पीर।
अजहु आवै पिय कलहु आवै ही,आस झूठी मन कौ धरावै ना धीर।
अबहु छाडि दई चाह जीवन की,"प्यारी" चहै तोड उडि पिंजरौ शरीर।
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आज सखी मंगल गान करो।
सजा देओ हित पिय वाकी सजनी,मोतिन तारा सौ मोरि माँग भरो।
घर आँगन घृत दीप जला देऔ,आरत थाल सजा तैय्यार करो।
आनिमै है मोरे पिय की सवारी,थामिकै नैन चौखट द्वार धरो। बेगि करो मोहै दीजौ पि मिलावौ,"प्यारी" पिय बिनहु पल ना सरो।
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रस जडता लाल अंग आनि।
बिथुरी अलक छूटि गई चूनर,तापै पलक गिराय लली मुस्कानि।
लटक झुकन गरदन की देखि,रहै रोम रोम लाल पुलकानि।
छूवत सजग भए लाल रंगिलौ,निकट रंगीली अधर रहै आनि।
अनंग केलि गए रस डूबै,"प्यारी" भौर लौ रहे डूबानि।
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देखि लचक अंगनि लली वारे।सरबस अपनपौ पिय परै हारे।
भई शिथिल पिय अंगनि शोभा।बाढा मोद हिय अति लोभा।
चहै पकर उर प्यारी लगाऊ।पगौ प्यारी रस सिंधु जाऊ।
बात पिय मनकी जब जानी।प्यारी निकट पिय कै आनि।
रहै पकरि लए कंठ लगाए।बहु विध सौ पिय प्यार लुटाए।
"प्यारी" विनती करै तृण तोरि।रहो सदा ऐहि भाँति जोरि।
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मुख सौ करे पौन लली।
श्रम कण केलि झलकत देखि,सहेजनि सुवास श्वास सौ चली।
निज भूली श्रम स्वेदा मुखकै,बुहारे पिय पटसौ स्वेदा भली।
"प्यारी"अचरज यह देखि भारी,भ्रमर सेवै आज आप कली।
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सुकुमार अतिही रंगीलै।
पलकनि झुकन उठन थकि जावै,बोल बोलनि श्रमित छबीलै।
कुसुमनि भूषण बसन भार सौ,ऐसौ वपु सरस रसीलै।
सुरति करै स्वेद अंग झलकै,तऊ मानै नाही हठिलै।
"प्यारी" कुसुम प्रेम के दोऊ,न्यारै सबसौ अति गर्बिलै।
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