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क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं ... संगिनी जु

क्लीं क्लीं क्लीं क्लीं....
अहा !!मधुर ध्वनि करतीं प्रियश्यामा जु की पैंजनियाँ यमुना पुलिन पर से सहसा सुनाई देती हुईं पवन की सरसराहट संग मोरकुटी की अटरिया पर से होते हुए कालिन्द नंदिनी की अविच्छिन अति सुकोमल लहरियों में घुल मिल जाती है।
जलतरंगों की लहरियों में सोंधी सोंधी से महक उठ जैसे ही पवन का स्पर्श पाती है ....श्यामा खिलखिलाकल हंस देतीं हैं।
कजरारे श्यामल नयन कोरों से श्यामा जु समीप आती सखी को वहीं रोक देतीं हैं और छन छन छन नूपुरों की ध्वनि करतीं वहाँ से उठ मंद मुस्कान लिए अपनी वेणी से पुष्पों की वर्षा करतीं और श्रीचरणों से यमुना जल को छप छप करतीं हुईं मोरकुटी से वंशीवट की तरफ चल देतीं हैं।
आज उनकी चाल मयूर सी तीव्र और नृत्य की सी मुद्राएँ करती ऐसी है जैसै मदमस्त वे खोई खोई सी गलियों कुंजों को पीछे छोड़ती जा रहीं हैं और कदम्ब तले आ ठहरतीं हैं।कुछ सखियाँ श्यामा जु की भावभरी चाल थिरकन पर बलिहारी जातीं उनके पीछे पीछे दौड़ती हुई वहाँ आतीं हैं पर श्यामा जु इन्हें वहीं रूकने का कह एक दूसरे हल्के नीले पुष्पों से सुसज्जित उपवन में आतीं हैं और देखती हैं कि यहाँ आरसी पर उन्हीं हल्के छोटे छोटे पुष्पों से एक अद्भुत सुंदर आकृति बनाई गई है जिसे देख श्यामा जु वहीं बैठ उसे निहार रहीं हैं।
जो सखी इस आरसी पर पुष्प सजा रही है वह पुष्पों को केवल आरसी के किनारों पर रख रही है कुछ ऐसे कि भीतर आरसी में श्यामसुंदर जु की आकृति उभर आती है जहाँ कोई पुष्प नहीं धरे हैं।
श्यामा जु यह आकृति देख तुरंत उसके मध्य में अपना मुखकमल निहारती हैं और पातीं हैं कि उनके मुख की छबि पड़ते ही आरसी में रूपसौंदर्य माधुर्य से भरी वो अधुरी छवि निरख उठती है जैसे उसमें प्रेम ने रंग भर दिए हैं स्वयं श्यामा जु की प्यारी चितवन ने और वह उन अतीव सुंदर श्याम को निहारते ही एक और आरसी लाकर सखी को लाल पुष्प सजाने को कहतीं हैं।
सखी तुरंत ऐसा ही करती है और उस लाल पुष्प वाली आरसी पर पुष्प ऐसे सजाती है कि वहाँ श्यामा जु की छबि उभर आए पर न जाने श्यामा जी जैसे ही उस रिक्त पड़े आरसी के हिस्से में अपना मुख निहारती हैं तो वहाँ भी श्यामसुंदर ही नजर आने लगते हैं।
सखी यह देख आश्चर्यचकित है पर श्यामा जु दोनों प्रियतम छवियों को निहारती हुईं उठ कर थिरकने गुनगुनाने लगतीं हैं और ऐसी मस्त हो जातीं हैं जैसे लाल और नीले रंग के पुष्पों की आकृतियाँ उन संग झूम रहीं हैं।
सखी को संबोधन करतीं श्यामा जु अति प्रसन्नचित मुद्रा में इशारा करतीं हैं कि सखी....
आज चहुँ दिशि और धरा अम्बर पर उन्हें वही श्यामसुंदर दिखाई दे रहे हैं जिनका माधुर्य रस स्पर्श श्यामा जु को पल पल अह्लादित कर रहा है और उनके चरण कहीं टिक नहीं रहे हैं।
श्यामा जु सखी को निहारते हुए कहतीं हैं तुममें मुझमें श्यामसुंदर ही भरे हैं और वे इतना कहते ही नीलवर्ण लिए अपने सफेद वस्त्रों को निहारती हुईं झूमने गाने लगतीं हैं जैसे उन्हें मध्य में श्यामसुंदर ही वेणु बजाते आनंद विभोर कर रहे हैं।
मदनमस्त युगल नीरव वन में नीले आसमान तले नीले पुष्प सजी धरा पर नाच झूम रहे हैं और चहुं ओर उनकी इस मस्ती में गुनगुना रहे हैं वन्य हंस मयूर और कोकिल सारिकाएँ...
इतने में लीलादृश्य करवट लेता है और सखियाँ श्यामा जु संग गोल घेरे बना कर जैसे रासमंडल रच देतीं हैं और एक एक कर सब सखियों संग थिरकतीं श्यामा जु श्यामसुंदर जो कि इन घेरों से बाहर एक चट्टान पर विराजित वंशी बजाते मुस्कराते हुए प्रिया जु के सन्मुख आते ही उनके रूपजाल में बंध कर एक आरसी सम श्यामा जु को उनके ही प्रतिबिम्ब में स्वयं दिखाई देने लगते हैं।
अद्भुत लीला करते युगल और जहाँ चंद्र स्वयं चकोर बन उन्हें निहार रहा वहाँ क्लीं क्लीं रसध्वनि प्रत्येक पुष्प से परागकण झरते मकरंद कणों में युगल स्वरूप का दर्शन करतीं सखियाँ उन्हें विभिन्न ताल तरंगों में डूबे देख मंद थिरकन थाप से उन संग झूम रहीं हैं .....

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