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श्रीप्रिया चरण , मृदुला जु

श्रीप्रिया चरण

श्रीप्रिया चरण श्रीप्रिया चरण आह ! सदा सर्वथा मम् उर मंडल में वासित मेरी प्रिया के कोमल पल्लव । मेरे जीवन सार का सार ये श्रीचरण । कौन से कहुँ या की महिमा कौन से कहुँ क्या हैं ये कृष्ण के लिये । ईश्वरत्व के समस्त आवरणों से परे पहुँच जो मोहे जाने केवल वही समझ पावे कि इस कृष्ण के लिये क्या हैं ये पादपल्लव । रससार माधुर्यसार सौंदर्यसार लावण्यनिधी अतुलित कांतिसंयुत्त कोटि चंद्रमणियों को विनिन्दित करने वाली नखप्रभा आभामय अरुणचन्द्र की चंद्रिका सा पादतल जिनकी अरुणिमा मेरे समस्त माधुर्य का उद्गम है .......क्या केवल यहीं हैं मेरे लिये मेरी प्रिया के श्रीचरण ! न ....। कोई पिपासु हो मेरी हृदय तृषा का तो उतरे वहाँ इन श्रीचरणों का महात्मय मेरे हृदय से । मेरे ऐश्वर्य की गंध भी शेष न रहे चित्त में तब ही पाइयेगा इस प्रेमतृषित कृष्ण की हृदय अभिलाषा के सीकर को अन्यथा मेरी भुवनमोहिनी माया तत्पर ही है आप जैसे बुद्ध पुरुषों की निष्ठा को क्षणार्ध भर में दिग्भ्रमित करने हेतु ।
मेरी श्रीप्रिया के पादारविन्द आह! मेरी कोटि जन्मों की साधना का सुफल हैं ये पद्मपल्लव । हाँ मेरी साधना प्रेम साधना जिसकी पूर्ति हुयी है श्रीप्रियाचरणों का मेरे हृदय में प्राकट्य होने पर । मेरी चिर प्रतीक्षा हैं ये श्रीचरण । मेरी अनन्त विश्राम स्थली हैं ये रक्तोत्पल श्रीचरण । विश्राम स्थली हाँ यहीं तो परम विश्राम पाता है कृष्ण हृदय । मुक्ति प्रदायक हैं ये श्रीचरण । कृष्ण को भी मुक्ति का दान देने वाले । कृष्ण को मुक्ति हाँ सत्य यह मुझे मेरे समस्त ऐश्वर्य से ऐश्वर्यबोध से मुक्त कर निज सेवा सुख प्रदान कर मुक्त करते नित्य ये श्रीचरण । मेरे नयनों की प्रफुल्लता हैं ये चरण और कोमल तो ऐसे कि नयन दृष्टि से स्पर्श में भी संकोच होवे कि कष्ट न पा जायें ये मेरी प्राणनिधी से पल्लव सुकोमल । सदा पूजित हैं मेरे उर में सदा ध्येय हैं मेरे ध्यान में नित्य आराध्य हैं ये मेरे श्रीप्रिया के श्रीचरण । नित एक ही अभिलाषा नित एक ही प्रतीक्षा श्रीचरण दर्शन श्रीचरण सेवा । परम सुख इस हृदय का श्रीस्वामिनी के श्रीचरण संवहन नित निज अति सुकोमल नयन दृष्टि से । इनकी सेवा ही मेरा पुरुषार्थ है । ये श्रीचरण ही मेरे कामनाकल्पतरु हैं । यही साधना यही साध्य हैं ।यही जीवन आकांक्षणा मेरी नित मेरे उर की प्यास हैं । नित अनन्त प्राण हृदय द्रवित हों वह धरा हो जाने को तृषित जहाँ धरें हैं प्रियाजु मेरी इन हृदयधरोहर को । परम सेव्य हैं परम प्रेष्ठ हैं इन प्राणों का सहज धर्म हैं । ये नयन सदा चकोरवत् निहारण चाहें हैं इन सौंदर्य के धाम श्रीचरणों का । मेरे हृदय पर अवस्थित होने से मेरा हृदय अनुराग इनमें अरुणवर्ण हो समाया है या इनका परम माधुर्य ही मेरे हृदय में झर मेरे उर का राग हुआ है । निश्चित ही इन्हीं की ललित लालिमा ने मेरे हृदय को प्रेम रंग में रंगा है । कृष्ण हृदय  ने छू लिया है जबसे इन ललित चरणों को तभी से रोम रोम रंग गया है इनकी प्रेम माधुरी में .....
धनि धनि राधिका के चरण
सुभग शीतल और सुकोमल कमल के से वरण
धनि धनि राधिका के चरण ॥

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