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नववया किशोरी नव्याजु , संगिनी जु

*नववया किशोरी नव्याजु*
नववया ...  और खिल गई वह ... अभी पूर्ण ... न ... नहीं , पूर्ण नहीं सम्पूर्ण सुधार्णव सौंदर्या थी । पर , प्रेम नित्य वर्द्धन ... श्रृंगार - रूप - कौमार्य - लावण्य सब गहरा हो रहा । ... जैसे प्रियारूप सुधा तृषित प्रियतम कभी इस सम्पूर्ण भावसार निधि को पी नहीँ पायेंगे ... !! नित्य बढ़ता प्रेमसागर !! काव्य मात्र कल्पना नहीं ,  प्रेम- रूप-भाव की सुधा श्रीप्यारी जु गहरा रही । जो देखा उन्हें वह यह ... यह अभी ... न अभी.. अभी जो वह हुई , वह ... वह सौंदर्य ना देखा । नव्या .. नई हो रही उन्हें देखा कैसे जावें । काल-माया से परे वह बढ़ती सुगन्ध... गहराती कोमलांगी... बहती हुई । ... खिलती हुई कुमुदिनी को ही हम ना समेट सकें नयनों में तब श्रीप्रियाजु ...वह प्रेम की नितनव खिलती फुलवारी ।
झर रही हमारी यहाँ कोमलता-सरलता , झर रहा काल-देह ... हम जीवन की नवीनता को नित्य खो रहें , सौन्दर्य-वयता-लावण्यता सब मुरझाने पर ... !! ... निखर रही वह , ... खिलती नव-नव ... नव ।
नवनिकुंज मंदिर , सखियों के युगल पदराग सटे झुके नयन.. मणिजटित चौकी पर सुशोभित युगल चरण...  जगमगाती मणियों की प्रभा लजा गईं ...सुसज्जित युगल नील व गौर चरण  जगमग-जगमग नित्य नव प्रभा बिखर रही । झरता नित अनुराग ... दिव्य होती सुगन्ध ... गहराती कुमलता । ...और सखी , सहचरी इन अति सुंदर मणियुक्त कमलदल पर श्रृंगारित नित्यनव मधुरसपूरित युगचरण देखने के प्रयास में भोर-विभोर-प्रभोर हो रहीं... ...
श्यामा-श्यामसुंदर जु के प्रतिबिम्ब जो उन मणियों की चौकी में प्रकट हो ... चरणदर्शनातुरों को सम्पूर्ण माधुर्य पिला आह्लादित किये जा रही ।  चौकी के प्रतिबिम्ब से सुरतकेलिकुंज की बेल लताएँ भी जगमगा रहीं ... प्रति लता युगल छब प्रकट झिलमिला रही । उन्माद छुपाये नहीँ छिप रहा ... और सखियों के नाना रंग बिरंगी परिधान चमकते-वस्त्राभूषणों की चटक में भी कोमलांगी नववया किशोर मनरमणी किशोरी की रूप-छटा प्रतिबिम्बित हो रही...छटा नित नव हो रही । अहा नित मनहराह्लादित नव-प्रिया को रोम-रोमांग सम्भालती युगल-रसिली-निकुंज सेविकाएं ...
हिंडोले पर पियमुखी विराजित प्रिया जु के हृदय पर सटे पीताम्बर को थामे हुआ उनका कर कभी पीताम्बर को उड़ने देता कर...(जैसे पीताम्बर छोड़ सन्मुख विराजे मनहर का पावन-सुपर्श याचना में  ) ... तो कभी उसे पुनः हिय से सजा सरस् उन्माद मनहर नयनों में तलाशती... बटोही पिय सुख की पिय हिय की पुलक भर से नई हो जाती , प्रियतम की उस पुलकन सर्वांग में ऐसे सजाती जैसे... निज हिय आवेग से कर्षित तनझरी । ... सजल-सरल-सनव-नितनवयौवन खिले रोमाँगों में गौरलालित्त पद्मिनी सुदेही पर नीलाम्बर जैसे आलिंगित नीलेश... नीलमणि । या नील-सारी ... ! प्रफुल्ल अधरों के राग को नयनों से बतियाते युगल परस्पर नित्य-नवीन-राग-अनुराग -रंजित-पुलकती-प्रस्फुरित प्रभा सँग सुसज्जित सखियों के  दृग-हिंडोरे में झूल रहे... ... ...
नितनव्या- नवसौंदर्या श्यामा जु के नखबेसर की झरण-थिरकन पर थिरकती श्यामसुंदर की नैनपुतलिकाएँ और पियारीजु के रसमद-रवांकुर से नुकीले-कजरारे नयनों और... कटीले भौंहन के मधुर रसबाणों से बिंधते तृषित रसातुर वेणु-नितसेज..पिय-अधर ... ...
अहा !! ...सखियाँ बारम्बार बलिहारी सखियाँ । ... श्यामा जु के अति गाढ़ नित्यनवमधुररसप्लावित सुरख-लाल ताम्बूल रस भीगे अधर पर.. (युगल मुख-सुगन्ध ही इस ताम्बुल का उत्कर्ष मिश्रण) ..अधर पर जिनकी रसमंद-मुस्कन पर श्यामल अलकें रीझ जातीं और दो चकोर कजरारी अखियाँ भीग घनदामिनि मिलनोत्सुक बरसन चाहती । ... श्रृंगार को नित नव श्रृंगार ... नववया सँग ।
श्यामा जु के प्रेमोन्मद गोल-सुगोल हियमण्डल पर नववयता की स्वेद प्रभा से प्रस्फुरित नव सुरभता में मणिमय हार संग उलझी गुंजमाल व घुलते रंग कस्तुरी लाल त्रिवलियों के ...नित नव हियरंगिनी ...अनुरागिनी ...मकरन्दिनी ...कल्लोलिनी ।
नितवया के कृष्काय उदर पर नाभिसर में डूबे... मदन को पराजित किये श्यामल द्वैमीन नयन जो जब नहीं सम्भल पाते खिसकते नीलाम्बर की नववया नितम्भना की स्वेद लहरियों से ... तो लपक कर गौरचरणों का अवगाहन करने लगते ... ! प्यारी के सुगौरकोमल चरण !... जिनकी पदनखमणिप्रभा पर जगमगाहट से जगमगाता नववय रस प्रतिपल गहराता और रसिकशेखर अर्पण करते जाते हियखिलित मधुर रस से भरपूर फुलवारियों का नवौढ़ा... नववया श्यामा के नवीनभावोत्सव से सौरभसार रससारमधुर श्रृंगारोत्सव की नितनवपरिधि रसभीगी कैशोर्य पर ... (नवकिशोरिजु पर) ... जयजयश्रीश्यामाश्याम ।।।

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