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श्याममनभामिनी - मोरी श्यामा - 2 , संगिनी जु

श्याममनभामिनी - मोरी श्यामा

अति सुगौरवदनी प्यारी कोटिरूपराशि
अनंग सौंदर्या श्याम मन भाविनी श्यामा जु नख से शिख तक ऐसी शोभावान कि त्रिभुवनों का सौंदर्य माधुर्य उनके चरणनखों की छटा पर पुल्कायमान रहता है।
प्रिया जु की वेणी जिसका भार श्यामा जु के कृष वरम् सर्वनारिसुलक्ष्णा कोमलांगी से सहा ना जाता इसलिए नीलवर्ण साड़ी के कटिकरधनी से कुछ झुका कर बाँधा गया है।
लचकती डगमग चाल चलती श्यामा जु जब मंद गति से आगे बढ़तीं हैं तो उनकी वेणी संग संग उनके करकमल के स्पर्श से चरणों में ढुरक कर उन्हें प्रणाम करना चाहती है।वेणी की एक एक गूंथन में सुसज्जित अति रंग के कलियाँ पुष्प श्यामा जु के उदर तो कभी सुकोमल भुजाओं का स्पर्श पाकर महकते हुए चहुं ओर पवन से घुलमिल कर अपने सौभाग्य की स्वयं सराहना करते ना अघाते हैं।
श्रीप्रिया जु की कंचुकी की अति मनभाविनी बंधनवारें उनकी कमर से छूकर थिरकती हुई संग विचर रही हैं।प्रत्येक डोरी लता के अंत में दो दो तीन तीन नूपुर बंधे हैं जो श्यामा जु की सुनहरी त्वचा जैसे ही सुनहरी होने पर भी मलिन प्रतीत होते हैं और स्वयं को श्यामा जु के वस्त्रों का श्रृंगार मान लज्जित भी होते हैं।
श्यामा जु बड़ी बड़ी मृगी जैसी यहाँ से वहाँ मटकती नयनपुतलियों से स्पर्श पाकर अपने ही सुकोमल अंगों पर लटकते इन नूपुरों और वेणी के पुष्पों को टटोलती हैं तो मंदस्मित ये सब प्रिया जु की मधुर खिलखिलाहट पर तनिक संकोचवश गुदगुदा उठते हैं जैसे स्वयं से कह रहे हों कैसा अहोभाग्य जो हम इन नयनों के दृष्टिपथ में पथिक बन इनकी चंचलता को निहारते रहते।
कंचुकी से अनगिनत बार ढुरकती श्यामा जु की चुनरी उनकी नीली साड़ी से झिलमिल झिलमिल सितारों सी चमकती वायु संग लहलहाती आगे हो होकर उनके किंकणियों सम पल पल झन्कारें करते मुखकमल पर लालसुरख अधरों से झाँकते अनार के दानों सम दंतों का अवलोकन करते रहते हैं।
मृगनयनी जब ऐसे ही मंद सुगति से तनिक उछलती पवन से बतियाती आगे बढ़तीं हैं तो उनके पादपद्यों से पायल नूपुरों की मधुर ध्वनि जैसे धरा को ताल देती संगीतमय करती जाती है और श्यामा जु स्वयं उन तालों पर चकित होतीं हैं व अपनी आकर्षक माधुर्ययुक्त चपल चाल पर सखियों और प्रियतम श्यामसुंदर जु को मोहित करतीं जातीं हैं।
श्यामा जु की प्रत्येक पादुगंलियों पर अतिप्रिय मनमोहक नूपुर सम बिछुए पहने हैं जिनकी चमक से धरा पर एक एक रजअणु झन्कृत होता उनके पगों की छुअन से रसपूरित होकर श्वासभर उठता है।
यहाँ श्यामा जु मंद मंद मंथर सुगति से वेणी को झुलाती कुछ गुनगुन गुनगुनाती आगे बढ़ रहीं हैं वहाँ मदनमोहन श्यामसुंदर जु की वेणु रव संगीतमय नूपुर धमनियों संग सुरीली तानें छेड़ रही है।प्रत्येक पग की धरन पर पराग से मकरंद झर रहे और उपवन में भ्रमर इन मकरंद कणों की महक से पता पूछते उनकी वेणी के पुष्पों का अवलोकन करने पीछे पीछे चले आते।
श्रीश्यामा जु की मदमस्त चाल पर न्योछावर जातीं सखियाँ उन संग वनविहार करतीं विचर रहीं हैं।एक एक सखी अति गुणवती व सुशील सुंदरतम है क्यों कि श्यामा जु से ही यह शिक्षित उनके सगुणआवरण में ढली हैं पर फिर भी गजगामिनी पर पुष्पसम ही प्रतिपल सेवायित चरणों में समर्पित भाव से तत्सुखसुखिता उन संग गमन करतीं रहतीं।
जाने कब मैं प्रियासंगिनी गजगामिनी श्रीश्यामा जु की इन मधुर पग तालों व नूपुरों की झन्कारें सुन अपने पिपासु कर्णपुटों की सराहना करूँगी.....

जयजय श्रीश्यामाश्याम जी!!
जयजय श्रीराधे राधे !!

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