श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास !!
प्रियवदनी गौरांगी श्यामा जु श्यामसुंदर जु का अति प्रिय चंचल हिय चुरा लेतीं हैं।उनका रोम रोम व प्रति अंग माधुर्य से अति सुंदर श्रृंगार श्यामसुंदर जु को उनके सुकोमलतम पादचिन्हों पर द्रवित करता उनका चित्त चुरा कर कुंज निकुंजों से निकाल यमुना जु के पावन कूल पर लाता है जहाँ श्यामा जु सखियों से घिरीं हुईं वीणा पर अति मधुर ताल बंधान छेड़े हुए विराजमान हैं।
एक एक सखी ऐसा मधुर गान कर रही है कि श्यामसुंदर स्वतः अति चंचल विवश हुए खिंचे चले आए और मधुर तानों के मध्य बैठीं सुंदर सुकोमल श्यामा जु की कटि से आबद्ध वीणा के सौभाग्य पर न्यौछावर जाते हैं।प्रिया जु वीणा लिए जिस मुद्रा में पुष्पाविंत सेज पर विराजित हैं श्यामसुंदर जु उस छवि का नयनों से पान करते हैं।
जहाँ जिस वृंदावन में श्यामसुंदर श्यामा जु का दर्शन करते हैं वहाँ का एक एक रज अणु श्यामा जु का चरण रज अणु श्यामसुंदर जु को मुग्ध करता है और श्यामसुंदर प्रिया जु का नयनाभिराम दर्शन करते अपनी वीणा पर सहज थिरकती कोमल उंगलियों का अनुसरण करने लगते हैं पर उनकी विवशता उनकी उंगलियों को वीणा की तारों से सहज ही फिसला देती है और श्यामा जु की मंद मुस्कन लिए ललित अधर और नयनों का तनिक कटाक्ष उनको सुधि बिसराने लगा।
वहाँ श्यामा जु के कर वीणा को छूते हैं तो उनकी कनक अंगुठियों की चमक और यहाँ श्यामसुंदर जु कर तारों को छूते हैं तो उनकी नीली देह पर स्वर्णजटित उंगलियों की चमक।
अहा !!जैसे परस्पर रंग चुरा रहे हों और नयनों से पान करते उनकी नीली चुनरी और उनका नीला बदन कनक रंग पर ढुरक पड़ा हो।
वास्तव में श्यामा जु अति सुकोमल हैं और श्यामसुंदर जु का हृदय उसी सुकोमलता का स्वरूप जान उन्हें करों से ना छूकर नयनों से छूता है और थिरक जाती हैं उनकी उंगलियाँ वीणा पर जो श्यामा श्यामा कहती स्वयं श्यामा जु ही हो चुकी हैं और जिसकी छुअन से श्यामा जु की वीणा सकुशलता से बजते बजते अधीर हो उठती है और श्यामसुंदर जु बार बार यही इशारा देते कि अभी उनकी वीणा की तान नहीं बैठ रही सो और और और गहराते जाते युगल।
सखियाँ इन्हीं दो भिन्न तानों का विस्तार देख उन्हें अपनी संगीत कौशलता से बाँधने लगतीं और धीरे धीरे होले होले से उनको अभिन्न करतीं जातीं।जो मिलन कब से अभिनय मात्र आगे बढ़ रहा था वही सखी की एकजुटता से अब एकरस में बह चला।
एक तरफ अति ही सुंदर सुशील अंगप्रत्यंगा रसधारिणी श्यामा जु और दूसरी ओर सहज कोमल सुहृद श्यामसुंदर जो तान बंधान के सुरों में बंध कर एकरस होने को विवश होते।
जयजय श्यामाश्याम !!
कब मैं युगलसंगिनी इन मधुकर युगल की अति सुकोमल तानबंधानों में बंधी इनके सुंदर अंगों व उनकी सहज रसतरंगों के मिलनरस में भीगूंगी ....जाने कब !!
श्रीहरिदास🙏🏻🙏🏻
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