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भोरी संगिनी भाव पद

हे स्वामिनी श्रीराधे
तुव हिय की का बखानूं
तुम मेरो मन की जाननहारि
कृपा कर उबारो लाड़िली सर्वभूल बिसरावनहारि
हे किशोरी
चंचलता मन की तुम ही हो हरने वारि
अगिनत चंचल उबारे तुमने
श्याम पिया को हिय धरनेवारि
मो चंचला कू धीर बंधावो
हे अति सुकोमल हृदया क्षोभ नाशनहारि
हे चंचल मनप्रिया राधिका
संगिनी नैन भर पुकारे तोहे
राह ना द्वार कोऊ जानै औरै
भूल बख्शावो मेरे तन की तपन बुझावो
चंचल अति आसक्त चंचला कू कृपा कर अपनावनहारि !!

साँचि प्रीति ना करनो आवै
झूठ मूठ कौ तानो बानो लै अति बुन पावै
या हिय कू हा स्वामिनि तुव सम कोऊ और का जनावैं
काचि भजनहुं की रीति काचि करि मैं प्रीति
तुम अति भोली पर सर्वज्ञानी अति मूढ़मति कू तारनहारि
झूठ कौ पसारो जो नित मैं बुन्यौ यातो कुटिल कछु अधिक नाहिं
हा राधे कृपा करो तुम बिन ना और भरोसो
आए तजो ब्यर्थ कू रीति ब्यर्थ चिंतन सौं उबारो !!

कब मों निर्बल कौ होए निबेरौ किशोरी
कब मौंसो सांचो नेहो बनै री
कबहुं पग चलि आऊँ परत तुव चरणन
कबहुं सखिन संग सेबा बिचारूं
कबहुं लाड़ली धीरा धरूँगी
कबहुं दरस परस पाए तिहारो सांचि प्रीत बहूँगी
कबहुं कृपा कर रस चरचा संग प्रेममुर्त प्रगटैगी
कबहुं स्वामिनी हरैगी बिरह
कबहुं दासिन कू चितैहुंगी !!

भरोस एक तेरो लाड़ली
जन्मनि बीतै बिनु स्नेह तेरो
काम क्रोध लोभ मोह सौं भरै
अब की बारि इक कोर कृपा की
अपनो जानि मो मन में हेरो
बिषय बिकार अति लूटै राधे
इक बारि कृपा करि निर्धनी हिय दो फेरो
अहो !तुम अति सहज सजीलि किशोरी
निठुराई कहो कित जाए बखानूं
या जन्म में लाड़ली ना कियो पुण्य कर्म
कियो अति भयावने पाप ही घनेरो
इक बार कृपालिनि सुनो स्वामिनि
अंधकूप सौं कर पकरि लै उबेरो !!

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