"पासा खेलत हैं पिय प्यारि"
नित्योत्सव स्थली श्रीधाम वृंदावन माहिं दीवारी की धूम मच रही !चहुं दिसि साज संवार सौं कुंज निकुंजन व कुंड जगमग जगमग है रहै !
स्यामास्याम जुगलबर नित्य नवरसोत्सव में बिहरन करते गरबहियाँ डारै कालिन्द नंदिनी के अतिपावन व रसनिमज्जित कूल पर दीपदान करि कै अपने प्रेमधाम व सखी सहचरि कू उन्मादित उत्साहित निरख फेर परस्पर निहारन में तन्मय है रहै !
कोटि कोटि दीवले यमुना तट पर झलमला रहै जिनसे प्रतिबिम्बित होतीं लता बल्लरियाँ मणिजटित आभा बिखेर रहीं पर जहं स्यामा जु बिराजित तहं की सोभा बर्णत न बनत !
याके नख चंद्र की सोभा सौं अवनि पर सदा रससुमन सींचित होते पर आज दीप प्रज्जवलित है रहे ....याकी नखप्रभा की चंद्र ज्योति स्वतः द्वीपों को प्रकासित कर रही !गौरांगी प्रिया जु के अति सुरम्य मुख की रश्मियों से प्रकाशित याके रत्नाभूषण व निकुंज की मणिमय लता पताकाएँ स्वतः प्रिबिम्बित होय रही श्रीजुगल के चरणकमलों पर और वारि वारि जातीं अपने सौभाग्य पर....
मंद मंद संगीत ध्वनियों के मध्यस्थ मणिमय बल्लरियों से सुसज्जित एक हटरी में स्यामास्याम बिराजित भए जिसे सखियन ने पीतरंग की मणियों से सजाया है और जिस पर बिराजित नवलकिसोर की रूपमाधुरी की छटा पड़ै तो या मणियों कौ रंग पीत से नीलसुपीत होय रह्यो !
समक्ष सखिगण स्यामास्यामसुंदर जु कै रसबर्धन हेत चौसर बिछाए रहीं !स्यामा जु सखियन के प्रेम पर बलिहारि जाए री और इधर स्यामसुंदर पियप्यारि की प्रेमसनी निहारन कू निहारते ना अघा रहै !
अब सखियन नै स्यामास्यामसुंदर जू सौं चौपर कौ खेल आरम्भ करनै की कहि तो स्यामसुंदर मन ही मन मुस्काए और अखियन कै इसारे तेइं स्यामा जु नै कहै
"मैं तो पहले ही तन मन प्राण हार चुको हूँ तो ज्ह खेल जीतनो कहं ते होइ"और उधर स्यामा जु तनिक स्यामसुंदर की नयन झकझोरन सौं याके हिय में उतर कै यानै खेलन निमित्त आमंत्रण भी दे रहीं व याने कह रहीं
"ना प्यारे...वारि बलिहारि तव रूपसुधा की रसभीनी नजरिया व परखन तें न्यौछाबर ...पर खेल तो बराबरी कौ होनो ही भावै है ना"
मंद मंद मुस्कन और नयनन की बातन कौ सुख अति न्यारौ !!
सखियन नै ताली दे कै जुगल नै खेलन कू कही और रसबर्धनिका ललिता जु नै पासा फैंक प्यारि जु नै पहलो दाव चलन तांई कहि और स्नेह सहचरि बिसाखा सखि नै प्यारि जु कौ प्रोत्साहन दियो !
एक एक कर कई दाव खेलै जुगल नै जामै कबहु तो स्यामसुंदर प्रिया जु सुखहेत जीत जावै तो अधिकतर स्यामा जु स्यामसुंदर सुखहेत उनको हरा देवैं !
सखियन तारि दे कै स्यामास्यामसुंदर नै प्रोत्साहित करैं और कबहु ठहाके मारैं स्यामसुंदर जु की स्यामा जु समक्ष रसस्कित हारन तैं !सम्पूर्ण निकुंज जैसे आतिसबाजी होय रही ऐसे गुंजायमान होय रह्यौ !
कहीं स्यामा जु स्यामसुंदर सौं नयन मिलावै तो कहीं नयन कटाक्षन सौं याकि सुधि बिसारए कै खेल जीत जावै !
हर बार स्यामसुंदर जु कबहुं पीताम्बर वंसी तो कबहुं कंकन कंठहार दाव पर लगावैं और हार जावैं !मोरपखा कटिबद्ध कुण्डल एक साथ स्यामा जु की एक चंद्रिका सौं हार जावै तो कबहु उनके लटपाश की कपोलों पर थिरकन सौं अपनो बाजि चलन सौं नठ जावै !
स्यामा जू कै करकमलों पर जावक की लालिमा ..अधरों पर ताम्बूल पान कै लालित्य व काजर की कालिमा पर तन सौं हार जावै !स्यामा जु के मुखकमल पर तनिक मणिरत्न मुक्ताओं कै मधुमय नयन चौंध्याते प्रतिबिम्बन सौं नयन झपकावै !ऐसो रसन कू अति रंग गहरौ के स्यामसुंदर स्यामा जु कै हाव भावन पर ही ढुरकै चौसर हार रहै और मन ही मन स्यामा जु को जीतते देख रसमय होय रहै !
स्यामा जु जानै हैं के स्यामसुंदर ज्ह खे मोय जिताह्बै की खातर ही खेल रहै और जब तक नाए जीतूंगी नाए मानैंगे !
सखिगण भी जानै हैं चुकिं ज्ह खेल तो बहानो है ..हार जीत कौ नाए...
"प्रेम कौ खिलोनो दोऊ खेलै प्रेम कौ खेल"
स्रमजल कण चमक परै स्यामसुंदर जु कै मस्तक तैं जिसे देख सखियन नै स्यामसुंदर कू अब आखिरी पासा फैंक स्वयं कू दाव पर लगानै कू कहि और यानै अपनो अंचल सौं भींजन करनै लगी !
स्यामसुंदर नै जहं आखिरी दाव चल्ह्यो और वहाँ स्यामा जु ने तनिक अपनो घुंघट ढुरकाए दियो जिसे देख स्यामसुंदर पासा फैंकनो बिसराए कै याकि रूपमाधुरि कौ पान करन तांई चौसर कौ अद्भुत प्रेम खेल हार गह्यौ !सखियन स्यामा जु की चतुराई और स्यामसुंदर जु की प्रेममयी रसलम्पटता पर 'जय हो...जय हो' कर तारि दे दे मधुर हंसी की फुहारों का पुस्पन सम वर्सण करने लगीं और श्रीजुगल परस्पर प्रेम में सने नयनझरोखों से हृदयस्थ प्रेम बार्ता कर मधुस्मित रसझांकि कौ आस्बादन कर रहै !!
जयजय श्रीजुगल !!
जयजय नित्य द्वीपोत्सब !! जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।। श्रीहरिदास ।।
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