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प्यारे के नयन , मृदुला जु

प्यारे के नयन

कब तक है यह मन जब तक इसे स्थिर रस ना मिले । यह वास्तविक सौंदर्य से ना टकरा जावें , दृष्टि बन भागता यह मन बहुत भागे तो टकरा जाता .. हर लिया जाता प्यारे के नयनों से ...
आह ! प्यारे के प्यारे दो नयन रतनारे अरुणारे कजरारे मतवाले दो नयन । ... सच्चे तृषित यह नयन ।  दो नयन प्रतीक्षारत से उस वीथिका पर मानो जुड ही गये पथ की रज से जिस पथ पर श्रीभानुलली पधारने वालीं हैं । कोई देखो तो इन दो प्यारे नयनों को ... ना , ना देखो ... बहुत गहरे है यह फिर इनसे बाहर कुछ देखने को होगा ही नहीं । चिर प्रतिक्षित ... ! क्या वाणी में भरी जा सकती है इनकी यह प्रतीक्षा - पिपासा - पिपासा के सुधार्णव निधि यहीं रस-स्रोत हमारे ...। प्रेम-अभिलाषाओं के सिंधु से गहराते । आकांक्षा-अभिलाषा-कामना- पिपासा-प्रतीक्षा कितने लघु हैं ये समस्त शब्द इन नयनों के भाव समक्ष ... फूलों की मोहब्बत , फूल समझे । कोमल-मृदुल-रसोल्लास से छलकते कभी दैन्य से द्रवित होते कितने व्याकुल होकर भी परम गंभीर-इनकी मधुर सुरभियाँ... । ये दो नयन हैं प्यारे के या इनका हृदय ही यहाँ बैठा इन रूपों में श्रीप्रिया पथ की बाट जोह रहा है ... प्रियतम हृदय को कहते यह दऊ नयन । अनन्त काल की प्रतीक्षा इस क्षण बिंदु में समाई हुयी है ... आहा सघन-घन-गहन निहारन इन मनहरजु की । कोई उपमा स्पर्श ही नहीं कर सकती इन नेत्रों की प्रतीक्षा को ,तो यांको या से ही पुकारूँ ... जे लाल सी लाल की निगाहें री। कितनी अभिलाषा कैसी लालसा जैसे इन भावनाओं का उद्गम ही यह दो नयन के कुंवर लाल के । लाल आह! लाल की लालसा कैसी अद्भुत अद्वितीय लालसा से जगमग कर रहे दो नयन । इन्हें नयन ना समझियो केवल ये तो हृदय है लाल जू को ।  कोई रूप देखे , कोई रस चाखे , कोई कटीले नशीले बरछीले बतावे पर ये नयन तो श्रीप्रिया अभिलाषा के सागर हैं । प्रेम प्रतीक्षा के मूर्त रूप हैं ये उतावले नयन... प्रियाजु पिपासा की मूर्त-सुधानिधि  । परम गंभीर - परम उतावले - परम प्रफुल्लित - परम प्रतीक्षित । गहनतम् तृषा को समेटे नयन । तृषा को तृषा का दान देने वाले ये नयन । प्यारी के पथ जुडे प्यारे को दो प्यारे से नयन ... प्यारीजु यहाँ-वहाँ तलाशते बहुत मिलें जी, इन नयनों में उन्हें खोजते वही जो प्यारे के हियकुंज से प्यारीजु तक जावे ... प्यारीजु के पद-चिन्ह पर गढ़े यह नयन ।तृषित। जयजयश्रीश्यामाश्याम जी ।।

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