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Shree radha pad raj परम् दुर्लभ पद रेणुका

सचिदानंद  दिव्य  सुधा  रस  सिन्धु  ब्रजेन्द्र  नंदन  राधावल्लभ  श्यामसुंदर  श्री  कृष्ण  चन्द्र  का  नित्य  निवास  है  प्रेम  धाम  ब्रज  में   और  उनका  चलना  फिरना  भी  है  ब्रज  के  मार्ग  में  ही. यह  मार्ग  चित्त  वृति  निरोध  सिद्ध  महा  ज्ञानी  योगीन्द्र  मुनीन्द्रों  के  लिए भी  अत्यंत  दुर्गम  है. ब्रज  का  मार्ग  तो  उन्हीं  के  लिए  प्रकट  होता  है  जिनकी  चित्त  वृति  प्रेम  धन  रस  सुधा  सागर  आनंदकंद  श्री  कृष्ण  चन्द्र  के  चर्णारविंदों  की  ओर  नित्य  निर्बाध  प्रवाहित  रहती  है  जहाँ  न  निरा  निरोध  है  और  न  ही  उन्मेष  ही   बल्कि  दोनों  की  चरम  सीमा  का  अपूर्व  मिलन  है.

इस  पथ  पर   अबाध  विहरण  करती  हुई  वृष   भानु  नंदनी  रासेश्वरी  श्री  श्री  राधा  रानी  का  दिव्य  वसनांचल  विश्व  की  विशिष्ट  चिन्मय  सत्ता  को  कृत  कृत्य  करता  हुआ  नित्य  खेलता  रहता  है  किसी  समय  उस  वसनांचल  के  द्वारा  स्पर्षित धन्यातिधन्य पवन  लहरियों  का  अपने  श्री  अंग  से  स्पर्श  पाकर  योगीन्द्र  मुनीन्द्र  दुर्लभ  गति  श्री  मधुसुदन  पर्यंत  अपने  को  कृतार्थ  मानते  हैं  उन  श्री  राधारानी  के  प्रति  हमारे  मन  प्राण  आत्मा  हमारे  अंग  अंग  से  नमस्कार  !

जो  सबके  ह्रदय  अंतराल  में  नित्य  निरंतर  साक्षी  और  नियंतारूप  से  विराजमान  रहने  पर  भी  सबसे  पृथक  रहते  हैं  जो  समस्त  बन्धनों  को  तोड़कर  सर्वथा  उच्च श्रृंखला  को  प्राप्त  हैं , जिनके  स्वरुप  का  सम्यक  ज्ञान  ब्रह्मा  शंकर  शुक  नारद  भीष्म  आदि  को  भी  नहीं  है  अतएव  वे  हार  मानकर  मौन  हो  जाते  हैं  उन  सर्वनि यमातीत  सर्वबंधनविमुक्त  नित्य  स्ववश  परात्पर  परम  पुरुषोतम  को  भी  जो  श्री  राधिका  चरण  रेणु  इसी  क्षण  वश  में  करने  की  अनंत  शक्ति  रखता  है  उस  अनंत  शक्ति  श्री  राधिका  चरण  रेणुका  हम  अपने  अन्तस्तल  से  बार  बार  भक्ति  पूर्वक  स्मरण  करते  हैं  !

विश्व्प्रकृति  के  प्रत्येक  स्पंदन  में  बिन्दुरूप  से  जो  अनुराग  वात्सल्य  कृपा  लावण्य  रूप  सौन्दर्य  और  माधुरी  वर्तमान  है  - रासेश्वरी  नित्य  निकुंजेश्वरी  श्रीवृष  भानुनंदनी  उन्ही  सातों  रासो  की  अनंत  अगाध  अधिष्टात्री  हैं. इस  प्रकार  नित्य आनंद  रसमय   सप्त  स्मुद्र्वती  श्री  राधिका  श्याम  सुन्दर  आनंदकंद  के  नित्य  दिव्य  रमणानन्द  में  अनादी  काल  से  उन्मादिनी  हैं  - नित्य  कुल  त्यागिनी  हैं. इन्हीं  के  सहज  सरल  स्वच्छ  भाव  के  शुद्ध  रस  से  इन्हीं  के  भावानुराग  रूप  दधिमंड से  इन्ही  की  वात्सल्यमयी  दुग्ध  धारा  से   इन्हीं  की  परम  स्निग्ध  घृतवत अपार  कृपा  से  इन्हीं  की  लावण्य  मदिरा  से  इन्हीं  के  छबिरूप  सुन्दर  मधुर  इक्षुरस  से  और  इन्हीं  के  केलि  विलास  विन्यास  रूप  क्षार  तत्व  से  समस्त  अनंत  विश्व  ब्रह्माण्ड  नित्य  अनुरक्षित  अनुप्राणित  और  ओतप्रोत  है. 

ऐसी  अनंत  विचित्र  सुधा रसमयी     प्राणमयी  विश्व रहस्य    की  चरम  तथा  सार्थक  मीमांसामूर्ति  श्री  वृष  भानु  नंदनी  का  दिव्य  स्फुरण  जिसके  जीवन  में  नहीं  हो  पाया  उसका  सभी  कुछ  व्यर्थ  - अनर्थ  है. देवी  राधिके  अपने  ऐसे  दिव्य  स्फुरण  से  मेरे  ह्रदय  को  कृतार्थ  कर  दो  !

श्री  राधिके  वह  शुभ  सौभाग्य  क्षण  कब  होगा  जब  तुम्हारे  नाम  सुधा  रस  का  आस्वादन  करने  के  लिए  मेरी  जिव्हा  विह्वल  हो  जायेगी  जब  तुम्हारे  चरनचिन्हों से  अंकित  वृंदारन्य   की  बीथियों  में  मेरे  पैर  भ्रमण  करेंगे  - मेरे  सारे  अंग  उसमे  लोट  लोट  कर  कृतार्थ  होंगे  जब  मेरे  हाथ  केवल  तुम्हारी  ही  सेवा  में  नियुक्त  रहेंगे  मेरा  ह्रदय  तुम्हारे  चरण  पद्मों  के  ध्यान  में  लगा  रहेगा  और  तुम्हारे  इन  भावोत्सवों  के  परिणामरूप   मुझे  तुम्हारे  प्राण  नाथ  के  चरणों  की  रति  प्राप्त  होगी  - मैं  तुम्हारे  ही  सुख  साधन  के  लिए  तुम्हारे  प्राण  नाथ  की  प्रयेसी  बनने  का  अधिकार  प्राप्त  करूँगा  !
सत्यजीत तृषित
"जय जय श्री राधे"

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