श्रीराधा श्रीकृष्ण नित्य ही परम तव हैं एक अनूप।
नित्य सच्चिदानन्द प्रेमघन-विग्रह उज्ज्वलतम रसरूप॥
बने हुए दो रूप सदा लीला-रस करते आस्वादन।
नित्य अनादि-अनन्त काल लीलारत रहते आनँदघन॥
कायव्यूहरूपा राधाकी हैं अनन्त गोपिका ललाम।
इनके द्वारा लीला-रस-आस्वादन करते श्यामा-श्याम॥
कृष्ण, राधिका, गोपी-जन-तीनोंका लीलामें संयोग।
एक तव ही, तीन रूप बन, करता लीला-रस-सभोग॥
परम तव श्रीकृष्ण नित्य हैं अनुपम सत्-चित्-आनँदघन ।
सत् संधिनि, चित् चिति, आह्लादिनि है आनन्दशक्ति रसघन॥
ह्लादिनि स्वयं ‘राधिका’, संधिनि बनी नित्य ‘श्रीवृन्दावन’।
बनी ‘योगमाया’, चिति करती रसलीलाका आयोजन॥
राधा स्वयं बनी हैं व्रजमें गोपरमणियाँ अति अभिराम।
लीला-रसके क्षेत्र-पात्र बन, यों लीलारत श्यामा-श्याम॥
ब्रजसुन्दरी प्रेमकी प्रतिमा, कामगन्धसे मुक्त, महान।
केवल प्रियतमके सुख-कारण, करती सदा प्रेम-रस-दान॥
लोक-लाज, कुल-कान, निगम-आगम, धन, जाति-पाँति, यश, गेह।
भुक्ति-मुक्ति सब परित्याग कर करतीं प्रियसे सहज सनेह॥
इन्द्रिय-सुखकी मलिन कामना है अति निन्दित कलुषित काम।
मोक्षकाम-कामी न्नँचे साधक भी नहीं पूर्ण निष्काम॥
काम सदा तमरूप, अन्धतम नरकोंका कारण सविशेष।
प्रेम सुनिर्मल हरि-रस-पूरित परम ज्योतिमय शुभ्र दिनेश॥
जिसको नहीं मुक्तिकी इच्छा, जिसे नहीं बन्धनका भान।
केवल कृष्ण-सुखेच्छा-हित जिसके सब धर्म-कर्म, मति-जान॥
ऐसे गोपी-जन-मनमें लहराता प्रेम-सुधा-सागर।
इसीलिये रहते उसमें नित मग्र रसिकमणि नटनागर॥।
इसमें भगवान की शक्तियो की बात भाई जी कहे है ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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