हे श्रीकिशोरी राधिके जू !मेरे अनंत अपराधो के लिऐ मैं आपसे क्षमा-प्रार्थी हूॅ ।�। ।मैं तुम्हारा अज्ञानी और अबोध बालक हूॅ और तुम ही मेरी माॅ हो ।अनादि काल से अनंत जन्मो में मैने अनंत पाप ही किये है तथा अब भी मैं मूर्खतावश प्रतिपल और पापो का ढेर जमा करता जा रहा हूॅ ।तुम अपने अकारणकरुण स्वभाव के चलते कृपा करके बारम्बार मुझको मानव देह प्रदान करती है और मैं महामूढ़ इस नश्वर संसार के चक्कर में उस अमूल्य देह को गॅवा देता हूॅ ।तुम जानती ही हो कि तुमसे अनादिकालीन मैं विमुख हूॅ जिस कारण तुम्हारी ही माया ने मुझ पर अधिकार कर रखा है जिसके चलते मैं मन को सदा संसार में ही लगाता आया हूॅ; उसी संसार में तुम्हारी माया ही मुझे बार-बार दंड (संसार के दुख/हानि आदि) देती है ताकि मैं तुम्हारे सन्मुख हो जाऊ लेकिन मैं महामूर्ख बार-बार उसी संसार में मन लगा देता हूॅ जहाॅ दिन-रात मुझे ठोकरे और दुत्कार ही मिलता है ।जिस प्रकार तुम्हारे समान कोई पतितपावन नही है उसी प्रकार मेरे समान कोई पतित नही है; हम दोनो की कोई उपमा (मेरे पापी होने की और तुम्हारे पतितपावन होने की) ही नही है ।तुम्हारे अकारणकरुण, पतितपावन, दीनवत्सल आदि गुणो का बखान सुनकर ही मैं अब सदा को तुम्हारे द्वार पर आ गया हूॅ अब तुम जब चाहो अपनाओ या ना अपनाओ ये तुम्हारे हाथो में है लेकिन तुमको त्याग मैं अन्यत्र कही नही जाऊंगा।अतः हे परम कृपालु श्रीराधे जू ! अब अपने गुणो की ओर देखकर ही (क्योकि किसी भी अन्य उपाय से मुझ सरीखे पापी का ऊद्धार तो असम्भव ही है) किञ्चित कृपा की कोर मेरी ओर भी कर दो ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
Comments
Post a Comment