’कहाँ गये तुम, कहाँ छिपे ? हे नाथ ! रमण ! जीवन-आधार !’
विरह-प्रेम-वैचिय-विकल राधा कर उठी करुण चीत्कार॥
विषम विरह-दावानलसे हो रहा दग्ध यह दीन शरीर।
प्राण-पखेरू उड़ा चाहता, त्याग इसे, हो परम अधीर॥
यद्यपि मैं अतिशय अयोग्य हूँ, सहज मलिन, गुण-रूप-विहीन।
मान बढ़ाकर तुमने मेरा, मुझे कर दिया धृष्टस्न्, अदीन॥
लगी मानने तुहें प्राणवल्लभ, मैं मनमें कर अभिमान।
लगा, तुहें मिलता होगा मुझसे कुछ सुख विशेष, रस-खान !॥
परमानन्द-सुधार्णव तुम हो नित्य, अनन्त, अगाध, अपार।
?या आनन्द तुहें दे सकती गुण-दरिद्र मैं, दोषागार॥
तो भी तुम मुझसे मिलते हो, हृदय लगाते, देते स्नेह।
बरसाते रहते तुम संतत मुझपर प्रेम-सुधा-रस-मेह॥
कोटि-कोटि सुन्दरियाँ हैं गुण-शील-रूप-सौन्दर्य-निधान।
उन्हें छोड़, तुम मुझे निरन्तर देते रहते शुचि रस-दान॥
निश्चय ही मिलता होगा तुमको इससे अतिशय आनन्द।
मुझसे बिछुड़, हो रहे तुम उस सुखसे वचित, हे स्वच्छन्द !
विरह-वेदनासे यदि, प्रियतम ! मेरे चले जायँगे प्राण।
वचित सदा रहोगे फिर तुम इस सुखसे, प्राणोंके प्राण !
करुण विलाप करोगे फिर तुम मेरे लिये नित्य, नँद-लाल !
रह जायेंगे प्राण तो दुःख न होगा तुहें, रमण ! उर-माल !
मिलकर प्राण बचा लो मेरे अभी तुरंत परम सुकुमार !।
करो शीघ्र आनन्द-लाभ फिर, प्रियतम हे ब्रजराज-कुमार !॥
तुहें तनिक सुख होता तो रहता न मुझे प्राणोंका मोह।
कोटि-कोटि हैं प्राण निछावर तुमपर, परानन्द-संदोह !
श्री भाई जी । पदरत्नाकर ।।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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