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श्री जी भाव पद

हे राधे ,हे वृषभानु लली !!
तुम बिन जीवन क्या जीवन है।
जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही वृन्दावन है।

हे परमेश्वरी, हे सर्वेश्वरी
तू ब्रजेश्वरी, आनंदघन है।
हे कृपानिधे! हे करुणानिधि!
जग जीवन की जीवन धन है।

दुर्गमगति जो योगेन्द्रों को,
वही दुर्लभ ब्रह्म चरण दाबे।
रसकामधेनु तेरी चरण धूल,
हर रोम लोक प्रगटावन है।

अनगिनत सूर्य की ज्योति पुञ्ज,
पद नखी प्रवाह से लगती है।
धूमिल होते शशि कोटि कोटि
दिव्यातिदिव्य दिव्यानन है।

श्रुति वेद शास्त्र सब तंत्र मन्त्र,
गूंजे नुपुर झनकारो में।
वर मांगे उमा, रमा, अम्बे,
तू अखिल लोक चूड़ामणि है।

वृजप्रेम सिंधु की लहरों में,
तेरी लीला रस अरविन्द खिले।
मकरंद भक्तिरस जहां पिए,
सोई भ्रमर कुञ्ज वृन्दावन है।

जहां नाम तेरे की रसधारा,
दृग अश्रु भरे स्वर से निकले।
उस धारा में ध्वनि मुरली की,
और मुरलीधर का दर्शन है।

राधा माधव ,माधव राधा,
तुम दोनों में कोई भेद नही।
तुमको जो भिन्न कहे जग में,
कोई ग्रन्थ,शास्त्र,श्रुति वेद नही।

जहां नाम, रूप ,लीला छवि रस,
चिंतन गुणगान में मन झूमें।
उस रस में तू रासेश्वरी है,
रसिकेश्वर और निधिवन है।

जब आर्त ह्रदय यह कह निकले,
वृषभानु ललि मैं तेरी हूँ।
उस स्वर की पदरज सीस चढ़े,
तब लालन के संग गोचन है।

जिस जीवन की तुम जीवन हो,
वो जीवन ही संजीवन है।
अराध्य तुम,आराध्या तुम ही
आराधक और आराधना है।

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