किशोरी जी को पाना है तो दास नहीं दासी बनना पड़ेगा..
....पूर्ण समर्पण दासी भाव, किंकरी भाव, मंजरी भाव से ही आएगा
....बड़ी विडंबना है..भक्त भी बनना चाहते हैं....
.और शरीर का अहम् भी नहीं जाता..
.नित्य लीला का दर्शन भी चाहते हैं
पर पुरुष होने का अभिमान नहीं जाता...
.कुछ भाइयों को ऐसा डर रहता है की
यदि हम मंजरी भाव उत्त्पन्न करेंगे
तो इसका असर हमारी पौरूषता पर पड़ेगा..
....तो कृपया ये गलतफ़हमी न पालें..
..वास्तव में आप पुरुष हो ही नहीं..
.क्यूंकि "परम पुरुष मेरे श्याम हैं सब जग उनकी नारी..
..मांग भरो पग धूलि सों चरण जाओ बलिहारी"..
....जब तक ये लौकिक देह का अभिमान,
अपनी पौरूषता का अभिमान नष्ट नहीं हो जाता
किंकरी भाव, मंजरी भाव लाना कठिन है..... दासी भाव लाने के लिए ज़रूरी नहीं की आप स्त्री परिधान लहँगा-चुनरी इत्यादि धारण करें.....साधक स्वयं को
किशोरी जी के परिकर की सेवा में परायण जानकार..श्रीराधा के प्रसादी वस्त्राभूषणों से भूषित इस रूप में अपनी भावनामयी मूर्ति का चिंतन करें....ऐसा बोध हो की साधक अपने मंजरीस्वरुप को देख रहा है और वह मंजरीस्वरुप नित्यसिद्ध सखी जैसे भाव-रुपादि से संपन्न है..अर्थात इन भाव-रूप से युक्त जो देह है वह देह ही मैं हूँ ऐसा दृढ अभिमान बनाये रखें..
ऐसा करने से किशोरी कृपा संभव है...जय श्रीराधे !! —
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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