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तत्सुख की सरलता

तत्सुख कठिन है । कारण ।
तमन्नायें । हसरते । ख्वाहिशों की बाढ ।
परन्तु तत्सुख सरल है । अगर अचाह जग जाये । या उनकी यादों की आह । और उनकी ख़ुशबूऒ में ही वाह रहे । तलब हो जाएं वे । ज़रूरत हो जाएं । प्यास हो जाये ।
जब तक यें धारणा रहे तुमसे मिलने आता हूँ । तब तक मैं भी है रस भी नहीँ निजता भी । जब हो जाये पता कि तुम्हें मिलना है सो खिंचा आया हूँ यहाँ रस है प्रेम भी अहंता से बचाव भी । पर यें स्थिति हो जाये । प्रयास से नहीँ रस के गौते से ।
जब कोई कहे नापजप क्यों ? और जवाब हो कि उन तक जाने के लिए तो प्रयास हुआ और जवाब ये हो कि मेरी क्या हैसीयत कि नाम ले पाता शायद उन्हें ही याद आई है सो जुबाँ से निकलने लगा है ।
जब भी नाम हो उसे उनकी याद माने उन्हें याद आई । इसमें हो गया तत्सुख । चूँकि अब भजन आप अपनी ईच्छा से नहीँ किसी की यादें करा रही है तो अब हक़ रहता ही नही कि कोई हसरते हो । रहम उनका कि ऊधर यादें उठी ईधर नाम जुबाँ पर हुआ । तब भजन कृपासाध्य हुआ । जब जब नाम तब तब उन्हें ही याद आई । क्योंकि हम क्या उन्हें चाहेगे वें ही तो चाहते है । यें उनके चरणों का रस उनकी असीम कृपा है । हम तो भोग के भूखे है और ये ही सच है पर भूख सुख गई तो कृपा उनकी ।
जगत हमेँ देखना है पर उन्हें हमेँ देखने का - लाड का मन हुआ तो ईधर प्यास जगी । उन्हें लाड रहे सदा तो सब निभ जायेगा । उन्हें रहा तो हमें वे चुम्बक की तरह खेचते रहेगे । जो करना है करेंगे । सब असमर्थ समर्थ होगा । हम उनके है केवल उनके तो उनके ही रहना है अप्रयत्न ।  सम्पूर्ण अभिनय ; साधना ; भजन एक तिलिस्म सी घट रही है । सन्तों ने कहाँ कि कहते रहे हे नाथ मै तुम्हें न भूलूँ । बड़ी सुंदर भावना ।
एक विनय भीतर उठी इसे भी नित्य विनय करें । प्रभु जी इतना लाड करते हो आप । आप मुझे बड़ा लाड करते हो किसी भी जन्म और किसी रूप ने इतना न चाहा । आपकी चाहत से अब हटने का जी नही करता । हे नाथ । आपकी कृपा से मैं आपकी हूँ । कभी कभी पूछे कि क्यों आपको मेरे दोष न दिखे आप प्रेम में कितना खो गए प्रभु और भी ... भाव रहे उनका प्रेम । उनका सामर्थ । उनका लाड । उनका स्नेह । उनका आशिष । और बिना किसी प्रयत्न की अपार प्रेम वर्षा कारण उनके प्रेम भाव -- सत्यजीत तृषित । तत्सुख ।
तुलसीबाबा का स्वान्तः सुख भी तत्सुख है । कभी बात करेगे।

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