प्रभु-प्रेम गहन भाव निहित
पल्लवित मन-उपवन हो
सुहाना ऋतु-अभिनंदन हो
जूही चम्पा चमेली का नैसर्गिक श्रृंगार हो
चंचल मंद त्रिविध समीर पुलकित
विस्मित रमणीय भ्रँमर चंचल
सौरभ-सुवासित कुँज-निकुँजों में
पीताम्बर धारी संग मधुर हास-विलास हो
शुभ प्रभात
शुभ प्रभात
जलता रहता शान्त दीप सा
व्यथित आकुल हृदय हमारा।
लगन- चित्र अंकित कर मन पर
छुपा मन में विरह-उपहार तुम्हारा।
रो रो कर सिसक सिसक कर
कटती हैं मेरी निष्ठुर रातें।
छिपे रहो तुम अवगुण्ठन में
हिय पर दे दे कर प्रिय घातें।
जब मुरली मुखरित हृदय-कमल में
बंधन के तारों की जकड़न।
जग कहता तुम काटते बंधन
मुझको लगता और जकड़ते हो तुम।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
अब कभी न निद्रा का प्रवेश
बंद नयनों में तुम्हारे स्वप्न।
मेरे मिलन-कुँज हृदयाँगन में
शाश्वत सजे, गहन मौन अभिलाषा बन।
अंत:स्तल के असीम अम्बर में
चंचल चपला से नटखट तुम।
मैं सिहर-सिहर उठती, स्वयंमेव हो जाते
मन मंदिर पर अर्पण,आँसू मुक्ता बन।
एक प्रतीक्षा सी रहती है
मृदुल मधुर विरह-निशा की।
ज्यों भावों के मणिदीप लिये
पथ प्रशस्त कर जाते हो।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
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