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मनीषा पञ्चकं की सीख
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जिसने अपने गुरु के वचनों से यह निश्चित कर लिया है कि परिवर्तनशील यह जगत अनित्य है । जो अपने मन को वश में करके शांत आत्मना है । जो निरंतर ब्रह्म चिंतन में स्थित है । जिसने परमात्म रुपी अग्नि में अपनी सभी भूत और भविष्य की वासनाओं का दहन कर लिया है और जिसने अपने प्रारब्ध का क्षय करके देह को समर्पित कर दिया है । वह चांडाल हो अथवा द्विज हो, वह मेरा गुरु है॥३॥
शश्वन्नश्वरमेव विश्वमखिलं निश्चित्य वाचा गुरोः
नित्यं ब्रह्म निरन्तरं विमृशता निर्व्याज शान्तात्मना ।
भूतं भावि च दुष्कृतं प्रदहता संविन्मये पावके
प्रारब्धाय समर्पितं स्ववपुरित्येषा मनीषा मम ॥ ३ ॥
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