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गोप्यनिधि

जय जय राधिका-माधव

महा उत्सव - महा उल्लास - विभिन्न रस से सजी कार्तिक मध्य में त्यौहारों की वलिका ......हमारे प्यारे युगल सरकार बिना क्या पर्व ? क्या उत्सव ? 

गोप्य निधि
"रसाङ्कों की गोप्यनिधि और गोप्यनिधि के उजले रसाङ्क |"
प्रिय अङ्क  में विराजित रतिरस-चपला किशोरी राधिका , रसरंगवारिधि प्रियतम की यह रसरहस्यपूर्ण वाणी सुन मुस्करायीं ! सदा की भाँति आज उन्होंने मुस्कान की सुधा-धारा को ...... अरुणाधरों में बाँधने का प्रयास नहीं किया ! उनकी वह मधुर मुस्कान विकसित होती गयी | उस उमडती मुस्कान मदिरा ने हठात् प्रियतम के .... नयन-कटोरों को आकर्षित किया , पर जाने क्यों , उनके अधर दलों ने आगे बढ उस उमग कर आती मदिर धारा को अपने में समेट  लेने की सरस चेष्टा की | ........ इस चेष्टा ने यथेष्ट ....... रसासव सञ्चय किया और फिर उस सञ्चित सम्पदा को लुटाने के लिये वे पल्लवद्वय व्यग्र हो उठे | रस व्यग्रता की वह अनुठी देन ...... ! वार्ता अधरों में ही सिमट कर रह गयी ....... पर वार्ता का वह ... रस रहस्य ....... अधरों की अधरों से रसार्चना करता कराता रहा |
आज वह प्राणवल्लभा तुनकी नहीं , ठुनकी नहीं , वर्जना-तर्जना की नहीं की | क्या पता कब तक इस सुअवसर का लाभ उठाते रहे , रस लम्पट रसिक किशोर | ....... लाभ ने लोभ को आमन्त्रित किया और उससे घनिष्ट मैत्री जोड , सर्वथा निर्भय हो ...... प्रिया के सुतनुगढ में स्वच्छन्द विचरण ...... आरम्भ कर दिया | ..... गढ के किसी भी सेनानी ने आज रोकथाम नहीं की , अपितु पूरी चाहना से उनका-सत्कार किया | ....... तिमिराच्छादित उस निकुञ्ज में स्वच्छन्द केलिविलास ! उन्मुक्त रसविहार ........ !
सान्ध्य तिमिर का वह सघन श्याम वैभव और घना होता गया | ....... नभ के अंक में आ , मेघमण्डल ने झुक उस वनस्थली को निहारा | उसकी विहँसन ही दामिनी की दमक बन, काँध उठी और अपने आलोक से उस स्थली को भूषित कर , पूजित कर लौट गई , मेघ में विलीन हो गई | निकुञ्जस्थली की सघन श्यमलता को मेघमण्डल ने रस बौछारों से , शीतल मन्द फुहारों से सिञ्चित् कर और- और स्निग्ध कर दिया , अधिकाधिक सरसा दिया | दामिनी की उन उजली रश्मियों ने प्रियाजी को चौंका दिया | अब तक नयन मूंदे , मौन मुग्ध हुई विलस रही थी , पर अब वे तनिक चैतन्य हुई | उस रस-चेतना ने पदार्पण करते ही संकोच को वरण कर लिया | ...... चेतना और संकोच ने वर्जना का आश्रय लिया | वर्जना ने भ्रुभंगिमा की ओट से रसप्रवीर प्रियतम पर रसप्रहार किया , पर सुवीर किशोर ने उसे मुग्ध चितवन और मन्द मुस्कान पर झेल लिया | ........ प्रिया के युगल कर-प्रहरी सचेत - सचेष्ट हुये और उन्होंनें प्रियतम के ......... रस लुटेरे लाभ-लोभ सैनिकों को रोकने की भरसक चेष्टा की , पर वे उद्दण्ड लुटेरे रोके न रुके , थामे न थमे , अपितु उन्हें फुसलाने  की अनेकानेक रसीली , नशीली चेष्टायें करने लगे | कर प्रहरियों के सभी प्रयत्न विफल हुए, अब वह रसावेश में उन्मत्त हो रसताडना में प्रवृत्त हुए , पर स्मर-समर-बाँकुरे .......... प्रियतम के ............ सुअंग समाश्रय से सबल हुए लाभ-लोभ तनिक भी मुडे नहीं , रुके नहीं , झुके नहीं , निर्भय हुए विचरते , विहरते , विलसते , हुलसते रहे |
एक बार फिर तडिता कौंधी , उस कौंध कडक से भीता किशोरी ...... सब भूल रसलम्पट प्रियतम से ...... | राग रसिया नवल-सुन्दर की मन्द-मधुर हास झंकार ........ से वह कुञ्ज ध्वनित हो गयी | उन्होंने दृढ़ परिरम्भण , गाढ़ प्रणय बन्धन दुर्ग में ........ सभीता सुकुमारी को ला मधुरासव पान कराया |
अब की बार प्रियाजी ने पूरे नयन खोले और सुरसविहारी प्रियतम को निहारा , सद्यविकसित कमल से मधुधारा बह चली हो | प्रियतम तनिक स्थिर हो , अवलोकन धारा में मञ्जित अनुरञ्जित से ........ उन्हें निहारते रहे | उनके ...... विशाल नयन निर्झरों से भी रस की मधुर धारा फूट रही थी | अवलोकन धाराओं का यह संगम अब फिर नया ही रंग लाया | प्रियतम ने झुक झूमकर धीरे से कहा, "प्रिये ! इस एकान्तिक निकुञ्ज में रसांकों की गोप्यनिधि को यदि मैं ..... निरख-परख कर ..... तो...|"प्रियाजी सिहर उठी , उनका कमल-कोमल वपु झनझना उठा | उन्होंने प्रियतम को वाक्य पूरा नहीं करने दिया | अपने करकमल से उनके अधर-दलों को ढाँपते हुए अस्फुट सी वाणी में इतना ही कह पायीं, "तो .... तो...... |"
राग रस के वह मधुर अक्षर विद्रुम सी उन अधर-प्यालियों से छलके नहीं , उन्हीं में तनिक चञ्चल हो, रह गए | प्रियतम का रसचापल्य उस फडकते चाञ्चल्य में ...... खोया सा , सुधिहारा सा , न जाने क्या ...... क्या कहता करता रहा और ....... और ...... रसांकों की वह गोप्यनिधि और -और समृद्ध होती रही ...... और उस निधि के वह रसांक और-और गहरे हो ....... , रस साम्राज्य सम्पदा की सरस गाथा कहते दोहराते रहे...... | सत्यजीत "तृषित" regularly touch ke liye whatsapp grop se jude satyajeet trishit 089 55 878930
जय-जय हमारी मधुरा राधिका-माधुरी रस में नहाते हमारे माधव ....

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