कुब्जा सुंदरी का प्रेम
कुब्जा कंस की दासी थी जो कि प्रतिदिन कंस के लिए सुगंधित चंदन लेप ले जाती थी । भगवान ने कुब्जा को सुंदरी कह कर पुकारा क्योंकि ब्रजवासियों को चंदन की जरूरत थी । भगवान ने कहा कि हे सुंदरी ! तुम कौन हो ? कुब्जा ने यह ‘सुंदरी’ शब्द अपने लिए कभी नहीं सुना था । उसने सोचा कि जो वास्तविक सुंदर हो, वहीं सुंदरी कह सकता है । सुंदरता की परिभाषा यह नहीं है कि सब असुंदर हों और उनके सामने हम सुंदर लगे । सुंदरता की परिभाषा तो यह है कि जिनकी नजर में कोई असुंदर न हो । कुब्जा ने भगवान से कहा कि तुम तो बिल्कुल सुंदर हो । कुब्जा ने अपना परिचय दिया कि ‘मैं कंस की दासी हूं और मेरा नाम त्रिवक्रा है ’ । त्रिवक्रा का मतलब है कि काम, क्रोध और लोभ तीन दुर्गुण रूप । भगवान ने कहा कि मेरा नाम त्रिविक्रम है । हम दोनों मिलते – जुलते हैं । भगवान ने एक उंगली कुब्जा की ठोड़ी के नीचे लगायी और उसे टेढ़ी से सीधा कर दिया और कुब्जा त्रिवक्रा (जिसका शरीर तीन जनग से टेढ़ा था ) से परम सुंदरी बन गयी । इसका मतलब है कि भगवान के आश्रय से त्रिवक्रा बुद्धि भी शुद्ध हो जाती है । त्रिवक्रा ने त्रिवक्रम सहित सभी को तिलक लगाया । हमारी बुद्धि जब कंस जैसे विषयासक्तों के संग में रहेगी तो उसमें त्रिदोष आएंगे : काम, क्रोध और लोभ । वह बुद्धि असुंदर होगी । जब वह बुद्धि प्रभु के चरणो को स्वीकार कर लेती है, तब वह सुंदर बन जाती है ।
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ छैल छबीलौ, गुण गर्बीलौ श्री कृष्णा॥ रासविहारिनि रसविस्तारिनि, प्रिय उर धारिनि श्री राधे। नव-नवरंगी नवल त्रिभंगी, श्याम सुअंगी श्री कृष्णा॥ प्राण पियारी रूप उजियारी, अति सुकुमारी श्री राधे। कीरतिवन्ता कामिनीकन्ता, श्री भगवन्ता श्री कृष्णा॥ शोभा श्रेणी मोहा मैनी, कोकिल वैनी श्री राधे। नैन मनोहर महामोदकर, सुन्दरवरतर श्री कृष्णा॥ चन्दावदनी वृन्दारदनी, शोभासदनी श्री राधे। परम उदारा प्रभा अपारा, अति सुकुमारा श्री कृष्णा॥ हंसा गमनी राजत रमनी, क्रीड़ा कमनी श्री राधे। रूप रसाला नयन विशाला, परम कृपाला श्री कृष्णा॥ कंचनबेली रतिरसवेली, अति अलवेली श्री राधे। सब सुखसागर सब गुन आगर, रूप उजागर श्री कृष्णा॥ रमणीरम्या तरूतरतम्या, गुण आगम्या श्री राधे। धाम निवासी प्रभा प्रकाशी, सहज सुहासी श्री कृष्णा॥ शक्त्यहलादिनि अतिप्रियवादिनि, उरउन्मादिनि श्री राधे। अंग-अंग टोना सरस सलौना, सुभग सुठौना श्री कृष्णा॥ राधानामिनि ग
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