Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2017

र से रस , 36 , संगिनी जु

!! प्रेम विहर्मत सर्व समर्पण !! प्रगाढ़ प्रेम प्रगाढ़तम विरह और अति प्रगाढ़तम समर्पण।यही हैं प्रेम की नहीं क्यों कि प्रेम की सीमा नहीं पर प्रेममग्न हृदय की परिसीमाएँ।प्रे...

मृदुला 1

कैसै हैं वे .......। परम अदभुत अकथनीय अनिर्वचनीय अद्वितीय और न जाने क्या क्या ॥ इतने भोले कि सृष्टि के समस्त शिशुओं का भोलापन उन्हीं के तो सीकर का परिचय कराता ॥ इतने प्रेमी कि तकत...

र से रस , 35 , संगिनी जु

!! विहरण भ्रमण प्रफुल्लन !! सुंदर सुघड़ सवर्णिम सेज श्य्या पर विराजे युगल अति गहन मधुर चंचल कोमल रसछटा धारण किए सुरत केलि से आलस्य भरे जगे हैं और उनकी इस समय की रूपमाधुरी का अद्...

र से रस , 36 , संगिनी जु

!! भाव अलंकार भूषण !! परस्पर निहारते श्यामा श्यामसुंदर जु रसमग्न हुए निकुंज में निर्मल विशुद्ध प्रेम की अद्भुत झाँकी हैं।उनका दिव्यातिदिव्य प्रेम भाव ऐसा है जैसे एक चंचल च...

मोहे ना छोड़ो नंद के लाल , संगिनी जु ।

मोहे ना छोड़ो नंद के लाल नयन मिलि जाबै ह्वै धमाल इत झलक देखूं कजरारि अखियन सों उत हिय जावै मनमोहिनि मुरतिया कमाल प्रिया जु आज श्यामसुंदर सों मुख फेरे बैठी हैं।श्यामसुंदर ...

र से रस , 34 , संगिनी जु

!! रसालाप रोमपुलक !! रसमय माधुरी जोड़ी श्यामाश्याम जु की डूबी प्रेम सुभावों में सदा महकती चहकती आनंदस्कित रखती कुंज निकुंजों में बसते रमते एक एक अहोभागी कण तृण को।माधुर्य रस...

र से रस , 33 , संगिनी जु

!! वचनामृत रसविनोद !! रसविनोद नागर नागरी श्यामसुंदर श्यामा जु रसिक सिरमौर तो हैं ही पर उनके रसानंद में डूबे समस्त रसिक व सखियाँ प्रियालाल जु के प्रेम भरे रसविनोद और वचनामृत ...

र से रस , 32 , संगिनी जु

!! रसमधुरिम अरूणिम प्रेमविलास !! स्वसुख की जहाँ गंध तक नहीं वहाँ प्रियालाल जु परस्पर सुखदान करते निरंतर सखियों संग लीलायमान रहते हैं।श्यामसुंदर जु श्यामा जु जिस तरह एक दूस...

पिया ना आये , भाव , संगिनी जु

हाय सखी !! देर भई पिया ना आए जाने कौन घड़ी किस राह धाय जिया मोरा तड़प तड़प जाए ऐ री !! राह तकूं सखी नयन बिछाए कंटक चुगूं पलकन सों बुहारूं हाय सखी !! देर भई अज पिया ना आए मोरा जिया घबराए र...

र से रस , 30 , संगिनी जु

!! प्रेम रसमहाभाव लहरियाँ !! प्राणधन से मिलने की गहन आतुरता और प्राणवल्लभा की रस आतुरता से आतुर हुए तृषित मधुकर श्यामसुंदर परस्पर अंतर्मन की पुकार करते डूबे रहते महाभाव समन...