Skip to main content

आपकी करुणा , बाँवरी जु

*आपकी करुणा*

हे पतितपावन गौर हरि! आप अनन्त कोटि करुणामयी हो। आपकी करुणा का बखान तो  कोटिन कोटि जिव्हा लेकर कोटिन कोटि जन्मों में भी नहीं हो सकता। आपका नाम एक बार भी किसी जिव्हा से उच्चारित होना, किसी हृदय में स्फुरित होना आपकी ही विशेष अनुकम्पा द्वारा सम्भव है। हे करुणामयी ! अनन्त कोटि जन्मों से आपसे विमुख यह हृदय अब जान गया है कि इस अनन्त भटकन के पश्चात यदि कहीं सुख है तो केवल आपके ही श्रीचरणों में। हे प्राणनाथ ! आप तो सदा से ही सँग हो परन्तु अपने हृदय की मलिनता से आपका सँग भी स्वीकार नहीं होता। हे करुणासिन्धु ! जब आप पतितपावन हो, पतितों के द्वारा आपके मात्र एक नाम उच्चारण से ही सम्पूर्ण पतितता नष्ट हो जाती है। हे करुणाकर! अब एक करुणा और कीजिये नाथ कि स्वयम के अवगुण न बखान आपके अनन्त गुणों का ही बखान करूँ। आपकी महिमा तो शब्दातीत है , परन्तु नाथ आपके नाम उच्चारण से , आपके गुणगान से ही इस अतृप्त हृदय में आपकी करुणा झलकने लगती है। हे नाथ ! मुझमें स्वयं की भी विस्मृति उदित हो जावै, यह जिव्हा आपके नाम , गुण उच्चारण में ही डूब जावै। यह दृष्टि अब ब्राह्य संसार से विमुख हो आपके कोमल चरणारविन्दों को ही निहारती रहे। आपके नाम से इस हृदय में उन्माद होता रहे। हे करुणासिन्धु ! यह हृदय बस आपकी करुणा की सुधा को पीता रहे। आपका नाम उच्चारण , आपका नाम संकीर्तन ही प्रति स्वास हो , शेष इस हृदय में कोई भौतिक इच्छा भी जाग्रत न हो। मुझ निर्बल का कोई बल नहीं नाथ , परन्तु मैं अपनी निर्बलता ही त्याग दूँ और आपकी करुणा के बल से ही बलवान रहूँ। हे त्रिभुवन पति! आपके गुणों का गान ही इस हृदय के त्रिताप को नष्ट करने वाला है। आप नाम रूप में ही इस जिव्हा पर विराजिए प्रभु !! एक क्षण भी कोई निराशा न घेरे , आपसे मेरा सम्बन्ध ही मेरे जीवन का आधार हो प्रभु! एक क्षण भी विस्मृति न हो आप ही मेरे नित्य सँगी हो और मेरी प्रत्येक स्वास आपके सुख सृजन हेतु ही है। हे करुणासिन्धु ! एक क्षण भी अपनी विस्मृति न देना !

नाथ मेरो ठौर तुम होय
मेरी गति मति तुमहीं सों और ठौर न जानू कोय
जय गौरांग गौर हरि बोलूँ नित हाथ उठाये दोय
जन्म जन्म गमाई बाँवरी अबहुँ बिरथा बैठी रोय
अबहुँ भज ले गौरहरि को ऐसो कौन दयामय होय
गौर गौर जिव्हा सों निकसै नयनन अश्रु माल पिरोय

जय जय गौरहरि !!

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...