श्रीयुगल जयजय !!
इतने कोमल हैं युगल कि परस्पर छूने से भी लजाते वो
और प्रेम में यह कोमलता जाती नहीं
निहारना तक बहुत हो जाता और छूना तो...
वो जब प्रेम में डूबते ना तब छुपा लेते भीतर परस्पर को
रसपिपासू....अधीर गम्भीर
आगोश में भर कर रस पाते पवाते
एकांतिक मन ही मन में डूब कर
रसलोलुपता में भी सिमटे हुए से
छुपा लेते सब आँचल में अपने
रसलोभी पर शालीन
लालसा गहरी पर मधुर बहुत
तड़प ऐसी जल बिन मीन तभी तो नयनों से बहता छलकता रस
यूँ ही ना बहने देते
बहुत शर्मीले लज्जावान दोनों
रसलम्पटता नहीं है श्यामसुंदर में भी
त्यागपूर्ण प्रेम ही है
नयन मिल नहीं पाते झुक जाते भर भर कर
स्वयं हृदय कंवल पर धारण करतीं तभी वे होते अन्यथा नहीं हालाँकि लालसा अनंतगुणा बढ़ जाती
पर संकोच रखते वे
प्रफुल्लित रोम रोम सिहर रहा और रस छलकने को पर नयनों में अश्रुजलकण जैसे हृदय पर नहीं हृदय में उतर जाओ ऐसे कि सर्वकामनाएँ शांत होकर सिमट जाएँ मौन रह जाएँ ऐसे समा जाओ और चरणकमल हिय पर सजा दो ऐसे कि स्थिर हो जाऊँ
जड़ता में नहीं रस की प्रगाढ़ स्थितियों में जहाँ केवल तुम रह जाओ रस पारखी पिपासु होकर
मेरी तृषा खो जाए
परस्पर प्रेम की लालसा को इतना समझते कि कहना नहीं पड़ता एक को दूसरे से कि अब यह तृषा
बिन कहे समझते
और परस्पर तृषा को शांत करते
कैसा होता ना यह प्रेम
समाया हुआ
पर अनछुआ सा
युगल प्रेम
अहा......
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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