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पूर्णिमा कौ पूर्ण रास , संगिनी जु

"पूर्णिमा कौ पूर्ण रास"

अनंत गुणशालिणी प्रिया मृनालिनी पियसुख हित मानिनी....
मानिनी ....
"नागरी नवल गुन सींव सब अंगनि में,
तेई भाइ जानिबै कौं नागर प्रवीन हैं
रूप अरू जौबन की जैसीयै गरूरताई,
तैसे उतनी रसिक सिरोमनि अधीन हैं।।"
प्रिया जु मानहुं धरि आईं आज जैसे बालत्व सौं बाल अति रूसावै...बिबस्त्र आभूसन पट सबन बिसरावै पर मान करै के भी सखासुख हेत सखनमन भावै !
जानू यांको रसबर्धन तांई लीला धरैं हैं लाड़ली सखियन संग !!
सांचि कहूँ सांचि प्रीत कौ मान बड़ो काचो होवै है...
नेह रस भोरि स्यामा जु पूर्ण चंद्र की निसांत गहन रससरसीली निकुंज भवनहुं की रसझारनियों में मनमोहन स्यामसुंदर संग रास रचाह्बै के निमित्त चंद्र सरीखी शीतल पुरवाई सौं खिलित नन्हे नन्हे रसभरे अनियारे सितारों की चूनर औढ़े बिराजित भईं।
नीलसुंदर की नीलबर्न रसदामिनियों से महके अनंत फूलन सौं सजे निकुंज की छत स्यामा जु के रूपमाधुर्य कौ पान कर छकी हुई नीलमणियों सी आभा बिखेर रही।
स्कंध सौं स्कंध और करकमलन सौं करकमल मिलै हुवै जैसे रास के नृतक नृतकी बन परस्पर नयनन की उरझन सौं ताल दे रहै...भुजाएं ही इस रास की द्वैदलन रससिंगारित बल्लरियाँ.... यांके कंकण चूरी मणिमय रासद्वीप का मुग्ध संगीत.....
कारि कामरिया सौं सजीली कृष्काय कटीली कटि की थिरकन ...नूपुरन पायलन की रसझंकरियाँ मंगल गीत धमनियाँ....प्रेम कौ खिलौना दोऊ...रास करैं रति रस सौं झगरैं कबहुं मंद मुस्कन सौं तीक्ष्ण भृकुटि लरैं...कबहुं रसपिपासु धीर अधर ताम्बूली रसघुलै...कबहुं बिगरै और भोरै समालिंगन सौं जुरैं....खेलैं प्रेम कौ खेल...
रास रास सौं ही अरै जुरै द्वैनैन द्वैहिय कमलनों सौं ऐसे उरझै के मानहुं तो सिगरि टेढ़ाई लै कर थिरक थिरक ठनक गयो जित सुखहेत बिथकित भए... और करूणाकर गरबांहि दियै जुगल नै रासमंडल कै द्वैकमलन कू अनंत अरूण प्रेम रसबाणों से खिलै सुघर झरोखों की निहारन तांई रसबिबस छांड़ि दियो....
अहा ! पूर्णिमा कौ पूर्ण रास की सखी री बनत बनत बन जाई ऐसी भोरी रस रीति सौं बलि बलि अनथकि अखियन तृषित फबन चकोर सम पाई !!

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