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ब्याहुला उत्सव , संगिनी जु

"ब्याहुला उत्सव"

गुड्डो गुड़िया कौ ब्याह कियो हो ना !एक बहानो होवै है सखियन संग प्रीत बढ़ावै कौ और खेल कौ आगे बढ़ानो ह्वै ना सो !अब ऐसो ही कछु प्रेम है सखियन कौ जो बिंदराबननहुं कौ देब दीपाबली कह सजाए रही..जैसे बहानो चाहिए यानै परस्पर प्रीतिरस में तन्मय जुगल कै सुख हेत..नित सजावत हैं स्वयं कू फिर स्वयं में प्रेम प्रगाढ़ करि कै सजावै हैं धाम की सगरी कुंज निकुंजन..वृंदा सखी आज तनिक सबन सौं अधिक भाव में हर्षाए रही..आजहु कै दिनन ही तो स्यामसुंदर याकै तांई सालिग्राम रूप धरह्यौ ना और सेवन सुख दियो लालड़ी कै चरणन कौ..तो आज बावरी है गई और उतावली बनी..ठुनक ठुनक..ठमक ठमक..करती कुंजों में सिंगार रूप सब सखियन कू एक एक बेल पत्र सुसज्जित करन तांई अधाई..अब सखियन कू तो बहानो चाहिए ही होय तो वृंदा सखी नै आदेस दे दियो तो और चहलकदमी बढ़ गई धाम में..लगीं सजानै चहुं दिसि जैसे अणु कण जगमगाए दियो..
ऐसो ही नेह स्यामा स्यामहुं कौ..राग रागिनियों रंगीली रंगनियों सौं घिरे जुगलबर सिंगार में डूबै परस्पर कू निहारन सुख पवाय रहै और निरख रहै झलमल झिलमिल झलकन ठसकन सौं पगै परस्पर रसफबै दुकुल नयनों को..जो लटपट लटपट फिसल फिसल दुकुल कमलकलसों में आ गिरते..त्रिवलि की गंध सौं नाभिसर की बावली में मीन सम तरैं..नयनों की सब्दावलि सौं बतियाते हिय सौं सुनते जुगलबर जैसे रस जड़ ब्है गए..एक तरफ स्यामसुंदर कौ हिय कमल सालिग्राम सौं है रह्यौ और भावानुभावों में मुग्ध हुयो जित जित प्यारि लसै तित तित बिछावन लगह्यौ तन मन प्राणन कू..और प्यारि ज्ह सुप्त बिछावन तैं नरम कुमल नयन पग धरतीं ऐसो नेह सौं कि जैसे सुमन झर रहै मंद मंद सेज से सज रहै..स्यामसुंदर कौ हिय अवनि पर और प्रिया जु के चरण फूलन सम..अहा !वृंदा सम बिछ रहीं प्यारी प्यारे कै प्राणन की बिछावन पर...अद्भुत रस बरस रह्यौ याकी अद्भुत रसप्रेम जड़ता सौं..
इधर सखियन नै सुरति सुरंग सौं लै के सम्पूर्ण जुगल ब्याह रचन तांई सगरी कुंजें सुसज्जित कर दीं हैं और झट से परस्पर निहारन सुख में तन्मय जुगल को कर सौं पकर लै आईं मंडप में फूलन की वेदी पर बिराजवै कौ..
लाए कै बिठाए दियो और जैसे ही स्यामा जु कै मुख पर घूंघट गिराह्यौ तनिक संभल सिहर सी गईं ब्ह ....उधर स्यामसुंदर तो जैसे नयनन सौं दृष्टि खोए दी..एक बार तो सिहरह्यौ पर सेहरे ललाटन पर सजतौ देख ...हाय !फूलै ना समावै री....
प्रिया जु की वेदी के एक तरफ वृंदा सखी दुल्हिनि सी सजी बैठ गईं हैं और स्यामसुंदर की तरफ सालिग्राम बिराजित भह्यौ..आनंद ही आनंद छाए रह्यौ..बन्य मयूर मयूरी हंस हंसिनी सुक सारि सबहुं तालन सौं ताल मिलाए नाच रहै संग नृत्य करतीं..मंगलगीत गातीं..ब्याहुला करातीं जुगल सखियन कै..अद्भुत सौंदर्य माधुर्य सौभाग्य रस सरस ब्यार कै मंद हिंडोरों में बह रहा..कोई सखी फूल बरसाए रही तो कोई ब्याहुला में मंत्र पढ़ रही प्रेम जुगल कै ब्याहन कू और सुंदर बनाए रही..
स्यामा स्यामसुंदर सेहरे घूंघट की ओट सौं नयना मिलाए रहै..चुराए रहै..याकि चितबन और तीखे तरारै नयनन की कसकन..सखियन संग लाड़ लड़ाय रहै..खूब हंसी ठिठोली होय रही और खूब चंदन केसर अंगराग उड़ाए रहीं..ब्याहुला सम्पन्न कराए कै बृंदा सखिन नै छप्पन भोग मंगाए लियो जिन्हें स्यामा जु पहिले सालिग्राम कै मुख लगाए फेर स्यामसुंदर नै पवाए और ऐसो ही स्यामसुंदर करै..प्रेम की झलकन सौं बृंदा सखि कै कर सौं लेवै और स्यामा जु नै पवाए देवै..सखियन नै कछु खेल भी खिलाए जुगल सौं पर जब देख्ह्यौ कि जुगल अब धीर अधीर होय रहै तब यानै आसीस देती सेज तांई मंगलगीत गाए कै बिरजवा आईं..
"प्रथम मिलन पिया प्यारी कौ गाऊँ।
श्री ललिता कृपा नित जुगल लड़ाऊं।१।
श्री वृंदावन संपत्ति पूंजत सुख,जुगल भाव मन ध्यावै।
सुमिरि श्री राधा चरण दासि संग,गौर श्याम हिय आवै।२।
छिन छिन रस विलसत नव दंपति, निरखि सतत सुख पाऊं ।
आनंद रस न समात उमंगि उर,सोई सखी हरखि सुनाऊं।३।
श्री जमुना नव अम्बुज फूले,अलि अवलि दल छाये।
गूंजत तान संगीत मृदु पवन,नव तरु द्रुमि मन भाये।४।
सुंदर खग निरतत मन मोहक,मधुर पिया जस गाये।
विविध बरन रँग फूले सुमन दल,रुचि रुचि हार बनाये।५।
नव वधू सरस सँवारी श्यामा,नहिं सरि कोई वधू वारी।
तैसेई सुघड श्याम दूलहु फबे,दंपति छबि अति न्यारी।६।
लाड़ लड़ावत वर वधू रुख लै,सखी सहचरी प्रवीना।
सुरति सेज सम्पति सुख पूंजत,विलसैं जुगल नवीना।७।
नैंनन नैंन जोरि झपि पलकैं,पुनि पुनि नैंन मिलावें।
हाव भाव बिन बैंनन सैंनन,हँसि लजि मुरि बतरावें।८।
गावत विरदनि गीत मिलन सखीं,मदन मोद जुग लीने।
नव नव रति रत रसिक शिरोमणि,मिलत हू मिलत नवीने।९।
नित ही प्रथम समागम कौ सुख,काम केलि नित न्यारी।
श्री हरिदासी सखीन संग सुख,विलसत नित्य बिहारी।१०।
आस करत आशीष देत सखीं,उर वन बसौ जुग जिय मन।
विलसौ कृष्णचन्द्र श्री राधा,चरणदासि वृंदावन।११।"
      !! श्री हरिदास !!
!! जयजय श्यामाश्याम !!

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