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केलि दर्पण , मृदुला

प्यारे प्यारी कूं की केलि जैसे दर्पन में छबरस पान .......एकहूँ को रूप एकहुँ को रस एकहूँ को पान एकहुं को केलि ...........

दर्पन ........का होवे जे दर्पन । प्रेम को सांचों रूप होइ है जे दर्पन ....काहे ! अरे दर्पन ते सांचों प्रीत जानेई कोऊ नाय । रिक्त हिय रिक्त प्राणन रिक्त जिय रिक्त ........पीय जावे पूरो को पूरो जे दर्पन निज प्यारन कूं । खुद को निकास निकास प्रियतम हूं को भरि लेय है जे अपनो भीतर । अरी ! बिंब  प्रतिबिंब कूं सत्ता तो हम जैसों प्रेम ते अनभिज्ञन के वास्ते होवे ...तनिक या दर्पन ते तो पूछो ...यो जाने है क्या दुईता .......या ते पूछो तो कहवेगो .......
दोई !......ये क्या वस्तु होवे है री ......मैं तो प्यारो हूँ बस मेरो प्यारो ....क्या मैं तोहे कछु और भी दीखूं हूँ री ........आह ! लागे प्यारो कछु खेल करि रयो रूप बदलन कूं जो तोहे वो नाय मैं दीख रयो हूँ । अरी तनिक देख तो री ........या छब है कौन की ......जे तो तोहे लागे री , दुइता तोरे नैनन में बसी जो है । वा के सिवा कछु है ही नाय यहाँ तो कौन इत ....कौन उत .... वा की सुंगधन ते महक रयो हूँ  वा के रूप ते दमक रयो हूँ वा के स्वरन ते चहक रयो हूँ वा के नैनन ते निरख रयो हूँ वा के अधरन ते मुस्क्यायी रयो हूँ वा के स्पंदन  ते स्पंदित हूं वा के प्रान ते अनुप्रानित हूँ री .........पर जे भी तोय लागे कि मैं कह रयो या सब  प्रेम अंजन आंज नैनन माहीं तनिक देख तो री कौन कौन बतियावे है तो से ......पर इतने हूँ को छोर न जानियो री ....यो खेल बडों अद्भुत है री ....प्रीत को खेल । कबहुँ वो मोय चुरा लेवे है री .......अरे नाय समझी क्या .......कबहुँ मोहे चुराय भागे वो प्रियतम । कहवे हैं मैं तो तू हूँ .....तो मैं कहुँ हां प्यारे मैं ही तो हूँ  ......ना मैं मैं हूँ ना वो वो ......क्यों !क्योंकि मैं अरु वो तो तोहे दीखें हैं सखि री .......मेरो रसीलो बडो प्रेमी है री.....बडो छलिया ......बडो भोरा है री .....दर्पन में निज छवि पे ही रीझो रहवे री .....मुग्ध भयो पूछे है कहा री !  तनिक छुई लूँ तोहे .........तनिक रस पवाय दे मोहि .......खुद को रस पाय कहवे अरी बडो मीठी री तू .........हौं हंसि जाऊँ हूँ री ........एसो ही नित केलि रस याको............

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