Skip to main content

श्रीहरिनाम में अनुराग , बाँवरी जु

*श्रीहरिनाम में अनुराग*

हे दयासिन्धु ! हे करुणाकर! गौरहरि आपने नाम संकीर्तन प्रकट हर हम अधम जीवों हेतु भगवत प्राप्ति को अति सहज कर दिया है। आपकी भक्त परायणता ,आपकी करुणा ,आपकी अहैतुकि कृपा का अनुभव कर मेरा पाषाणवत हृदय भी दृवीभूत हुआ जाता है। आपकी वाणी को भी हृदयस्थ कर लेने पर मुझ अधम का चित्त नाम मे सहजता से प्रवृत्त नहीं हो पा रहा है। यधपि आपकी वाणी में मुझे कोई संदेह नहीं है श्रीप्रभु जी , परन्तु मेरे हृदय पर जन्मों से पड़े हुए आवरण  को हटाना मेरे बल द्वारा सम्भव नहीं है।

   हे भक्तिप्रदाता गौरसुन्दर ! आपकी कृपा तो अनन्त है। आपने अपने उपदेश द्वारा श्रीहरिनाम की महिमा को कलियुग के जीवों के सम्मुख प्रकट करने को ही अपनी लीला प्रकट की है। आप सर्व रूपेण अपने आश्रित अनाश्रित सबका मंगल करने वाले हो। श्रीहरि के विभिन्न नामों के गायन द्वारा श्रीहरि की विभिन्न लीलाओं के प्रकट होने का आपने ही रहस्य जीवों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। आपकी भक्तवत्सलता इतनी सहज है कि प्रभु आप इसके आस्वादन को भक्त रूप में ही लीला कर रहे हो। आपका सम्पूर्ण जीवन ही भक्ति के विभिन्न आयामों का साक्षात प्राकट्य है। आपने अपनी लीला द्वारा भी आपने प्रकांड पांडित्य का त्याग करते हुए समस्त विद्या को श्रीहरि चरणों मे निवेदित किया है। समस्त विद्या का सार श्रीहरिनाम को ही प्रकट कर आपने जीवों के कल्याण हेतु अपनी लीला प्रकट की है। भगवत प्राप्ति केवल ज्ञान द्वारा नहीं हो सकती अपितु प्रत्येक विद्या जो हरिभक्ति प्रदान नहीं करती वह त्याज्य है। समस्त विधा श्रीहरि की ही शक्तियां हैं तथा सभी विद्या रूपी वधु का जीवन श्रीहरिनाम ही है। जो विद्या किसी जीव को भगवतोन्मुखी न करे ऐसी विद्या उस श्रृंगारित स्त्री के समान है जिसका श्रृंगार उसके स्वामी हेतु न हो। अर्थात विद्या रूपी वधु का श्रृंगार श्रीहरिनाम में ही है।

   हे गौरसुन्दर! आप सब जीवों के हृदय में श्रीहरिनाम का अनुराग प्रदान करें । प्रत्येक जीव आपके नाम रूपी रस की प्राप्ति करके आपकी करुणा को हृदय में अनुभव करने के समर्थ हो। नाम संकीर्तन में आपने सब जीवों को इतनी छूट प्रदान कर दी है कि इसमें स्थान तथा काल का भी कोई नियम नहीं रखा। हे करुणेश ! आपकी करुणा का बखान करने का सामर्थ्य भी किसी जीव के पास नहीं है परन्तु यह शुद्र सी वाणी आपकी करुणा देख देख मौन भी नहीं रह पाती। हे गौरसुन्दर आप सबके हृदय में नाम प्रभु रूप से विराजिए तथा प्रत्येक जिव्हा पर नाम रूप में नृत्य कीजिये।श्रीचैतन्य देव आपकी जय हो! श्रीहरिनाम संकीर्तन की जय हो!

हरि हरि गाओ रे भाई कीजौ नित नाम कमाई रे !!

हरिनाम ही सार सकल है विधि हरि आप बताई रे!!

नाम ही साधन नाम ही सिद्धि हरि बात यह जीव बताई रे!!

गाओ हाथ उठाय दोऊ हरि हरि नाम बड़ा सुखदाई रे!!

निशदिन नाम धन संचय कीजौ छोड़ो मान बड़ाई रे!!

कहे बाँवरी नाम की भिक्षा दीजौ याहि अरज लगाई रे!!

जय जय श्रीगौरहरि

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...